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Hot Seat Haridwar: हरिद्वार में दो रावत प्रत्याशियों में कड़ा मुकाबला, एक पूर्व मुख्यमंत्री तो दूसरा पूर्व CM का बेटा

Lok Sabha Election 2024: 1977 से पहले हरिद्वार का इलाका बिजनौर लोकसभा सीट के अंतर्गत आता था। 1977 में हरिद्वार लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और सर्वाधिक छह बार भाजपा ने जीत हासिल की है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 15 April 2024 11:41 AM IST
Former Chief Minister Trivendra Singh, Virendra Rawat, Lok Sabha Election 2024
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पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह वीरेंद्र रावत (photo: social media )

Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड में लोकसभा के पांच सीटें हैं मगर सबकी निगाहें हरिद्वार लोकसभा सीट पर टिकी हुई हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री को चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे को मैदान में उतार कर भाजपा को कड़ी चुनौती देने की कोशिश की है। भाजपा ने इस बार हरिद्वार में दो बार सांसद रहे पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काटकर एक और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनावी अखाड़े में उतारा है।

त्रिवेंद्र सिंह को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को प्रत्याशी बनाकर 15 साल पुराना इतिहास दोहराने की कोशिश की है। हरीश रावत हरिद्वार से सांसद रह चुके हैं और उनकी इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ मानी जाती है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा इस सीट पर हैट्रिक लगाने में कामयाब होती है या कांग्रेस 2009 के बाद एक बार फिर इस सीट पर विजय पताका फहराती है। हरिद्वार में काफी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं के होने के कारण बसपा मुखिया मायावती ने पूर्व विधायक जमील अहमद को उतार कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।

भाजपा ने छह बार हासिल की है जीत

1977 से पहले हरिद्वार का इलाका बिजनौर लोकसभा सीट के अंतर्गत आता था। 1977 में हरिद्वार लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और उसके बाद इस सीट पर सर्वाधिक छह बार भाजपा ने जीत हासिल की है। 1977 से लेकर 2019 तक इस सीट पर भाजपा सर्वाधिक छह बार, एक बार बीएलडी, एक बार जेएनपी-एस और एक बार समाजवादी पार्टी जीत दर्ज कर चुकी है। कांग्रेस इस सीट पर तीन बार जीत हासिल कर चुकी है।

आखिरी बार कांग्रेस की ओर से 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह सीट जीती थी। 2014 और 2019 में भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को इस सीट पर जीत हासिल हुई थी। ऐसे में सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि भाजपा इस बार हैट्रिक लगाने में कामयाब होगी या कांग्रेस 15 साल बाद पुराना इतिहास दोहराएगी।


दो रावत प्रत्याशियों के बीच मुकाबला

हरिद्वार लोकसभा सीट के अंतर्गत 14 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें 11 हरिद्वार जिले की और तीन देहरादून जिले की हैं। हरिद्वार की 11 में से तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा, पांच पर कांग्रेस, दो पर बसपा व एक पर निर्दलीय का कब्जा है। वहीं राजधानी देहरादून जिले की धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश सीटों पर भाजपा विधायकों का कब्जा है।

भाजपा ने इस बार प्रत्याशी बदलने का दांव खेलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की जगह एक और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है। कांग्रेस की ओर से पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत उन्हें चुनौती दे रहे हैं।

हरीश रावत की इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ मानी जाती है और वे 2009 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जीत चुके हैं। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी रेणुका रावत को भाजपा प्रत्याशी निशंक से हार का सामना करना पड़ा था ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि हरीश रावत के बेटे इस बार भाजपा से अपनी मां की हार का बदला ले पाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।


इस सीट पर दो बार हार चुकी हैं मायावती

हरिद्वार लोकसभा सीट के साथ एक दिलचस्प तथ्य यह भी जुड़ा हुआ है कि इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर लड़ चुकी हैं। हालांकि दोनों ही चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। बाद में मायावती ने उत्तर प्रदेश की सियासत में अपनी ताकत दिखाई थी।


बसपा ने उतारा मुस्लिम उम्मीदवार

उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता भी काफी संख्या में है और मायावती ने इस बार इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को चुनौती देने की कोशिश की है। हरिद्वार में 27 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाताओं का समीकरण साधने के लिए बसपा मुखिया मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की जानसठ सीट से विधायक रहे जमील अहमद को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है।

रविवार को मुजफ्फरनगर की चुनावी सभा के दौरान मायावती ने इस बात का प्रमुखता से उल्लेख भी किया था। बसपा मुखिया ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।


हरिद्वार का जातीय समीकरण

हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में मायावती ने मुसलमानों उम्मीदवार यूं ही नहीं उतारा है। हरिद्वार में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात की जाए तो करीब 27 प्रतिशत मुस्लिम, 24 प्रतिशत ठाकुर, 22 प्रतिशत ब्राह्मण और 22 प्रतिशत एससी-एसटी व पांच प्रतिशत अन्य हैं। मायावती की ओर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने से कांग्रेस को सियासी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है।

ब्राह्मण और एससी-एसटी होंगे निर्णायक

दोनों रावत प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने के कारण ठाकुर वोटों का ब॔टवारा होना तय माना जा रहा है। ऐसे में ब्राह्मण और एससी-एसटी मतदाता निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं।

हरिद्वार के मतदाता चौंकाने वाला फैसला लेने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राजेंद्र कुमार को जीत दिला दी थी।

उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मतदाता हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में ही हैं और ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इस बार यहां के मतदाता पूर्व मुख्यमंत्री को जीत दिलाते हैं या दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री की बेटे को विजयी बनाते हैं।


राज्य बनने के बाद चार चुनावों के नतीजे

2004

भाजपा- 1,17,979(24.25 प्रतिशत)

कांग्रेस- 76,001(15.72 प्रतिशत)

अन्य- 50.13 प्रतिशत

2009

भाजपा- 2,04,823(25.99 प्रतिशत)

कांग्रेस- 3,32,235(42.16 प्रतिशत)

अन्य- 31.85 प्रतिशत

2014

भाजपा- 5,92,320(50.38 प्रतिशत)

कांग्रेस- 4,14,498(35.25 प्रतिशत)

अन्य- 14.37 प्रतिशत

2019

भाजपा- 6,65,674(52.28 प्रतिशत)

कांग्रेस- 4,06,945(31.96 प्रतिशत)

अन्य- 15.76 प्रतिशत



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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