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Happy Birthday Dr APJ Abdul Kalam: उस शाम वह कबीरमय हो गए थे

Rishi
Published on: 15 Oct 2017 2:40 PM IST
Happy Birthday Dr APJ Abdul Kalam:  उस शाम वह कबीरमय हो गए थे
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संजय तिवारी संजय तिवारी

उनके शरीर के कपडें मिट्टी से सने हुए थे। वह उस मिट्टी को हटाने या साफ करने की जल्दी में कहीं से भी नजर नहीं आ रहे थे। अपने दोनों हाथों से वह कपड़ो की मिटटी को बटोरते और अपने माथे पर लगाते जाते। बारिश के कारण तर हो चुकी कबीर समाधि की माटी लपेटे यह शख्स कोई और नहीं बल्कि वह थे भारत के मिसाइल मैन, भारतरत्न, बच्चो के लिए उनके सबसे बड़े रोलमॉडल और हरदिलअजीज भारत के लिए अनवरत चिंतनशील देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम।

मगहर में बारिश भरी उस शाम कबीर की समाधि पर कलाम के इस स्वरुप का साक्षी रहा हूं मैं। कबीर समाधि की उस माटी को माथे पर लगा कर वह यकीनन कबीर से रूबरू हो रहे थे, मिल रहे थे।

तारीख थी 9 सितंबर 2003- दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बच्चो से मिलने आये थे। उस समय देश के राष्ट्रपति थे। दरअसल इस कार्यक्रम का आयोजन भी किसी दैवीय संयोग जैसा ही लगता है। इस तिथि से तकरीबन 20 दिन पहले ही विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय दर्शन के प्रकांड विद्वान् आचार्य रेवतीरमण पांडेय कलाम साहब को अपने दीक्षांत कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए उनसे मिलाने गए थे।

बड़ी मुश्किल से अधिकारियों ने इस मुलाकात के लिए केवल 15 मिनट का समय दिया था। जब आचार्य पांडेय भीतर गए तो डॉ. कलाम और उनकी मुलाकात में समय का कोई बंधन ही नहीं रहा। भारतीय चिंतन परंपरा के दो घातक एक ही धरातल पर साक्षात्कार कर रहे थे। यह मुलाकात कब घंटो में बदल गयी इसका पता ही नहीं चला। आचार्य पांडेय तो उन्हें तीन महीने बाद दीक्षांत के लिए किसी तिथि का अनुरोध लेकर गए थे लेकिन कलाम साहब ने कहा - दीक्षांत तक की प्रतीक्षा क्यों ? कलाम साहब ने खुद ही प्रस्ताव कर दिया कि मैं नौ सितंबर को ही आपके विश्वविद्यालय में आना चाह रहा हूं।

आचार्य पांडेय जब राष्ट्रपति भवन से बाहर निकले तो उन्होंने प्रो. सुरेंद्र दुबे को यह सूचना भी दी और चिंता भी जताई कि राष्ट्रपति का कार्यक्रम इतना जल्दी में कैसे हो सकेगा ? बहरहाल तैयारियों की अपनी ही कहानी है। उस पर नहीं जाना।

नौ सितंबर को यह आयोजन हुआ। आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योकि डॉ. कलाम के आलावा जिन व्यक्तियों ने मंच पर आसन पाया उनमे दार्शनिक आचार्य रेवतीरमण पांडेय के अलावा आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जैसे महामनीषी भी थे जो स्वयं प्रदेश के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे। इस कार्यक्रम में भी जब कलाम बच्चो में मिले तो उन्हीं के होकर रह गए। फिर तो समय की पाबंदी भी काम न आयी। बच्चो ने खूब प्रश्न पूछे। उन्होंने सभी का जवाब भी दिया और बड़ी सीख भी -जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं। किसी के जीवन में उजाला लाओ।

उन्होंने कहा दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो इनके बिना जीवन अर्थहीन है। देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुणं है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिये उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिये। कम से कम दो गरीब बच्चों को आत्मर्निभर बनाने के लिये उनकी शिक्षा में मदद करो। सरलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एक मात्र रास्ता है। प्रकृति से सीखो जहाँ सब कुछ छिपा है। हमें मुस्कराहट का परिधान जरूर पहनना चाहिये तथा उसे सुरक्षित रखने के लिये हमारी आत्मा को गुणों का परिधान पहनाना चाहिये। समय, धैर्य तथा प्रकृति, सभी प्रकार की पिङाओं को दूर करने और सभी प्रकार के जख्मो को भरने वाले बेहतर चिकित्सक हैं। अपने जीवन में उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखो और उसे प्राप्त करो। प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।

