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निर्भया मामला: भारत में लचर है सजा के बाद भी फांसी पर लटकाए जाने की रफ्तार का रिकॉर्ड

सर्वोच्च अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी उस पर फौरी अमल की प्रक्रिया का रिकॉर्ड भारत में बहुत ही लचर है। मौत की सजा लागू करने तक पूरी प्रकिया में कई तरह के दांवपेंच हैं।

zafar
Published on: 5 May 2017 4:48 PM
निर्भया मामला: भारत में लचर है सजा के बाद भी फांसी पर लटकाए जाने की रफ्तार का रिकॉर्ड
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उमाकांत लखेड़ा

नई दिल्ली: निर्भया रेप व हत्याकांड के चार अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद अब बहस इस बात पर केंद्रित है कि इन अपराधियों को देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के बाद फांसी के फंदे पर लटकाए जाने में और कितना वक्त लगेगा।

कानूनविदों की राय में इन अभियुक्तों के सामने अब तात्कालिक तौर पर सर्वोच्च अदालत में पुनर्विचार याचिका का विकल्प खुला है। हालांकि उस रास्ते से सजा कम करने की आस लगभग ना के बराबर है। इसके बाद इन चारों के पास राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका पेश करने का आखिरी मौका होगा।

लचर है प्रक्रिया

बतादें कि भारतीय दंड संहिता में 2013 में हुए संशोधन व बलात्कार करने वालों व पीड़ित को शारीरिक कष्ट पहुंचाने वाले अपराधियों को मौत की सजा का कठोर प्रावधान किया गया था। दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया व उसके मित्र के साथ चार्टेड बस में यह जघन्य वारदात हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस संशोधन के बाद निर्भया हत्याकांड के अभियुक्तों के लिए बच निकलने की कोई उम्मीद नहीं बची है।

सर्वोच्च अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी उस पर फौरी अमल की प्रक्रिया का रिकॉर्ड भारत में बहुत ही लचर है। मौत की सजा लागू करने तक पूरी प्रकिया में कई तरह के दांवपेंच हैं। यह सवाल इसलिए अहम है कि संसद पर हमले के षड्यंत्र में सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2006 को मृत्युदंड की सजा सुना दी थी।

लेकिन उसके बाद पुलिस व कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने में पूरे सात साल लगे और अंततः उसे दिल्ली के तिहाड़ जेल में 9 फरवरी 2013 को फांसी दी जा सकी। इसी तरह मुंबई बम हमलों के दोषी पाए गए याकूब मेमन को 1993 में ही फांसी की सजा सुना दी गई थी लेकिन उसे मृत्युदंड 30 जुलाई 2015 को दिया जा सका।

सजा बदलने का विरोध

1992 से विभिन्न राष्ट्रपतियों के समक्ष करीब 26 दया याचिकाएं पेश की गई थीं जिसमें खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट से जुड़े आंतकवादी देविंदर सिंह भुल्लर की याचिका भी शामिल थी। लेकिन राष्ट्रपति मुखर्जी ने जुलाई 2015 में इन दया याचिकाओं में 24 याचिकाओं को ठुकरा दिया था।

ज्ञात रहे कि पाकिस्तानी आतंकी कसाब को भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने व भारतीय नागरिकों की हत्या के आरोप में मुंबई की यरबदा जेल में नंवबर 2012 को फांसी दी गई थी।

भारत के अब तक के राष्ट्रपतियों में अकेली प्रतिभादेवी सिंह पाटील का ऐसा रिकॉर्ड रहा है जिन्होंने अपने कार्यकाल के आखिरी माह में एक ही दिन, 2 जून 2012 को मौत की सजा पाए 35 अभियुक्तों की मौत की सजा को आजन्म कारावास में बदला था। उनके इस फैसले का देशभर में कई हिस्सों में सार्वजनिक विरोध हुआ था।

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