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महाराष्ट्र से भी मुश्किल है बिहार में बंटवारा

raghvendra
Published on: 8 Jun 2018 7:32 AM GMT
महाराष्ट्र से भी मुश्किल है बिहार में बंटवारा
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: बिहार में इस समय लाख टके का सवाल उठा है, बड़ा भाई कौन? 07 जून की शाम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक में सभी नेताओं के अंदर यही सवाल था, हालांकि इसपर बड़ी बहस नहीं हुई। बड़ी बहस इसलिए भी नहीं हुई कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह चंडीगढ़ में हैं और उनकी ओर से इस बारे में कुछ भी बोलने को अधिकृत किसी को नहीं किया गया है। ‘बड़ा भाई कौन?’ यह सवाल राजग में इसलिए है, क्योंकि दो लोकसभा सांसद वाला जदयू बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे को सामने कर आगामी लोकसभा चुनाव में उतरना चाह रहा है। और, न केवल चाह रहा है बल्कि इस चाहत का इजहार करते हुए बिहार के भाजपाई उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से मुहर भी लगवा चुका है।

कुर्बानी किसकी

जिस तरह देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने कर राजग चुनाव लड़ रहा है, उसी तरह जनता दल यू ने बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर लोकसभा चुनाव में उतरने की बात कही है। जदयू ने पिछले हफ्ते एक बैठक के बाद ‘बड़े भाई’ का मुद्दा उठाया था। जदयू के सभी नेताओं का कहना है कि बिहार में राजग सरकार का चेहरा नीतीश कुमार हैं, इसलिए आगामी चुनावों में उन्हीं को प्रोजेक्ट करना अच्छा होगा। अगले चुनाव में जदयू को बड़े भाई की भूमिका देने की जबरदस्त पैरोकारी की गई तो भाजपा नेताओं से भी यह सवाल पूछा गया। भाजपा के बाकी नेताओं ने तो लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखने की बात कहीं, लेकिन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कह दिया कि नीतीश कुमार स्वाभाविक तौर पर बिहार में बड़े भाई की भूमिका में हैं।

ऐसे में बड़ी बहस छिड़ी हुई है कि राजग आगामी लोकसभा चुनाव में किस तरह उतरेगा। राजग की बैठक में राजग के ही अंदर के सबसे बड़े सवाल पर खुलकर बात नहीं होने की वजह भी सामने आई। वजह यह कि लोकसभा चुनाव में बिहार के घटक दलों के कारण भाजपा को ही अपने सांसदों की कुर्बानी देनी है। कुर्बानी किन-किन नाम की होगी और उसका क्या असर पड़ेगा, इसका अध्ययन अभी बाकी है। भाजपा को राजग में रखने के लिए जदयू और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में से एक को चुनना होगा, यह भी एक मुद्दा है। इन सवालों के अध्ययन के बाद ही भाजपा कोई स्टैंड सामने लाना चाह रही है। यही कारण है कि बैठक में इसपर कुछ खास बात नहीं हो सकी।

जदयू रहेगा ‘बड़े भाई’ की भूमिका में- जनता दल यू के इस शिगूफे को सीधे-सीधे प्रेशर पॉलीटिक्स के रूप में देखा जा रहा है। बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से 22 पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन में जदयू को दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की लहर में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी छह सीटें निकाल ले गई थी। रालोसपा तीन सीट पर है, हालांकि उसके एक सांसद केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा से अलग राह पर चल रहे हैं। अब तक की स्थिति यह है कि लोजपा अपने सीटिंग छह सांसदों में से एक की भी कटौती के लिए तैयार नहीं है। रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा अरसे से नीतीश कुमार विरोधी राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के राजग से हटने पर कुशवाहा वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने इनका साथ लिया था।

अब जब जदयू लोकसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका मांग रहा है तो वह 2009 की स्थिति भी याद दिला रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने 25 और भाजपा ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2014 के चुनाव में जदयू के अगल होने से भाजपा को ज्यादा सीटों पर मौका मिला, लेकिन इस बार वह अगर राजग के अन्य घटकों लोजपा (6) और रालोसपा (3) को कटौती नहीं कर सका तो अपने 22 सांसदों में से कुछ का टिकट काटना उसकी मजबूरी होगी। लोकसभा उपचुनाव में जदयू देख चुका है कि वह पूरी ताकत लगाकर भी राजद-कांग्रेस से सीट नहीं छीन सका है, इसलिए राजग की जीती 31 (22+6+3) सीटों को छोड़ वह किसी अन्य को लेकर समझौते के मूड में भी नहीं रहेगा।

पटना का चेहरा बदलेगा, पार्टी नहीं

पटना साहिब लोकसभा सीट के भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा को लेकर भाजपा के अंदर अब स्पष्ट राय हो गई है। सिर्फ पार्टी ही नहीं, बल्कि कैडर स्तर पर यह मान लिया गया है कि अब लालू-तेजस्वी की पैरोकारी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक के खिलाफ बोलने वाले सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट कट जाएगा। इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि पटना साहिब में प्रत्याशी का चेहरा तो बदलेगा, लेकिन भाजपा के गढ़ में किसी घटक दल का कोई चेहरा नहीं उतरेगा। इसके लिए भाजपा के अंदर भी नेताओं में खलबली मची हुई है। सीट खाली होने के पहले ही सीट लूटने के लिए दिल्ली तक की दौड़ बहुत तेजी और पूरी तन्मयता से चल रही है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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