कार्यक्रम ख़त्म होते होते शाम हो गयी थी। आकाश में काले घने बादल न जाने कहां से आ गए। व्यवस्था में लगे प्रशासनिक अधिकारी इस भय से परेशान कि यदि बारिश होने लगेगी तो राष्ट्रपति जी के अगले कार्यक्रम और फिर दिल्ली की उड़ान में बहुत दिक्कत हो जाएगी। लेकिन सृष्टि को अपने भीतर जी रहे, प्रकृति का मधुर रस पी रहे कलाम साहब तो खुद में मगन थे। उनके मगन होने में सबसे बड़ी बात थी कि कुछ ही क्षणों में वह युगद्रष्टा कबीर से मिलने वाले थे।

गोरखपुर से उनका काफिला चला तो बहुत थोड़े से लोगों को उनके साथ जाने का अवसर मिला था। विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के तत्कालीन आचार्य सुरेंद्र दुबे जी भी हमारे साथ ही थे। मगहर तक पहुंचने में हम लोगो को बमुश्किल 20 मिनट ही लगे। वह पहुंचने के बाद कलाम साहब जिस तरह संत कबीर की समाधि की दिशा में बढ़ रहे थे, उससे ऐसा लग रहा था जैसे वह इस स्थान से बहुत ठीक से परिचित है, जबकि वह पहली बार ही मगर आये थे। हम लोग जब गोरखपुर से निकले थे तभी बारिश भी शुरू हो गयी थी। मगहर में सभी जब गाडी से उतरे तब अधिकारियों ने कलाम साहब के लिए छाते की व्यवस्था की। कुछ कदम तो वह छाते में ही चले भी लेकिन कुछ ही क्षण में वह जैसे सबकुछ भूल से गए। संत की समाधि तक पहुंचने के बाद तो जो हुआ वह सभी के लिए अद्भुत दृश्य था। कलम साहब कबीर की चरणों में में थे।

बारिश से गीली हो चुकी मिटटी का कोई मतलब नहीं था। काफी देर तक वह वैसे ही शून्यवत पड़े रहे। यह दृश्य वैसा ही था जैसे वर्षो से अपनी माता से बिछुड़ा हुआ कोई नन्हा मासूम सा बालक उसे सामने पाते ही उससे लिपट जाता है और कभी न छोड़ने की मिन्नतें करता है। कलाम भी कबीर से मिल रहे थे। सद्गुरु से मिल रहे थे। युग पुरुष से मिल रहे थे। युगद्रष्टा से मिल रहे थे। जिसे अब तक केवल पढ़ा और महसूस किया था, उस कबीर के साथ जी रहे थे।

काफी क्षण बीतने बाद जब वह उठे तो उनके बदन के सभी वस्त्रो पर समाधि की मिटटी लगी हुई थी। सबसे भावुक कर देने वाला क्षण तो तब सामने आया जब वह कबीर की समाधी की उस मिटटी को अपने बदन के कपड़ो से हाथो से पोछते और माथे पर लगाते जाते। कई अफसरों ने चाहा कि उनके कपड़ो की मिटटी को साफ करें लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके चेहरे पर गजब का संतोष दिख रहा था। अद्भुत अलौकिक शांति। कलाम साहब उन्हीं कपड़ो में गोरखपुर के एयरपोर्ट तक आये थे और अपने विमान में बैठ गए थे। बहुत ही शांत, निर्मल,कोमल, सुमधुर, मखमली, मासूम सी मुस्कान लिए।

