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History of Battle in Panipat: पानीपत का मैदान भारत के इतिहास में क्यों निर्णायक मोड़ साबित हुआ

Panipat Yuddh Ka Itihas Wiki in Hindi: पानीपत का मैदान ऐतिहासिक रूप से कई निर्णायक युद्धों का केंद्र रहा है। इसका मुख्य कारण इसका रणनीतिक और भौगोलिक महत्त्व हैं। पानीपत दिल्ली के उत्तर में स्थित है और यह उत्तर भारत के मैदानों और दिल्ली के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता था।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 12 Jan 2025 6:40 PM IST
Panipat Yuddh Ka Itihas Wiki in Hindi
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Panipat Yuddh Ka Itihas Wiki in Hindi

History of Battle in Panipat: यूं तो हमारी भारत ने कई युद्ध देखे हैं। लेकिन भारत के इतिहास में पानीपत की भूमि पर लड़े गए तीन युद्ध सबसे अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन युद्धों ने न केवल उस समय की राजनीति और सत्ता संतुलन को बदला, बल्कि भारत के भविष्य को भी गहराई से प्रभावित किया। दिल्ली की सल्तनत हासिल करने के लिए, पानीपत का मैदान इन युद्धों के लिए क्यों चुना गया और ये युद्ध भारत के इतिहास में मील का पत्थर क्यों साबित हुए, यह जानना भी आवश्यक है।

पानीपत की लड़ाई भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध माने जाते है, जो क्रमशः 1526, 1556 और 1761 में पानीपत के मैदान में लड़े गए। इन युद्धों ने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। पहला युद्ध बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ, जिसने मुगल साम्राज्य की नींव रखी। दूसरा युद्ध अकबर और हेमू के बीच लड़ा गया, जिसने मुगलों के शासन को सुदृढ़ किया। तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ, जिसने मराठा साम्राज्य को कमजोर किया और भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।

'आज न्यूज ट्रैक के जरिये हम पानीपत युद्ध के राजनीतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्टभूमि के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे' ।

क्यों पानीपत को युद्धों की भूमि कहा जाता है

पानीपत का मैदान ऐतिहासिक रूप से कई निर्णायक युद्धों का केंद्र रहा है। इसका मुख्य कारण इसका रणनीतिक और भौगोलिक महत्त्व हैं। पानीपत दिल्ली के उत्तर में स्थित है और यह उत्तर भारत के मैदानों और दिल्ली के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता था।


जो इसे रणनीतिक महत्त्व दिलाता है । तथा बड़ी सेनाओं के टकराव के लिए यहाँ का बड़ा और सपाट मैदान इसे भौगोलिक उत्कृष्टता प्रदान करता है । इन युद्धों ने शक्तियों के संतुलन को बदला और भारत में नई शासन व्यवस्थाओं को जन्म दिया। पानीपत की इस ऐतिहासिक भूमिका के कारण यह स्थान युद्धों के लिए प्रसिद्ध हो गया।

कब और किसके बीच लड़े गए युद्ध

पानीपत का पहला युद्ध :- पानीपत का पहला युद्ध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई। यह युद्ध 21 अप्रैल, 1526 को लड़ा गया। यह युद्ध बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ा गया था। इब्राहिम लोधी दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। तो वही बाबर फारगना (आधुनिक उज़्बेकिस्तान) का एक शासक था, जो भारत पर अपनी निगाहें जमाये बैठा था। उसने काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद भारत पर हमला किया। बाबर की सेना में लगभग 12,000 सैनिक थे। तो वही लोदी की सेना में 1,00,000 सैनिक और 1,000 हाथी शामिल थे। इस युद्ध में बाबर की जीत हुई थी। हालांकि बड़ी सेना होने के बावजूद , संगठन और रणनीति की कमी के कारण इब्राहिम लोदी को हार का सामना करना पड़ा था। परिणामस्वरूप, बाबर ने दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा कर लिया और मुगल साम्राज्य की नींव रखी।


पानीपत का दूसरा युद्ध :- यह युद्ध भारतीय इतिहास में अत्याधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस युद्ध के बाद, भारत में मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह युद्ध 5 नवंबर, 1556 को उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर के बीच लड़ा गया था। हेमू यानी हेमचंद्र विक्रमादित्य एक शक्तिशाली सैन्य नेता था, जो बाद में दिल्ली का सम्राट बन गया था। तो वही महज़ 13 साल के अकबर ने अपने शासन की शुरुवात ही की थी। इस युद्ध में मुगल सेना के पास तोपखाना और घुड़सवार सेना थी। और हेमचंद्र विक्रमादित्य की ओर से लगभग 30,000 पैदल सैनिक और 1,500 हाथी इस युद्ध में शामिल थे। इस युद्ध में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य को शिकस्त देकर अकबर ने जीत हासिल की थी। जिसके बाद अकबर ने दिल्ली और आगरा पर पुनः अधिकार हासिल करते हुए उत्तर भारत में भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली।


