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ठियोग में बीजेपी कांग्रेस को मिला ठेंगा, सीट माकपा के कब्जे में
शिमला : हिमाचल प्रदेश की ठियोग विधानसभा सीट से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार राकेश सिंघा ने जीत दर्ज की है। माकपा की ओर से जारी बयान के अनुसार, "इस जीत की ज्यादा महत्ता है, क्योंकि यह जीत दो बड़ी पार्टियों के बीच भारी ध्रुवीकरण के बावजूद मिली है।"
बयान के अनुसार, "यह जीत ठियोग विधानसभा के लोगों द्वारा उनके अधिकारों की रक्षा करने और जनहित में कार्य करने के लिए माकपा पर जताए गए भरोसे को दिखाता है।"
ये कहा था हमने
हिमाचल चुनाव : ठियोग में कांग्रेस के दुर्ग में सेंध लगा पाएगी BJP ?
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में जीत दर्ज करने और राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने के लिए पार्टियों ने एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। जहां कुछ सीटों पर उम्मीदवार अपनी साख बचाने और कुछ दोबारा वापसी को लेकर जनता के बीच पहुंचे हैं, तो वहीं कुछ दिग्गज नेताओं ने क्षेत्र में अपनी जड़ें कमजोर होती देख खुद ही पीछे हटने का फैसला किया है।
हिमाचल चुनाव में एक सीट ऐसी है जहां इस बार एक राजनीतिक शख्सियत और कद्दावर नेता की राजनीति का अंत हो गया है। यह कद्दावर नेता कांग्रेस की विद्या स्टोक्स हैं।
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हिमाचल प्रदेश विधानसभा सीट संख्या-61 यानी ठियोग विधानसभा। जिला शिमला और लोकसभा क्षेत्र शिमला का यह विधानसभा क्षेत्र अनारक्षित है। वर्तमान में इस क्षेत्र की कुल आबादी 95,000 के करीब है, जिसमें से कुल मतादाताओं की संख्या 76,991 है। ठियोग में मुख्य रूप से हिदी और पहाड़ी भाषा बोली जाती है। यहां लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है। ठियोग को एशिया में सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता है। ठियोग का पहाड़ी लोक संगीत में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लाइक राम रफीक यहां के प्रसिद्ध गीत लेखक रहे हैं।
पहले कांग्रेस का जलवा !
ठियोग में हुए 1952 से अब तक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 दफा जीत हासिल की है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक बार, जनता पार्टी ने एक बार और दो बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव में बाजी मारी है। ठियोग में कांग्रेस की कद्दावर नेता रहीं विद्या स्टोक्स को क्षेत्रीय राजनीति में अपनी पकड़ के लिए जाना जाता है। उन्होंने यहां से 1982,1985,1990,1998 और 2012 में पांच बार चुनाव जीता है। विद्या को पूरे हिमाचल में समाजसेवी के रूप में जाना जाता है। वह मौजूदा वीरभद्र सरकार में सिंचाई मंत्री हैं। उन्होंने अपना नामांकन पत्र दायर किया था लेकिन अधूरा होने के कारण उसे रद्द कर दिया गया था। हालांकि माना जा रहा है कि वह खुद इस बार चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थीं जिसका कारण उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य को बताया।
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लेकिन, राजनीति के कुछ जानकारों का कहना है कि दरअसल विद्या स्टोक्स के चुनाव न लड़ने के फैसले के पीछे की वजह ठियोग के कोटखाई गैंगरेप और हत्या का मामला है। इस मामले को लेकर स्थानीय लोगों में गुस्से का माहौल है। लोग विद्या से इस मामले पर कार्रवाई न करने को लेकर उनका विरोध कर रहे हैं जिसके चलते उन पर हार का खतरा बना हुआ था और उन्होंने मैदान से बाहर रहने का फैसला किया।
विद्या का नाम कटने के बाद कांग्रेस ने दीपक राठौड़ को चुनावी मैदान में उतारा है। 45 वर्षीय दीपक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खास सिपहसलारों में से एक माने जाते हैं। पेशे से वकील राठौड़ ने ठियोग निर्वाचन क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाई है। वह छात्र राजनीति के वक्त एनएसयूआई में अपना योगदान दे चुके हैं। वे वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव हैं और राजीव गांधी पंचायती राज संगठन के प्रदेश संयोजक भी हैं।
अब बीजेपी के हाथ में लड्डू !
वहीं, भाजपा ने अपने पुराने साथी राकेश वर्मा पर भरोसा जताया है। राकेश ने 1993 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उसके बाद पार्टी में मची अंतर कलह के कारण उन्होंने 2003 और 2007 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और दोनों चुनाव में जीत दर्ज कर दोनों मुख्य पार्टियों में खलबली मचा दी। इसके बाद भाजपा ने दोबारा से उन्हें मनाकर चुनाव लड़वाने का फैसला किया है। विद्या स्टोक्स जैसी कद्दावर नेता के चुनाव न लड़ने के कारण उन्हें इस सीट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
इसके अलावा ठियोग विधानसभा सीट के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राकेश सिंघा और दो निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। इलाकाई समीकरण को देखते हुए सिंघा सभी उम्मीदवारों पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।
जबकि आंकड़े दर्शाते हैं कि ठियोग कांग्रेस के मजबूत किलों में से एक रहा है, लेकिन बात करें क्षेत्रीय राजनीति की तो लोगों ने पार्टी के बजाए नेताओं के काम को तवज्जो दी है। फैसले की घड़ी नजदीक है और देखना है कि जनता इस बार किसी नेता पर ध्यान देती है या फिर पार्टी पर दांव खेलती है।