आज जब कलाम साहब को फिर से समझने का यत्न करता हूं तो 9 सितम्बर 2003 की सारी घटनाये वैसे ही याद आने लगती हैं। आखिर उन्हें किस खांचे में देखा जाए ? क्या थे कलाम? कवि ? दार्शनिक, सुधारवादी, दूरदर्शी, वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, प्रकृति प्रेमी, मानवतावादी, सभी पंथों को समान रूप से सम्मान देने वाले या कुछ और ? इस प्रश्न के साथ कलाम के व्यक्तित्व को जितना खंगालने की कोशिश करते हैं, जिज्ञासा बढ़ती ही जाती है । उनके करीबियों ने उन पर सौ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, पर सब में उनकी शख्सियत अलग ढंग से पेश की गई है। डीआरडीओ में कलाम के वित्त सलाहकार रहे आर. रामनाथन अपनी पुस्तक ‘क्या हैं कलाम’ में एक जगह लिखते हैं कि सरस उद्देश्यनिष्ठ, राष्ट्रीयता, समर्पण, समरस, उदार, सुगम, दृढ़ ज्ञानी शख्स को किसी एक खांचे या नजरिए से देखना उनकी शख्सियत के साथ नाइंसाफी होगी।

जुलाई 2001 के वेल्लोर के एक कार्यक्रम का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि एक छात्र सुडरक्कोड़ी ने कलाम से पूछा-‘‘आप खुद को क्या मानते हैं? वैज्ञानिक, तमिल, अच्छा मनुष्य या भारतीय?’’ उनका जवाब था- ‘‘एक अच्छे मनुष्य में बाकी सारे गुण मिल जाएंगे।’’

दुनिया भले उन्हें मिसाइल मैन नाम से जाने, पर उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपरा को ही आगे बढ़ाया। उनके कविता संग्रह ‘द ल्यूमिनस स्पार्क्स’ में ‘हार्मोनी’, ‘द नेशन प्रेयर’, ‘परसूट आॅफ हैप्पीनेस’, ‘गे्रटिट्यूट’, ‘विस्पर्र्स आॅफ जैसमिन’, ‘चिल्ड्रन आॅफ गॉड’, ‘द लाइफ ट्री’ कविताओं से यही भाव झलकता है।

उनकी पुस्तकों में ‘चिपको आंदोलन’ के सुंदरलाल बहुगुणा से लेकर राष्ट्रपति भवन में बागवानी करने वाले सुदेश कुमार तक का जिक्र है। कलाम को गीत-संगीत से भी बड़ा प्रेम था। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कई बार राष्ट्रपति भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराए। उन्हें चित्रकारी भी पसंद थी। उनके कविता संग्रह के पृष्ठ 26 पर एक सुंदर चित्रकारी है, जिसमें गोल टोपी पहने उनके पिता, रामेश्वरम मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मण शास्त्री, फादर सोलोमन और उनके बीच रामेश्वरम मंदिर की प्रतिकृति है। इसके अलावा भी इसमें कई नायाब चित्र हैं, जिन्हें कॉलेज आॅफ आॅर्ट के वरिष्ठ चित्रकार परेश हाजरा, शांति निकेतन के चंद्रनाथ आचार्य तथा जेजे स्कूल आॅफ आर्ट, मुंबई के जी.जे. जादव ने बनाया है।

कलाम के जीवन का हर अध्याय परी कथा जैसा ही है कि एक छोटे शहर के बालक ने, जिसने शुरुआती तालीम मदरसे में ली हो, पिता मस्जिद के इमाम हों और घर में पूरी तरह रोजा-नमाज का माहौल हो, शिक्षा की भट्ठी में खुद को ऐसा झोंका और भारतीयता की ऐसी चुनरी ओढ़ी कि वह दिनों-दिन उठता चला गया। उसे दुनिया छोड़े कई वर्ष हो चुके हैं, पर आज भी उसका जिक्र होता है तो लोगों की आंखें चमक उठती हैं और मन से एक आवाज़ आती है कि काश वह कुछ और दिन हमारे साथ रहते।

मजहब के नाम पर आज पूरे विश्व में तलवारें खिंची हुई हैं। विश्व में हर समय मजहबी हिंसा होती रहती है। छोटी-छोटी बातों पर लोग एक-दूसरे से लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं। हद तो यह है कि ऐसे समय राजनेता भी अपना आपा खो देते हैं। मगर इस मामले में कलाम साहब बिल्कुल अलग थे। ऐसी घटनाओं ने उन्हें कभी विचलित नहीं किया। उन्होंने देश और भारतीयता को हमेशा सबसे आगे रखा और इसी सोच के साथ अंतिम सांसें ली थीं।

