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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: करो या मरो की लड़ाई में कांग्रेस

Rishi
Published on: 1 Sept 2017 4:49 PM IST
अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: करो या मरो की लड़ाई में कांग्रेस
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#Chitrakoot उपचुनाव: BJP को झटका, कांग्रेस ने लहराया जीत का परचम

गुजरात विधानसभा का चुनाव इसी साल के अंत में होना है। यह चुनाव भाजपा और खासकर नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के लिये तो प्रतिष्ठा का सवाल है ही, कांग्रेस के लिये अस्तित्व की लड़ाई सरीखा होने वाला है। कांग्रेस ने इस चुनाव के लिये पूरी जान लगा रखी है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने आंतरिक सर्वे कराये हैं जिसमें उसे अच्छा फीडबैक मिला है। इसके अलावा राज्यसभा चुनाव की जीत से पार्टी को ऊर्जा मिली है।

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यही वजह है कि चुनाव के लिये किसी से कोई तालमेल की संभावना लगभग नहीं है और पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस को अपने दम पर भाजपा को चुनौती देने का ज्यादा फायदा नजर आ रहा है। पार्टी विधायकों की भी यही राय है। वैसे, कांग्रेस तालमेल करे भी किससे, यह बड़ा सवाल है।

शरद पवार की एनसीपी के साथ उसके संबंध बिगड़ गए हैं। कांग्रेस की शिकायत है कि गुजरात से राज्यसभा चुनाव में उसे एनसीपी का वोट नहीं मिला। हालांकि एनसीपी इससे इंकार करती है। इस मसले पर दोनों पार्टीयों के बीच इस कदर तनातनी हो गयी कि एनसीपी ने सोनिया गांधी की बुलाई विपक्षी नेताओं की बैठक का बहिष्कार किया। वैसे, एनसीपी का झुकाव भाजपा की ओर होता जा रहा है।

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कांग्रेस को जनता दल यू का साथ मिल सकता है। जद यू का प्रदेश में एक ही विधायक है जिसने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिया था। यह विधायक अपने को नीतीश कुमार वाली पार्टी से अलग कर चुके हैं। संभावना यही बनती है कि यह विधायक कांग्रेस का दामन पकड़ेगा। हो सकता है कि कांग्रेस इनके लिये एक सीट छोड़ भी दे।

जाति कार्ड का खेल शुरू

कांग्रेस ने गुजरात चुनावों से पहले चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की है। ये नियुक्ति जातिगत आधार पर है पार्टी ने एलानिया बताया है कि इनमें कौन किस जाति का है। इनमें एक पटेल समुदाय से, एक ओबीसी वर्ग से, एक आदिवासी और एक दलित है। चारों कार्यकारी अध्यक्ष विधानसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबले में प्रदेश अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी की सहायता करेंगे।

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राहुल की भी तैयारी

कांग्रेस के प्रचार के लिये राहुल गांधी की भी योजना तैयार है। यूपी की तर्ज पर राहुल गांधी गजरात में 4 यात्राएं करेंगे जिसकी शुरुआत 21 सितंबर को सौराष्ट्र क्षेत्र के द्वारका से होगी। सौराष्ट्र को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है। वैसे, राहुल गांधी सितंबर के पहले हफ्ते में गुजरात में पार्टी के चुनाव प्रचार की औपचारिक शुरुआत करेंगे। हालांकि यूपी की तरह चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब इस चुनाव में उनके साथ नहीं हैं और पार्टी अपने स्तर पर ही सब आयोजन करेगी। चार यात्राओं की जिम्मेदारी प्रकाश जोशी को दी गई है जो राहुल की टीम के अहम सदस्य हैं।

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आम आदमी पार्टी नहीं लड़ेगी

अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव नहीं लड़ेगी। हालांकि पार्टी के नेता निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ सकेंगे। पूर्व बीजेपी विधायक डॉ. कनुभाई कलसरिया इन्हीं में शामिल हैं। वर्ष साल 2009 से 2012 के बीच हुए किसान भूमि आंदोलन के बाद कलसारिया बीजेपी छोडक़र आम आदमी पार्टी में चले गए थे।

उन्होंने बताया कि पार्टी के नेता गुजरात में एक मंच बना सकते हैं और पार्टी के चिह्न के बिना चुनाव लड़ सकते हैं। चुनाव के स्थानीय स्तर पर पार्टी नेता जनता में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की दिशा में प्रयासरत है। पार्टी नेताओं को जनता का व्यापक समर्थन भी मिल रहा है।

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पीएम करेंगे चुनाव प्रचार की शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को अपना 67वां जन्मदिन अपने गृह राज्य गुजरात में मनाएंगे। समझा जा रहा है कि मोदी इस दौरे के साथ गुजरात में बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे। मोदी इस यात्रा में कई प्रोजेक्ट का उद्धघाटन करने के अलावा एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे। मोदी इस साल अब तक पांच बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। अगला दौरा इस साल का छठा होगा।

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विधानसभा चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी होने से पहले यह मोदी की आखिरी रैली हो सकती है। बीजेपी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को गुजरात का चुनाव प्रभारी बनाया है। बीजेपी नेता विजय रुपानी अभी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। हाल ही में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी साफ कर दिया है कि पार्टी गुजरात चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री नहीं बदला जाएगा। अमित शाह ने कहा कि विजय रुपानी ही पार्टी के ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार हैं।

