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हिमाचल में 4 साल में 167 पनबिजली प्रोजेक्ट
शिमला: हिमाचल प्रदेश की इन परियोजनाओं से लगभग 27,000 मेगावाट बिजली पैदा होने की बात कही जा रही है। राज्य सरकार का कहना है कि इस अवधि के दौरान 2,067 मेगावाट क्षमता वाली 31 परियोजनाएं शुरू की गईं, जिसमें 800 मेगावाट की कोल डैम, 412 मेगावाट की रामपुर, 130 मेगावाट की काशांग और 520 मेगावाट की परबती परियोजनाओं सहित अन्य परियोजनाएं शामिल हैं। हिमाचल में 27,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता में से अभी तक केवल 10,400 मेगावाट का ही उत्पादन किया जा सका है। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड ने 300 मेगावाट क्षमता वाली करीब २२ परियोजनाओं का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। 18 मेगावाट की परियोजना को कुल्लू जिले के रैसान में प्रारंभिक आधार पर क्रियान्वित किया जाएगा, जिसके लिए विश्व बैंक वित्तीय मदद देगा।
सुरक्षा है बड़ा मुद्दा
पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सुरक्षा एक बड़ा मसला रहता है। इसलिये सरकार ने सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण प्राधिकरण बनाया है। सरकार का दावा है कि दुर्घटनाओं से बचने के लिए चालू परियोजनाओं के अनिवार्य निरीक्षण सुनिश्चित किया गया है और बाढ़ सुरक्षा उपाय लागू किए गए हैं। परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी के लिए एक इकाई भी स्थापित की गई है। पनबिजली क्षेत्र के धीमे प्रदर्शन की बात स्वीकारते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसके लिए सरकार की नीति को बदलने की आवश्यकता बताई है।
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किसानों ने किया विरोध
इस बीच कुल्लू जिले के पखनोज नाले में लगने वाली पनबिजली परियोजना के विरोध में तीन पंचायतों के लोग मुखर हो गए हैं। किसानों ने पनबिजली परियोजना के विरोध को लेकर एक बैठक की और निर्णय लिया किया कि परियोजना का पुरजोर विरोध जारी रखा जाएगा। आगामी रणनीति को कामयाब करने के लिए किसानों ने ‘फार्मर एसोसिएशन’ का गठन किया है। एसोसिएशन का कहना है कि इस नाले से तीन पंचायतों के लगभग डेढ़ दर्जन गांवों को पपानी सप्लाई की जा रही है। वहीं नाले का पानी किसानों की कृषि बागवानी का मुख्य स्रोत है। परियोजना के बनने से कृषि प्रभावित होगी। प्रस्तावित पावर हाउस से 150 मीटर देवता का स्थान है। इससे लोगों की आस्था पर ठेस पहुंचेगी। एसोसिएशन ने प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को पत्र लिखकर मांग करते हुए कहा है कि परियोजना को जो स्वीकृति दी गई है उसे तुरंत रद्द किया जाये।
पर्यावरणविदों ने आगाह किया
पन बिजली परियोजनाओं का पर्यावरणविद पुरजोर विरोध करते रहे हैं। इनका कहना है कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई व सुरंग खोदने, नदियों के साथ खिलवाड़ करने के नतीजे अत्यंत भयावह होंगे। पर्यावरण गिरावट के अलावा, पनबिजली क्षमता का अत्यधिक दोहन से नदियां लगभग अदृश्य हो जाएंगी, जिस से स्थानीय लोगों के जीवन और दीर्घकालिक आजीविका पर प्रभाव पड़ेगा। विरोधियों का कहना है कि यदि सतलुज नदी पर खाब से कोल डेम तक 230 किलोमीटर लंबाई में सभी पन विद्युत परियोजनाएं बनाई जाती हैं, तो ज्यादातर प्रवाह सुरंगों के माध्यम से होगा। 1500 मेगावाट नाथपा झाकड़ी परियोजना में एक 27.4 किलोमीटर लंबी सुरंग है, इस से भी लम्बी 38 किलोमीटर सुरंग ७७५ मेगावाट लूहरी परियोजना के लिए योजना प्रस्तावित है। नाथपा-झाकड़ी परियोजना के दूसरे चरण में १२ किमी की सुरंग है, जो 412 मेगावाट रामपुर परियोजना के लिए है, जबकि कमीशन की गई 1000 मेगावाट करचम-वांग्टू परियोजना की 17.2 किलोमीटर लंबी सुरंग है। इसी तरह, पांच अन्य प्रस्तावित परियोजनाओं में 18-25 किलोमीटर लंबी सुरंगें बनेगी और नदी की 170 से अधिक किमी लंबाई गायब हो जाएगी । 450 छोटी बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं का झरना जैसा रूप विनाशकारी होगा। जो लोग छोटी नदियों या खड्ड़ों पर निर्भर हैं उनका तो सबसे बुरा हाल होना तय है। मुख्य नदियों की बजाये ज्यादातर आबादी छोटी नदी नालों व पर निर्भर है। ये आबादी मध्यम व अधिक ऊंचाई वाले गांवों में स्थित हैं। सुरंग निर्माण से निकली गाद के ढेर ने तापमान तथा वर्षा चक्र तक को बदल डाला है। जिस का प्रभाव कृषि, बागवानी व पशुपालन पर नजर आ रहा है। परियोजनाओं को अनियोजित ढंग से कार्यान्वित किया जा रहा है और उन सभी परियोजना इकाइयों को आने की अनुमति दी जाती है, जैसे कि शिमला की नोग्ली खड्ड में आठ प्रॉजेक्ट और पारिस्थितिकी नाजुक चंबा के छन्जू नाले में पांच प्रॉजेक्ट होंगे। स्वीडन जैसे देशों में इसके विपरीत, पनबिजली क्षमता का 20 फीसदी पर्यावरण की रक्षा के लिए छोड़ दिया गया है।