उनके मीडिया सलाहकार रहे एसएम खान ने लिखा है - उन्होंने एक दिन बातचीत के दौरान देश में सांप्रदायिक दंगों का जिक्र करते हुए डॉ. कलाम से इस बारे में राय जाननी चाही तो उन्होंने बेहद रूखेपन से जवाब दिया कि वे किसी एक कौम के साथ नहीं हैं। इस सामाजिक बुराई के खिलाफ सबको मिलकर लड़ना होगा। अपनी पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट’ के ‘माई विजिट इन गुजरात’ अध्याय में उन्होंने लिखा है कि अगस्त 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बतौर राष्ट्रपति जब उन्होंने राज्य की कानून-व्यवस्था का जायजा लेने का कार्यक्रम बनाया तो हलचल मच गई। मंत्री समूह और अफसरों ने उन्हें वहां जाने से रोकने की कोशिश की। यहां तक कहा गया कि गुजरात में उन्हें विरोध झेलना पड़ सकता है। इसके बावजूद अब्दुल कलाम गुजरात गए और सभी समुदायों के लोगों से मुलाकात की।

वहां नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी अगवानी की और कलाम साहब की तमाम जरूरी हिदायतों पर अमल किया। उनकी उस यात्रा के बाद नरेंद्र मोदी उनके मुरीद हो गए। डॉ. कलाम के अंतिम दिनों तक दोनों के बीच घनिष्ठता कायम रही।

कलाम साहब गुजरात दंगों को लेकर जितने विचलित दिखे थे, 24 सितंबर, 2002 को गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले को लेकर भी उतने ही फिक्रमंद नजर आते थे। इस आतंकी हमले में एक कमांडो सहित 31 लोग मारे गए थे, जबकि 80 लोग घायल हुए थे।

डॉ. कलाम ने अपनी पुस्तक ‘ट्रांसेंडेंस माई स्पीरिचुअल एक्सपीरियंस विद प्रमुख स्वामीजी’ में इस घटना का विस्तार से उल्लेख करते हुए लिखा कि मंदिर पर हमला देश की एकता और अक्षुण्णता पर हमला था। उन्होंने इसे दुनिया का दूसरा बड़ा आतंकी हमला करार दिया था। इस हादसे को लेकर अक्षरधाम मंदिर के प्रमुख स्वामीजी से उनकी कई बार बात हुई थी। कलाम स्वामीजी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे, जबकि स्वामीजी उन्हें ‘ऋषि’ मानते थे। राष्ट्रपति चुने जाने से पहले से ही वे अक्षरधाम मंदिर के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे थे। स्वामीजी के चरणों में बैठकर उनसे आध्यात्मिक चर्चा करना कलाम साहब को बहुत अच्छा लगता था।

कलाम पांच-वक्ती नमाजी नहीं थे, लेकिन फजर यानी भोर की नमाज अवश्य पढ़ा करते थे। वे कहते थे कि समस्याओं का समाधान उन्हें फजर नमाज में ही मिलता है। ‘टर्निंग प्वाइंट’ में ही उन्होंने एक और घटना का जिक्र किया है। एक बार वे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के रवैये से खिन्न होकर राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बारे में सोच रहे थे। वे लिखते हैं कि फजर की नमाज के दौरान ही उन्होंने यह सोचकर इस्तीफा देने का इरादा बदल दिया कि उनकी वजह से देश में बेवजह सियासी बवंडर खड़ा हो जाएगा और विकास कार्यों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।

यह जानकर हैरानी होगी कि नमाज जैसा सुकून उन्हें वीणा वादन में भी मिला करता था। वे जिस कमरे में कुरान, हदीस की पुस्तकें रखा करते थे, उसी कमरे में बेहद सलीके से वीणा भी रखी जाती थी। अपने कविता संग्रह ‘द ल्यूमिनस स्पार्क्स’ की एक कविता ‘गे्रटिट्यूड’ के संदर्भ में वे लिखते हैं कि 1990 में गणतंत्र दिवस पर जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित करने का समाचार मिला तो वे फौरन अपने निजी कमरे में चले गए और वीणा बजाना प्रारंभ कर दिया।

वे आगे लिखते हैं, ‘‘जब भी वीणा बजाता हूं, रामेश्वरम की मस्जिद गली में पहुंच जाता हूं, जहां मां मुझे गले लगातीं, पिता प्यार से मेरे बालों में उंगलियां फेरते, रामेश्वरम मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मण शास्त्री तथा फादर सोलोमन मुझे आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं।’’

