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Holi 2023 Special: रंग दे मोहे रंगरेजवा

Holi 2023 Special: रंग को लेकर हमारे यहाँ मनाये जाने वाले होली पर्व की भी संस्कृति व समाज में बड़ी मान्यता है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 8 March 2023 5:00 AM IST (Updated on: 8 March 2023 10:42 AM IST)
Holi 2023
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Holi 2023

Holi 2023 Special News: रंग हर आदमी की ज़िंदगी का हिस्सा हैं। ज़िंदगी में रंग न हो तो बेजान मानी जाती है। रंग को लेकर हमारे यहाँ मनाये जाने वाले होली पर्व की भी संस्कृति व समाज में बडी मान्यता है। यह शायद इकलौता पर्व है जिसे समाज, कला, ज्योतिष, जीवन, संस्कृति व सिनेमा में सबसे अधिक स्थान हासिल हुआ। रंग को लेकर सबसे अधिक लोकोक्तियाँ कहावतें व कहानियाँ होली को लेकर हैं। रंग बरसते भी है। लोग रंग को तरसते भी हैं। आदमी बिना रंग लगायें भी लाल पीला होता देखा जा सकता है। जो रंग सबसे ज्यादा आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है वो है-लाल रंग। महत्वपूर्ण चीजें लाल होती हैं। रक्त, अग्नि व उगते सूरज का रंग लाल है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन यही पैदा करता है। चैतन्य का नारी स्वरूप इसी रंग में है। रंग के लिए प्रकाश का होना ज़रूरी है ।बिना प्रकाश के रंग की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।

सृष्टि राग और रंगों का खेल है। फागुन में यह खेल अपने चरम पर होता है। हर इंसान किसी न किसी रंग में रंगा होता है।किसी न किसी राग में मस्त होता है।रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है। कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग शांति का एहसास कराते हैं।जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है।

रंगों का हमारे जीवन से जुड़ाव सिर्फ होली तक सीमित नहीं है। रंगो का एक व्यापक स्पेक्ट्रम होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि का अपना अलग रंग होता है। रंग का साक्षात्कार करने के लिए चित्त की स्थिरता या एकाग्रताअनिवार्य है। रंग सिर्फ प्रकृति और चित्रों में ही नहीं हमारी आंतरिक ऊर्जा में भी छिपे होते हैं। जिसे हम आभामंडल कहते हैं। आभामंडल विभिन्न रंगों का समवाय है।आज के वैज्ञानिक युग में आदमी की पहचान त्वचा से नहीं, आभामंडल से होती है। रंगो की गहन साधना हमारी संवदेनाओं को भी उजली करती है।

लेश्या ध्यान रंगों का ध्यान है। रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेगों, कषायों आदि का सीधा संबंध है। शारीरिक स्वास्थ्य और बीमारी, मन का संतुलन और असंतुलन, आवेगों में कमी और वृद्धि ये सब इन प्रयत्नों पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं। किस प्रकार हम रंगो से अलगाव या संश्लेषण करते हैं।

वैसे देश और दुनिया में होली का त्योहार बहुत उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाता है।देशभर में अलग अलग तरह की होली खेली जाती है। अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो उत्तरप्रदेश में मथुरा,वृंदावन,बरसाना और बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की होली के अंदाज हीअलग होते हैं। काशी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से होती है। वैसे तो पूरे देश और दुनिया में होली का पर्व रंग, अबीर, और गुलाल से खेला जाता है। पर काशी की जो नायाब होली होती है। वो बाबा विश्वनाथ की नगरी में काशी के घाटों के भस्म से खेली जाती है। चिता के भस्म से खेली जाने वाली यह होली पूरी दुनिया में विख्यात है।

फगुआ और होली के साथ ही हिन्दू नव वर्ष भी आरंम्भ होता है। फाल्गुन मास वसंत ऋतु के रूप में होती है। पेड़-पौधों-फूलों पर हार,खेतों में सोने जैसी चमकती पीली सरसों, गेहूं की लहराती बालियाँ ,आम के पेड़ों पर लदे बौर इस मौसम को अलग ही रंग में रंग देते हैं । फाल्गुन माह की अंतिम रात यानी पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। अगली सुबह नयी ताज़गी साथ चैत्र महीने का पहला दिन और नव वर्ष का आरंभ होता है।जिसे रंग गुलाल के साथ होली के रूप में मनाया जाता है। होली पर्व नवसंवत और नव वर्ष के आरंभ का प्रतीक है।