पानीपत का तीसरा युद्ध :- पानीपत का तीसरा युद्ध भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और घातक युद्धों में से एक है। यह युद्ध उत्तरी भारत पर नियंत्रण के लिए लड़ा गया। इसने भारतीय राजनीति और शक्ति-संतुलन को हमेशा के लिए बदल दिया। यह युद्ध 14 जनवरी, 1761 को मराठा साम्राज्य और अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) के बीच लड़ा गया था। मराठों का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ और विश्वासराव (पेशवा बालाजी बाजीराव के बेटे) ने किया था। मराठा सेना में लगभग 45,000 प्रशिक्षित सैनिक, 15,000 घुड़सवार, और अन्य सहयोगी बल शामिल थे।


तो वही अहमद शाह अब्दाली की ओर से 1,00,000 सैनिक के साथ अफगान, रोहिल्ला और अवध के नवाब इस युद्ध में शामिल थे।अहमद शाह अब्दाली ने मराठा सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया। इस युद्ध में मराठा पक्ष के लाखों सैनिक और नेता मारे गए। जीत के परिणामस्वरूप अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली और उत्तरी भारत पर अस्थायी रूप से नियंत्रण कर लिया। हालांकि वह भारत में लंबे समय तक शासन नहीं कर सका और जल्द ही अफगानिस्तान लौट गया।

पानीपत के युद्ध और भारत के इतिहास में निर्णायक मोड़

पानीपत में लड़े गए तीनों युद्धों ने भारत का इतिहास रचा। पहले युद्ध ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। तो वही दूसरे युद्ध के साथ भारत में मुगल साम्राज्य के पुनर्गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। तीसरे युद्ध में मराठा साम्राज्य की हार ने भारत में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया और अंग्रेजों को भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर मिला। जिसके बाद भारत में एक नई शक्ति का उदय हुआ। और ब्रिटिश शासन के विजय के मार्ग प्रशस्त हुए।


कहां हुए पानीपत के युद्ध :- पानीपत की लड़ाई हरियाणा के पानीपत नामक स्थान पर हुई थी। पानीपत पहले पांडुप्रस्थ नाम से जाना जाता था, जो महाभारत के दौरान पांडवों के पांच गांवों में से एक था। उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर, बारहवीं शताब्दी के बाद पानीपत में कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गईं। पानीपत दिल्ली से करीब करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

पानीपत का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्त्व

ऐतिहासिक महत्त्व :- पानीपत भारतीय इतिहास में तीन प्रमुख लड़ाइयों का गवाह रहा है, जिनमें पहली लड़ाई (1526) में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया और मुगल साम्राज्य की नींव रखी, दूसरी लड़ाई (1556) में अकबर ने हेमू को हराया और मुगलों का साम्राज्य पुनः स्थापित किया, और तीसरी लड़ाई (1761) में अहमद शाह अब्दाली ने मराठों को पराजित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ । ये युद्ध भारतीय राजनीति और साम्राज्य के इतिहास में निर्णायक मोड़ साबित हुए।


रणनैतिक महत्त्व:- पानीपत का मैदान सपाट, विस्तृत और बिना किसी बड़ी बाधा वाला था। यह बड़े पैमाने पर सेनाओं के टकराव और तोपखाने के उपयोग के लिए उपयुक्त था। पानीपत से बहने वाली यमुना नदी क्षेत्र की मुख्य जलस्रोतों में से एक थी। यह नदी न केवल पानीपत, बल्कि आस-पास के इलाकों के लिए भी पानी का महत्वपूर्ण स्रोत थी। पानीपत पर हुई लड़ाइयाँ मुख्य रूप से जलाधिकार से संबंधित थीं। जो भी सेना इस क्षेत्र पर नियंत्रण करती, वह यमुना के जल पर अधिकार प्राप्त करती थी, जो न केवल युद्ध के दौरान एक रणनीतिक लाभ था, बल्कि क्षेत्रीय विकास और संसाधनों के नियंत्रण के लिए भी आवश्यक था।


राजनीतिक महत्व :- पानीपत दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर में स्थित है, जो उत्तर भारत के रणनीति और राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र था। दिल्ली सत्ता का केंद्र था और जो भी दिल्ली पर कब्जा करता, वह पूरे उत्तर भारत पर नियंत्रण कर सकता था। पानीपत दिल्ली के करीब होने के कारण एक निर्णायक युद्ध के लिए सबसे उपयुक्त स्थान था। इसके अलावा यहां से दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों तक आसानी से पहुँचा जा सकता था, जिससे यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण था।



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