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Rajya Sabha: हरिवंश नहीं छोड़ेंगे राज्यसभा के उपसभापति का पद, नीतीश के फैसले का नहीं होगा असर
Rajya Sabha JDU: बिहार में जदयू के भाजपा से नाता तोड़ने का बड़ा असर हुआ है। नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होकर नई सरकार का गठन कर लिया है।
Rajya Sabha JDU: बिहार में जदयू के भाजपा से नाता तोड़ने का बड़ा असर हुआ है। नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होकर नई सरकार का गठन कर लिया है। नीतीश के इस बड़े फैसले के कारण पटना से लेकर दिल्ली तक के सियासी समीकरण पर असर पड़ा है। ऐसे में जदयू के सदस्य और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। राजनीतिक हलकों में उनके भविष्य को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
इस बीच हरिवंश के करीबी जदयू के वरिष्ठ नेता का कहना है कि हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा नहीं देंगे। नाम न छापने की शर्त पर इस नेता का कहना है कि हरिवंश एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के दौरान वे किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं होते। ऐसे में हरिवंश के अपना पद छोड़ने की कोई संभावना नहीं है।
अपने पद पर बने रहेंगे हरिवंश
भाजपा से जदयू के रिश्तो पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 9 अगस्त को पटना में पार्टी सांसदों की बैठक भी बुलाई थी मगर इस बैठक में हरिवंश ने हिस्सा नहीं लिया था। जदयू नेता ने कहा कि हरिवंश के बैठक में हिस्सा न लेने के संबंध में स्पष्ट बात तो यह है कि नीतीश कुमार की ओर से हरिवंश को बैठक में आमंत्रित ही नहीं किया गया था। इस कारण वे बैठक में हिस्सा लेने के लिए पटना नहीं गए थे। हालांकि उनके मन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति काफी सम्मान का भाव है।
उन्होंने कहा कि नीतीश के प्रति सम्मान का भाव रखने के बावजूद हरिवंश उपसभापति का पद नहीं छोड़ेंगे। वे एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं और इस पद पर चुना जाने वाला व्यक्ति 6 वर्षों तक अपने पद पर बना रहता है। इसलिए बिहार में हुए सियासी बदलाव का हरिवंश के पद छोड़ने से कोई कनेक्शन नहीं है। हरिवंश को 14 सितंबर 2020 को दूसरी बार राज्यसभा के उपसभापति के रूप में चुना गया था। उनके करीबी नेता ने कहा कि पार्टी से गहरा नाता होने के बावजूद हरिवंश के पद से इस्तीफा देने की कोई संभावना नहीं है।
राजनीतिक स्थितियां बदलने का असर नहीं
लोकसभा के एक पूर्व महासचिव का भी कहना है कि लोकसभा स्पीकर, उपाध्यक्ष और राज्यसभा के उपसभापति का पद संवैधानिक होता है। इसलिए राजनीतिक स्थितियों में बदलाव का उसके पद पर कोई असर नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस बात से कोई अंतर नहीं होता कि उनका दल सत्ता में है या विपक्ष में। उन्होंने कहा कि राज्यसभा के उपसभापति की जिम्मेदारी सदन के नियमों का पालन कराना है। संविधान ही उनके लिए सर्वोच्च होना चाहिए।
पूर्व में भी ऐसे कई उदाहरण
उन्होंने पूर्व के कई उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि पीजे कुरियन को 2012 में राज्यसभा का उपसभापति चुना गया था जबकि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने जीत हासिल की थी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे। इसके बावजूद कुरियन ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया था और वे 2018 तक अपने पद पर बने रहे।
राज्यसभा के उपसभापति के रूप में नजमा हेपतुल्ला के कार्यकाल के दौरान चार बार सरकारें बदलीं मगर वे हमेशा अपने पद पर बनी रहीं। उन्होंने लोकसभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का उदाहरण भी दिया। 2008 में माकपा ने यूपीए सरकार से अमेरिकी परमाणु समझौते के खिलाफ समर्थन वापस ले लिया था। इसके बावजूद सोमनाथ चटर्जी ने लोकसभा के स्पीकर के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया।