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Bihar: बिहार में बदलाव के बाद अब हरिवंश के भविष्य पर निगाहें, आखिर नीतीश कुमार क्या लेंगे फैसला

Bihar News: भाजपा और जदयू के बीच पैदा हुई तनातनी के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं, हरिवंश को 14 सितंबर 2020 को दूसरी बार राज्यसभा का उपसभापति चुना गया था।

Anshuman Tiwari
Published on: 10 Aug 2022 11:53 AM IST
Harivansh Narayan Singh
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Harivansh Narayan Singh Deputy Chairman of Rajya Sabha (image social media)

Bihar News: बिहार में नीतीश कुमार ने बड़ा सियासी खेला कर दिया है। भाजपा को बड़ा झटका देते हुए नीतीश कुमार ने एक बार फिर राजद से हाथ मिला लिया है। भाजपा ने नीतीश कुमार के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है और इसे 2020 के चुनाव में मिले जनादेश का अपमान बताया है। भाजपा और जदयू के बीच पैदा हुई इस तनातनी के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। हरिवंश को 14 सितंबर 2020 को दूसरी बार राज्यसभा का उपसभापति चुना गया था। अब सबकी निगाहें हरिवंश के संबंध में नीतीश कुमार के फैसले पर टिकी हुई हैं।

नीतीश कुमार का कड़ा तेवर

नीतीश कुमार ने मंगलवार को भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ते हुए तीखे तेवर दिखाए थे। नीतीश कुमार का कहना था कि भाजपा ने उन्हें बार-बार अपमानित और परेशान किया है। इसीलिए हमने अपने सांसदों और विधायकों से व्यापक चर्चा करने के बाद एनडीए से बाहर जाने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि हमने जिन्हें बनाया, वही लोग जदयू तोड़ने में लगे हुए थे। उनका यह भी कहना था कि पिछले विधानसभा चुनाव में हमें कम सीटें हासिल हुई थीं।

भाजपा के अनुरोध करने पर ही मैंने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। सियासी जानकारों का मानना है कि बिहार में हुए इस बड़े सियासी बदलाव का असर संसद पर भी पड़ सकता है। उपराष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद अब जगदीप धनखड़ राज्यसभा के नए सभापति होंगे। धनखड़ के साथ कोई नया उपसभापति भी दिख सकता है।

क्या बन रही संभावनाएं

दरअसल राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जदयू के राज्यसभा सदस्य हैं। जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ते समय जो कड़ा तेवर दिखाया है, उसे देखते हुए वे हरिवंश को भी उपसभापति पद से इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं। हालांकि नीतीश कुमार ने अभी तक इस बाबत कोई बयान नहीं दिया है। भाजपा से उनकी भारी नाराजगी को देखते हुए इस तरह का अनुमान लगाया जा रहा है।

नीतीश कुमार को सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाता है और एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि हरिवंश के भविष्य का फैसला वे पीएम मोदी पर भी छोड़ सकते हैं। हो सकता है कि वे हरिवंश के संबंध में कोई फैसला न लेकर भाजपा नेतृत्व पर फैसला छोड़ दें। ऐसी स्थिति में भाजपा नेतृत्व को ही यह फैसला लेना होगा कि वह हरिवंश को राज्यसभा के उपसभापति पद पर बनाए रखना चाहता है या नहीं।

हरिवंश का रुख भी काफी महत्वपूर्ण

वैसे इस पूरे प्रकरण में हरिवंश का रुख भी काफी महत्वपूर्ण होगा। हाल के दिनों में नीतीश कुमार को आरसीपी सिंह के प्रकरण से काफी करारा झटका लगा है। जदयू नेताओं की ओर से आरसीपी सिंह पर भाजपा के साथ मिलीभगत करके जदयू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश का आरोप लगाया जाता रहा है।

इसी कारण नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह का राज्यसभा टिकट भी काट दिया था। जिसके बाद आरसीपी को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हरिवंश का अपना रुख भी काफी महत्वपूर्ण हो गया है। नीतीश यह परखना चाहेंगे कि कहीं हरिवंश भी आरसीपी की तरह भाजपा के साथ सांठगांठ का कोई खेल न कर दें।

आसान नहीं हटाने की प्रक्रिया

वैसे अगर हरिवंश हो तो राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें हटाने की प्रक्रिया आसान नहीं होगी। इसके लिए भाजपा को कानून या संसदीय नियमों के गंभीर उल्लंघन के आरोप में दो तिहाई वोटों से उन्हें हटाने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। भाजपा के लिए चाहकर भी यह आसान काम नहीं होगा।

वैसे राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन में हरिवंश का रुख अभी तक भाजपा नेताओं को पसंद आता रहा है। राज्यसभा में तीन कृषि कानूनगो को पारित कराने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी जिसे लेकर बाद में काफी विवाद भी हुआ था।

चटर्जी ने कर दिया था इस्तीफे से इनकार

वैसे अगर इस तरह के पुराने मामले को याद किया जाए तो 2008 में सीपीएम और लेफ्ट ब्लॉक ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उस समय सीपीएम के सांसद सोमनाथ चटर्जी लोकसभा के स्पीकर थे और उन्होंने पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। सीपीएम की ओर से चटर्जी को इस्तीफा देने का निर्देश भी दिया गया था मगर सोमनाथ चटर्जी ने यह कहते हुए इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था।

लोकसभा के स्पीकर के रूप में वे किसी भी दल का प्रतिनिधित्व नहीं करते। उनका यह भी कहना था कि सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के बाद वे लोकसभा के स्पीकर बने हैं। इसलिए इस्तीफा देने का कोई सवाल नहीं है। चटर्जी के इस रवैए से नाराज होकर सीपीएम ने बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।



Prashant Dixit

Prashant Dixit

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