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हरियाली की एक झलक: उत्तराखंड में विलेज टूरिज्म की शुरुआत 

raghvendra
Published on: 8 Dec 2017 1:43 PM IST
हरियाली की एक झलक: उत्तराखंड में विलेज टूरिज्म की शुरुआत 
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देहरादून: विलेज टूरिज्म यानी गांव की जिंदगी का आनंद। तेजी से होते शहरीकरण और शहरीकरण से हाईटेक होने की अंधी दौड़ से अब कहीं उकताहट भी शुरू हो गई है। इंसान अब इस अंधी दौड़ से ऊब चुका है। वह प्रकृति के करीब जाना चाहता है,लेकिन वह नेचर से इतना आगे निकल आया है कि अब नेचर ने उसका साथ छोड़ दिया है। शहरों में उगे कंक्रीट के जंगल में अब इंसानों का दम घुटने लगा है। हरियाली की एक झलक के लिए आंखें तरस रही हैं, लेकिन कुंवर बेचैन की इन लाइनों की तरह न कोई अक्स न आवाज न चेहरा होगा, दूर तक एक झुलसता हुआ सहरा होगा, कुछ नजर नहीं आ रहा।

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। इसीलिए दुनिया के तमाम मुल्कों से निकलकर एक शब्द आया विलेज टूरिज्म। उत्तराखंड में भी गांव के गांव खाली हो चुके हैं। लोग शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। उनके लिए गांव में कुछ नहीं बचा है। यह हालात देखकर शहरी प्रभाव से बिल्कुल अछूते गांवों को लेकर उत्तराखंड ने ग्रामीण पर्यटन विकसित करने की अभिनव योजना बनाई है।

अनदेखे स्थलों का भ्रमण कराने की योजना

अमेरिका, यूरोप और मिडिल ईस्ट के पर्यटक अब उत्तराखंड के गांवों में कोदों-झंगोरा खाकर अनछुए अनदेखे स्थलों का भ्रमण करेंगे जो दुनिया के किसी भी मैप में टूरिस्ट प्लेस के रूप में नहीं मिलेंगे। ये पर्यटक दिन भर मखमली बुग्यालों में धूप सकेंगे। आपको बता दें बुग्याल बर्फ से ढके पहाड़ और पेड़ों की शृंखला के बीच का वह हरा-भरा मैदानी भाग होता है जिसे चरवाहे अपने जानवरों को चराने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

पर्यटक ऐसी जगह बैठकर धूप सेकेंगे और शाम को छानियों यानी पहाड़ी रसोइयों में कोदों (एक प्रकार का मोटा अनाज) जिसे मड़ुआ भी कहते हैं, की रोटी और आलू मूली की थिच्वाणी का स्वाद चखेंगे। गढ़वाली थाल में मंडवे की रोटी या पूड़ी के अलावा झंगोरे का भात, झंगोरे की खीर, आलू का थिच्वाणी, दो साग व पहाड़ी दाल के अलावा छांछ आदि शामिल होता है। पर्यटकों को यह सबकुछ परोसा जाएगा। त्रिवेंद्र सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की कमाई भी होगी और सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा।

ग्रामीणों के खातों में जाएगा मिला पैसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबका साथ सबका विकास की नीति के तहत पर्यटकों से मिलने वाला पैसा भी सीधे लाभार्थी ग्रामीणों के खातों में डाला जाएगा। उत्तराखंड में विलेज और इको टूरिज्म पर बातें तो काफी समय से हो रही थीं, लेकिन इसे अमली जामा पहनाने की दिशा में त्रिवेंद्र सरकार ने ही कदम उठाया है। अभी तक छिटपुट तौर पर विलेज या इको टूरिज्म में रुचि रखने वाले सैलानियों को टूरिस्ट एजेंट गांव में ठहराते और घुमाते थे। इससे ग्रामीणों को उनका वाजिब मेहनताना भी नहीं मिल पाता था।

अब उत्तराखंड सरकार ने इसे विस्तृत रूप दिया है। इसके तहत विदेशों से पर्यटकों के दो समूह बनाए जाएंगे। हर समूह में सौ पर्यटक रहेंगे। इनमें से एक समूह को गढ़वाल भेजा जाएगा तथा दूसरे को कुमाऊं क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों का भ्रमण कराया जाएगा। ये पर्यटक ग्रामीणों के साथ उनके घरों में रहेंगे। उनके साथ खाएंगे। आसपास के इलाके घूमेंगे। फिर वह दूसरे, तीसरे या चौथे गांव में जाएंगे। प्रत्येक समूह को तीन से चार गांव व आसपास के क्षेत्र घुमाने की योजना है।

छोडऩे वाले गांवों पर ज्यादा फोकस

मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार डॉ. केएस पंवार ने बताया कि योजना के तहत उन घरों और गांवों पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है जहां से ज्यादा लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं। स्थानीय लोग ऐसे गांवों में खाली घरों व कमरों को सैलानियों के लिए तैयार करेंगे। सरकार उन गांवों में पर्यटक भेजेगी। इन्हें खिलाने-पिलाने व घुमाने की जिम्मेदारी ग्रामीणों की होगी। ग्रामीण पर्यटन के तहत दस, बीस व तीस दिन का पैकेज तैयार किया जा रहा है। पैकेज के हिसाब से पर्यटकों से अलग-अलग धनराशि ली जाएगी। पर्यटक जितने दिन जिस गांव में जिस परिवार के साथ रुकेंगे उस परिवार के खाते में उतनी धनराशि डाली जाएगी। इससे ग्रामीण पर्यटकों के लिए परेशान नहीं होंगे और नए अछूते पर्यटन स्थल विकसित होंगे।

पर्यटकों को पहाड़ से परिचित कराना मकसद

इस योजना का उद्देश्य विदेशी पर्यटकों को पहाड़ की वेशभूषा, भोजन, जीवन शैली और बोली से परिचित कराना है। ये सैलानी एकदम से तो पहाड़ की बोली भाषा समझ नहीं सकेंगे, लेकिन उस लहजे से जरूर परिचित होंगे। ग्रामीणों और विदेशियों के बीच एक संवाद कायम होगा जिसमें दोनों एक-दूसरे की बात समझ सकेंगे। यह एक अलग तरह का पर्यटन होगा जो एक ओर उन्हें प्रकृति के करीब ले जाएगा और दूसरे ग्रामीण जीवन की बारीकियों से परिचित कराएगा। इस पर्यटन की अवधि में वह शहरी दुनिया से एकदम दूर होकर एक नई दुनिया का अनुभव कर सकेंगे।

ध्यान देने की बात यह है कि फिलहाल यह योजना सिर्फ विदेशी सैलानियों के लिए है। पहले चरण में विदेशी सैलानियों को ले जाने के लिए गांवों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। पर्यटन की अनुकूलता देखकर सबसे पहले विदेशी सैलानियों को चयनित गांवों में ले जाया जाएगा। पहले चरण के बाद कोई भी देशी पर्यटक इन गांवों में पर्यटन की योजना का आनंद ले सकता है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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