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महागठबंधन में सबका अपना राग, CM हैं नीतीश कुमार पर बागडोर इनके हाथ में भी

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Published on: 5 Sep 2016 12:19 PM GMT
महागठबंधन में सबका अपना राग, CM हैं नीतीश कुमार पर बागडोर इनके हाथ में भी
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शिशिर कुमार सिन्‍हा

पटनाः एक तरफ शराबबंदी और यूपी चुनाव को जोड़ने में व्यस्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बाढ़ ने बिहार की आम जनता पर फोकस करने को बाध्य कर दिया तो दूसरी तरफ राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव बाढ़ के साथ सरकारी सिस्टम में खुद को अंदर तक पहुंचाने में व्यस्त हैं। इसी बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सूबे के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को 2019 के लिए प्रधानमंत्री का कैंडिडेट घोषित कर दिया।

यह सब गठबंधन के घटक दलों के अलग-अलग कार्यक्रम में नहीं, बल्कि महागठबंधन के तीनों दलों के प्रदेश अध्यक्षों की 28 अगस्त को हुई साझा प्रेस वार्ता में हुआ। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का यह बोलना जदयू को इतना नागवार गुजरा कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने वहीं साफ कह दिया कि अभी महागठबंधन तीन साल आगे के लिए किसी को नेता नहीं घोषित कर रहा है। उन्होंने राहुल गांधी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनका अंदाज साफ-साफ कह रहा था कि जदयू, कांग्रेस के इस बोल से खफा है।

जदयू को एतराज इस बात पर भी था कि महागठबंधन में शामिल दलों के प्रदेश अध्यक्षों की प्रेस वार्ता में उस बात को उठाया ही नहीं जाना चाहिए था जिस पर घटक दलों में कोई बात नहीं हुई हो। प्रेस वार्ता में चूंकि कांग्रेसियों की संख्या कम थी, इसलिए इसके समापन के साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के बयान से ज्यादा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष की काट पर ज्यादा चर्चा होने लगी।

अलग खिचड़ी पकने का प्रमाण हर गलियारे में

अंदरखाने सभी जानते हैं कि बिहार की कुर्सी भले ही मुख्यमंत्री होने के नाते नीतीश कुमार के पास हो, लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी किसी और के पास है। ट्रांसफर-पोस्टिंग की कमान राजद, खासकर राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के हाथों में होने को लेकर विपक्ष कुछ-कुछ समय पर मुख्यमंत्री को आड़े हाथों लेता रहा है। सत्ता के दो केंद्र होने की बात होती रही है लेकिन बात से आगे प्रमाण यह है कि घटक दलों में जिन बातों पर सहमति की आस होती है, वह लंबे समय तक अटकी रह जाती है।

मंत्री पद के बंटवारे पर शुरुआत में ही जो हुआ, सभी ने देखा। इन दिनों सरकार में शामिल घटक दलों की अलग राह का पता इससे भी चल रहा है कि मई में जिन आयोगों, बोर्ड-निगमों के अध्यक्ष, उपाध्यक्षों व सदस्यों से इस्तीफा लिया गया था, उनकी जगह नए को कमान देने में सरकार अब भी हिचक रही है। मुख्यमंत्री आवास में हुई बैठक के बाद इस्तीफा लेने का फैसला इसलिए लिया गया था कि इन पर जदयू का एकाधिकार था। इन पदों को राजद, जदयू और कांग्रेस नेताओं के बीच बांटने की बात थी, लेकिन तीन महीने से ज्यादा गुजरने के बावजूद फैसला नहीं लिया जा सका।

महिलाओं-बच्चों की बात हर मंच से किए जाने के बावजूद हालत यह है कि राज्य में महिला आयोग के पुनर्गठन के इंतजार में लगभग ढाई हजार मामले लंबित हैं और उत्पीड़न की शिकार महिलाएं चककर लगा-लगा कर थक गई हैं। बाल संरक्षण आयोग समेत ऐसे सभी आयोग, बोर्ड व निगमों की हालत भी कमोबेश यही है।

''केंद्र पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को बिहार की सत्ता से दूर धकेलने के उद्देश्य से एक मंच पर आए राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाईटेड और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाकर हाथ में लालटेन की रोशनी लिए तीर निशाने पर लगा लिया, लेकिन बिहार में राजनीतिक महकमे के अंदर सब कुछ इसी रोशनी जैसा धुंधला है।

जदयू के सबसे बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री ने बिहार की सत्ता में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की दखल को अंदर ही अंदर स्वीकार करते हुए खुद को केंद्रीय राजनीति में लाने के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का रास्ता अख्तियार तो कर लिया, लेकिन अचानक बिहार कांग्रेस ने पटना में महागठबंधन की प्रेसवार्ता के दौरान 2019 के लिए राहुल गांधी को भावी पीएम के रूप में पेश कर साबित कर दिया है कि यहां सबकी अपनी-अपनी खिचड़ी पक रही है। अलग खिचड़ी के कारण ही प्रदेश में भंग आयोगों, बोर्डों-निगमों का पुनर्गठन भी अटका हुआ है।''

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