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दो राज्यों में 6 लाख लोगों ने दबाया नोटा, नेताओं के लिए बजी खतरे की घंटी
लखनऊ: गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत-हार की चर्चा तो हो गई, लेकिन हम उस संदेश को अनसुना कर रहे हैं जो देश की राजनीति, लोकतंत्र और नेताओं के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं। इन दोनों ही राज्यों में करीब 6 लाख लोगों ने वोट तो दिया, लेकिन वह किसी भी पार्टी, प्रत्याशी के पक्ष में नहीं बल्कि उनके विरोध में। यह ट्रेंड आगे आने वाले चुनावों में भी जारी रहा तो क्या होगा? इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की हालिया जारी रिपोर्ट में बताया गया है, कि गुजरात विधानसभा चुनावों में कुल 5 लाख 51 हजार 615 लोगों ने नोटा का बटन दबाया, जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में 34 हजार 242 लोगों ने नोटा का विकल्प चुना।
हार-जीत का अंतर नोटा वाले वोट से भी कम रहा
गुजरात में दो दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर हार-जीत का अंतर नोटा वाले वोट से भी कम रहा। वहीं, हिमाचल में भी 10 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर नोटा का प्रतिशत जीत-हार के अंतर से बहुत ज्यादा रहा। गुजरात में डांग, देओदार, फतेपुरा, हिम्मतनगर, जेतपुर, खम्भात, मदासा, पोरबंदर, टलजा, उमरेठ और बांकनेर ऐसे विधानसभा रहे जहां हार-जीत के अंतर से दोगुना, तीन गुना, नोटा का बटन दबाया गया। वहीं, गोधरा, ढोलका और कपराडा में हार जीत का अंतर 200 के आसपास ही रहा, लेकिन यहां नोटा का विकल्प चुनने वालों की संख्या इससे दस गुना ज्यादा रही।
गुजरात में तीसरा सबसे बड़ा दल बना नोटा
प्रदेश के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच यदि निर्दल उम्मीदवार को तीसरा स्थान भी मिल जाता है तो वह किसी विजेता से कम नहीं समझा जाता। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार अकेले गुजरात में 110 विधानसभा सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा जबकि हिमाचल की 14 विधानसभा सीटों पर नोटा को तीसरा स्थान मिला।