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Haryana Election 2024: हरियाणा के क्षेत्रीय दलों में किंगमेकर बनने की जंग, भाजपा-कांग्रेस के मुकाबले में आप का बड़ा दावा
Haryana Election 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
Haryana Election 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इस बार फिर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हो रहा है। दोनों दलों की ओर से एक-दूसरे को शिकस्त देने के दावे के साथ तीखे हमले किए जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने भी राज्य की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार कर इन दोनों दलों की टेंशन बढ़ा रखी है।
हरियाणा की सियासत में सक्रिय क्षेत्रीय दलों ने भी पूरी ताकत लगा रखी है और इन दलों के बीच किंगमेकर बनने की जंग दिख रही है। क्षेत्रीय दलों की ओर से दावा किया जा रहा है कि चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद उनकी भूमिका काफी अहम होगी। इस बीच आम आदमी पार्टी की ओर से भी असली किंगमेकर बनने के दावे किए जा रहे हैं।
गठबंधन के जरिए ताकत दिखाने की कोशिश
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इनेलो ने इस बार बहुजन समाज पार्टी और गोपाल कांडा की हिलोपा के साथ गठबंधन कर रखा है। इनेलो ने बसपा को 37 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया है जबकि बाकी बची 53 सीटों पर पार्टी की ओर से अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की जा रही है।
जजपा के नेता दुष्यंत चौटाला के लिए यह चुनाव वजूद बचाने की लड़ाई माना जा रहा है। जजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए नगीना के सांसद चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया है। हरियाणा के दोनों प्रमुख क्षेत्रीय दलों की ओर से किए गए गठबंधन से एक बात साफ हो गई है कि उनकी निगाहें राज्य के दलित वोटों पर लगी हुई हैं।
किंगमेकर बनने में ज्यादा दिलचस्पी
हरियाणा के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी जानकारों का मानना है कि क्षेत्रीय दलों की ओर से किंग बनने से ज्यादा किंगमेकर बनने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल क्षेत्रीय दल सत्ता की कुंजी अपने हाथ में रखना चाहते हैं क्योंकि इससे आने वाले दिनों में उनकी भूमिका अहम बनी रहेगी।
2019 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 10 सीटों पर जीत हासिल करने वाली जजपा के नेता दुष्यंत चौटाला एक बार फिर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल की थी और इसके दम पर राज्य के डिप्टी सीएम बनने में कामयाब हुए थे मगर अब भाजपा ने जजपा से अपनी सियासी राहें अलग कर ली हैं।
कम मार्जिन से होगा हार-जीत का फैसला
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अभी तक मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता रहा है। हाल में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों दलों के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था और दोनों पार्टियां पांच-पांच सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है।
दोनों दलों की ओर से ओबीसी, दलित और जाट मतदाताओं को साधने का प्रयास किया जा रहा है। कड़े मुकाबले को देखते हुए विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में हार-जीत का फैसला काफी कम वोटों से होने की उम्मीद जताई जा रही है।
दोनों दलों को अपने दम पर बहुमत न मिलने की स्थिति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका काफी अहम हो जाएगी और यही कारण है कि क्षेत्रीय दलों की ओर से किंगमेकर बनने का प्रयास किया जा रहा है।
आप ने भी किया किंग मेकर बनने का दावा
आम आदमी पार्टी ने लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन करके लड़ा था। कांग्रेस की ओर से आप को सिर्फ कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट दी गई थी मगर इस सीट पर पार्टी के प्रत्याशी सुशील गुप्ता को नवीन जिंदल के हाथों चुनावी हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया है जिसके बाद आप ने राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं।
आप नेताओं की ओर से दावा किया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद पार्टी किंगमेकर की भूमिका में दिखेगी। 2019 के विधानसभा चुनाव में आप ने 46 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे मगर पार्टी को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। इस बार आप ने राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। पार्टी को इस बार दिल्ली और पंजाब से सटे इलाकों की सीटों से काफी उम्मीदें हैं।
देवीलाल की विरासत की भी जंग
2019 के विधानसभा चुनाव में जजपा ने जाट वोटों के दम पर कमाल दिखाते हुए 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद जजपा किंगमेकर भूमिका में आ गई थी और इसी कारण दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बनने में कामयाब हुए थे। हालांकि लोकसभा चुनाव से पूर्व उनका भाजपा के साथ गठबंधन टूट गया था।
इस बार दुष्यंत चौटाला ने नगीना के सांसद चंद्रशेखर की आजाद पार्टी से गठबंधन करके अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है। भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद इस बार का विधानसभा चुनाव दुष्यंत चौटाला के लिए ‘करो या मरो’ की लड़ाई माना जा रहा है क्योंकि जजपा और इनेलो के बीच देवीलाल की विरासत पर काबिज होने की जंग छिड़ी हुई है।
क्षेत्रीय दलों की भूमिका होगी अहम
दूसरी ओर ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय सिंह चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने बसपा और गोपाल कांडा की हिलोपा के साथ गठबंधन करके अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है। गठबंधन के नेताओं ने अभय चौटाला को सीएम फेस घोषित कर रखा है। बसपा मुखिया मायावती ने भी इस बात का ऐलान कर दिया है।
2019 में इनेलो की ओर से सिर्फ अभय चौटाला एक सीट हासिल करने में कामयाब हुए थे मगर इस बार वे किंगमेकर बनने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सियासी जानकारों का भी मानना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों की भूमिका अहम होगी और इसलिए किंगमेकर बनने की जंग काफी तीखी हो गई है।।