यह नव वर्ष भारत के हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है। इसे नवसंवत्सर के रूप में जाना जाता है। गुडी पड़ाव, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाडी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी इस नवसंत्सर के आसपास मनाये जाते हैं। राग - रग

का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग यानी संगीत और रंग तो तो इसके प्रमुखअंग हैं ही । पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है।फाग बिना भी होली अधूरी है। यह होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है।फाग प्रमुख रूप से अवधी, ब्रज और भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में होता है। सामान्य रूप से फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता, राधाकृष्णऔर सीताराम के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत और उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है। होली के त्यौहार में कई लोग फाग महोत्सव का आयोजन करते हैं । जिसमें सभी एक दूसरे से मिलते हैं और होली के गीत गाते हैं।ख़ास तौर पर छोटे शहरों में फाग के गीत गाये जाते हैं। जिसमें एक मंडली होती है जो सभी के घर जाकर फाग के गाती है। इस लोकगीत पर लोग नाचते हैं और ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आनंद लेते हैं। फाग के भी कई रूप होते हैं। फाग और होरी के बाद धमार का नंबर आता है।थामकर फाग गीत होता है, जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।बदलते समय के साथअब फाग भी लुप्त होता जा रहा है। इसके बाद तो जो-गी-रा… सररर.. सररर..। यह सबके तन मन में जोश भर देता था। होली जैसा उत्सव पृथ्वी पर खोजने को नही मिलेगा। यह आनंद,तल्लीनता,मदहोशी, उल्लास , मस्त,नृत्य का सप्तरंगी उत्सव है।

पुराण-कथा है-प्रह्लाद नास्तिक राजा हिरण्यकश्यप के यहां जन्म लेता है। हिरण्यकश्यप अपनी नास्तिकता सिद्ध करने के लिए प्रह्लाद को नदी में डुबोता है। पहाड़ से गिरवाता है। अन्त में अपनी बहन होलिका से पूर्णिमा के दिन जलवाता है।आश्चर्य तो यही है कि वह सभी जगह बच जाता है और प्रभु के गुणगान गाता है। तब से इस देश में लोग होली का उत्सव मनाते हैं, रंग गुलाल डालते हैं, आनंद मनाते हैं।पुराण इतिहास नहीं है। महाकाव्य है।

हिरण्यकश्यप कभी हुआ या नहीं, मुझे प्रयोजन नहीं है। प्रह्लाद कभी हुए, न हुए, प्रह्लाद जानें। लेकिन इतना मुझे पता है, कि पुराण में जिस तरफ इशारा है, वह रोज होता है, प्रतिपल होता है, हमारे भीतर हुआ है, आपके भीतर हो रहा है। और जब भी कहीं भी मनुष्य होगा, पुराण का सत्य दोहराया जाएगा। पुराण मनुष्य के जीवन का अन्तर्निहित सत्य है। हिरण्यकश्यप को नही पता था कि प्रह्रलाद को जलाने की जो कोशिश कर रहा है , उसी राख से उसकी पराजय की कथा लिखेगी। वहनगी जानता था कि शक्ति नहीं जीतती, जीवन जीतता है। प्रतिष्ठा नहीं जीतती, सत्य जीतता है।

जीसस को सूली लगी, मर गये। सुकरात को जहर दिया, मर गये। मंसूर को काटा, मर गया। लेकिन यह प्रतीत हुआ ? क्योंकि जीसस अब भी जिंदा है—मारनेवाले मर गये। सुकरात अभी भी जिंदा है—जहर पिलानेवालों का कोई पता नहीं।हिरण्यकश्यप बाहर नहीं है, न ही प्रह्लाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद दो नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटनेवाली दो घटनाएं हैं। इन दोनों को दफ़्न करना होगा।



Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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