डॉ. कलाम ने देश में मिसाइल तकनीक को आगे बढ़ाने, राष्ट्रपति रहते हुए देश और देश के भावी भविष्य को विजन 2020 देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ ही बौद्ध, जैन, सिख धर्म के कई विषयों को लेकर शोध भी किए हैं। वे गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, गुरुनानक देव, खलीफा उमर और सूफी संत रूमी को प्रेरणास्रोत मानते थे। स्वामी नारायण पंथ और दर्शन का विस्तार कैसे हुआ, यह कलाम के शोध का विषय रहा है।

अरुण तिवारी के साथ लिखी गई उनकी पुस्तक में इसका विस्तार से उल्लेख है। वे सनातन ऋषि, मुनियों और सूफियों की परंपरा में विश्वास रखते थे। इस्लाम के समान ही वे दूसरे मत-पंथों को भी समान रूप से महत्व देते थे। इसका पता आचार्य महाप्रज्ञ के साथ लिखी उनकी पुस्तक ‘द फेमिली एंड द नेशन’ को पढ़कर लगाया जा सकता है। श्रीमद्भगवद् गीता को भारत का दर्शनशास्त्र कहा जाता है। इसका भी वे कुरान की तरह ही नियमित पाठ किया करते थे। उनकी नजर में गीता का कितना महत्व था, इसे उनकी पुस्तक ‘गाइंडिग सोल और यू आर बॉर्न टू ब्लोसम’ को पढ़कर समझा जा सकता है। पुस्तक के पहले पन्ने पर ही कुरान की अल तारिक आयत के साथ गीता के अध्याय सात की दूसरी पंक्ति है- मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रो मणिगणा इव। कलाम का पूरा जीवन साधु-संतों जैसा रहा। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और शाकाहारी रहे।

डॉ. कलाम ने अपने जीवन की उस यात्रा को बहुत महत्व दिया जब वह पहली बार वर्ष 1957-58 में वायुसेना में पायलट की नौकरी का इंटरव्यू देने देहरादून आये थे। उन्हें नौकरी के लिए चयनित न होने से बहुत दुःख हुआ था। वह ऋषिकेश आये और गंगा की लहरों को देखने लगे, शायद इनका मतव्य सकारात्मक नहीं था। बहुत ही हतोत्साहित अनुभव कर रहे थे। उसी समय उन्हें किसी ने आवाज़ दी। मुड़ कर देखा तो एक संत थे। वह कलाम का परिचय पूछने के बाद अपने आश्रम में ले गए। वह थे महान संत स्वामी शिवानंद।

कलाम ने उस भेंट के विषय में एक जगह लिखा है- क्रमेरे मुस्लिम नाम की उनमें जरा भी प्रतिक्रिया नहीं हुई। मैंने उन्हें वायुसेना में अपने नहीं चुने जाने की असफलता के विषय में बताया तो वे बोले- इच्छा, जो तुम्हारे हृदय और अंतरात्मा से उत्पन्न होती है, जो शुद्ध मन से की गई हो, एक विस्मित कर देने वाली विद्युत चुंबकीय ऊर्जा होती है। यही ऊर्जा हर रात को आकाश में चली जाती है और हर सुबह ब्रह्मांडीय चेतना लिए वापस शरीर में प्रवेश करती है। अपनी इस दिव्य ऊर्जा पर विश्वास रखो और अपनी नियति को स्वीकार कर इस असफलता को भूल जाओ। नियति को तुम्हारा पायलट बनना मंजूर नहीं था। अत: असमंजस और दुख से निकलकर अपने लिए सही उद्देश्य की तलाश करो।

स्वामी जी ने कहा था -

“ख़्वाहिश अगर दिलों-जान से निकला हो, वह पवित्र हो, उसमें शिद्दत हो, तो उसमें कमाल की Electronic Magnetic Energy होती है, दिमाग जब सोता है तो यह Energy रात की खामोशी में बाहर निकल जाती है और सुबह कायनात, ब्रह्मांड, सितारों की गति-रफ्तार को अपने साथ समेट कर दिमाग में लौट आती है। इसलिए जो सोचा है, उसकी सृष्टि (निर्माण) अवश्य है। वह आकार लेगा। तुम विश्वाश करो, इस सृष्टि पर, सूरज फिर से लौटेगा, बहार फिर से आएगी ।”

(लेखक अपना भारत के संपादक , विचार हैं)



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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