उधर शंकर सिंह वाघेला के पार्टी छोडऩे के बाद कांग्रेस के लिए अब कोई दुविधा नहीं है। इसीलिए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी की अध्यक्षता में प्रदेश चुनाव समिति का गठन किया गया। इसमें अर्जुन मोडवाडिया, शक्ति सिंह गोहिल, सिद्धार्थ पटेल से लेकर प्रदेश के अधिकांश बड़े चेहरों को शामिल किया गया है।

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लंबे समय से रहा है भाजपा का जोर

गुजरात में 1989 से भाजपा का जोर रहा है और 1995 से लगातार वह विधानसभा चुनाव जीतती आ रही है। उस समय राज्य में भाजपा को एक तरफ राम लहर और दूसरी तरफ कांग्रेस विरोधी लहर का फायदा मिला और वह आसानी से चुनाव जीतती रही। यह सिलसिला 2002 के गुजरात दंगों के बाद भी चलता रहा, क्योंकि राम मंदिर मुद्दे के बाद गुजरात दंगों ने हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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भाजपा ने 1995 और 1998 में दो तिहाई बहुमत हासिल किया। परंतु 2002 के बाद हालात बदले और केशुभाई पटेल के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाए गए नरेन्द्र मोदी एक नायक के रूप में उभरे। गुजरात दंगों के बाद जबर्दस्त आलोचनाओं से जूझने के बावजूद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात में भाजपा ने 2002 का विधानसभा चुनाव जीता। इसके बाद 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने जीत हासिल की और जीत का सेहरा मोदी के सिर बांधा गया।

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भाजपा विरोधियों को खींचने की कोशिश

राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत, वाघेला का प्रस्थान और एनसीपी से बात न बन पाने के बाद कांग्रेस की एक रणनीति भाजपा विरोधी नेताओं को अपने पाले में लाने की है। राज्य की राजनीति के तीन युवा खिलाड़ी पार्टी को अहम नजर आ रहे हैं। इन तीन युवाओं के जरिये कांग्रेस गुजरात में ‘यूथ कार्ड’ का जोरदार इस्तेमाल करना चाहती है।

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हार्दिक पटेल

इन भाजपा विरोधी चेहरों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा भा रहा है पाटीदारों का नेता हार्दिक पटेल। हार्दिक अभी चुनाव नहीं लड़ सकता क्योंकि वह अभी 25 से कम उम्र का है। लेकिन उसकी हैसियत पाटीदार समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करने की है। पटेल कांग्रेस का साथ देने को तैयार तो नजर आता है। लेकिन इस दोस्ती का आधार क्या होगा यह तय नहीं हो पा रहा है। पार्टी ने अंदरखाने हार्दिक से बातचीत शुरू कर दी है।

समझा जाता है कि हार्दिक के साथ शुरुआती बातचीत सफल रही है और सब कुछ इसी तरह चला तो चुनाव में पटेल कांग्रेस के पक्ष में वोट देने की अपील कर सकता है। बदले में कांग्रेस पाटीदारों को आरक्षण पर ठोस आश्वासन दे सकती है। साथ ही हार्दिक के कुछ करीबियों को टिकट भी दिया जा सकता है।

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जिग्नेश

जिग्नेश दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं। गुजरात के वेरावल में दलितों की पिटाई के बाद भडक़े दलित आंदोलन का नेतृत्व जिग्नेश ही कर रहे हैं। जिग्नेश ने उना की घटना के बाद घोषणा की थी कि अब दलित लोग समाज के लिए ‘गंदा काम’ नहीं करेंगे,‘ यानी मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकाला, मैला ढोना आदि। 1980 में मेहसाना में जन्मे जिग्नेश मेघानीनगर में रह रहे हैं जो अहमदाबाद का दलित बहुल इलाका है।

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महात्मा गांधी की ‘दांडी यात्रा‘ से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने दलितों की यात्रा का आयोजन किया और उसे ‘दलित अस्मिता यात्रा’ का नाम दिया। जिग्नेश अंग्रेजी और कानून में स्नातक हैं और ऊना दलित अत्याचार लड़त समिति (यूडीएएलएस) के संयोजक हैं। कांग्रेस इन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिशों में जुटी हुयी है।

पार्टी लगातार जिग्नेश के भी संपर्क में हैं। जिग्नेश ने बीजेपी विरोध का झंडा तो बुलंद कर रखा है, लेकिन समझा जाता है कि उसने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे से भी इंकार कर दिया है। कांग्रेस की कोशिश है कि, जिग्नेश जहां से भी चुनाव लड़े, पार्टी उसको समर्थन दे दे और बदले में जिग्नेश बीजेपी विरोध का झंडा लहराये रखे।

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अल्पेश ठाकोर

गुजरात चुनाव में कांग्रेस की तीसरी और अंतिम उम्मीद अल्पेश ठाकोर पर आकर रुक जाती है। ठाकोर (क्षत्रिय) समाज से ताल्लुक रखने वाले अल्पेश किसानों, छात्रों और महिलाओं के मुद्दे उठाते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी अल्पेश से भी संपर्क कर रही है। अल्पेश का प्रभाव क्षेत्र भी सीमित है,लेकिन कांग्रेस उनके भी अपने पाले में लाना चाहती है। लेकिन अभी तक अल्पेश के मामले में सफलता नहीं मिल पाई है।

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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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