TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

झारखंड कैसे अलग हुआ बिहार से, क्या थी इसकी पूरी कहानी आइये जानते हैं

Jharkhand History: झारखण्ड राज्य बिहार से अलग करके बनाया गया है जानिए क्या है इसका पूरा इतिहास।

AKshita Pidiha
Published on: 15 Nov 2024 11:29 AM IST
Jharkhand History
X

Jharkhand History (social media) 

Jharkhand History: 15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तो देश की मौजूद सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी थी। जिनमें से एक थी राज्यों के पुनर्गठन को लेकर।हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है ऐसे में हर किसी के सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखना सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी।आजादी के कुछ सालों बाद ही राज्यों का पुनर्गठन शुरू हो गया वह भी भाषा के आधार पर । यानी एक तरह की भाषा बोलने वाले लोगों को एक राज्य में रखा गया। उस समय लोगों को यह काम काफी अच्छा लगा क्योंकि अधिकतर लोग राज्य पुनर्गठन के तहत बनाए गए राज्यों से संतुष्ट थे और जो संतुष्ट नहीं थे उन्होंने आंदोलन जारी रखें और कुछ वक्त बाद उनकी भी मांग मांग ले गई । लेकिन हमारे देश में एक ऐसा भी राज्य था जहां पर कुछ लोग भाषा के आधार पर नहीं बल्कि भौगोलिक स्थिति के आधार पर एक अलग राज्य की मांग कर रहे थे। उनकी यह मांग कोई 10 सालों से नहीं बल्कि 100 सालों से भी ज्यादा समय से जा रही थी.हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे-

कुछ सालों पहले तक बिहार और झारखंड यह दोनों एक ही राज्य हुआ करते थे। बिहार और झारखंड में बहुत हद तक भाषा सामान्य होने के बावजूद भी झारखंड में रहने वाले लोग बिहार से अलग होने की मांग बहुत पहले से ही कर रहे थे।यह मांग क्यों कर रहे थे तो इसके बहुत से कारण थे। वैसे तो बिहार और झारखंड दोनों ही हिंदी भाषिक क्षेत्र थे । लेकिन उनकी संस्कृति, इतिहास और भौगोलिक स्थिति में काफी फर्क था।जो विभाजन के मुख्य वजह भी बने । क्योंकि बिहार में जहां सभी भाषाएं भारतीय आर्य भाषा समूह से उपजी हैं, वहीं झारखंड के क्षेत्र में बोले जाने वाली भाषाएं या तो द्रविड़ है या फिर प्रागैतिहासिक ।

भूगौलिक स्थिति

झारखंड का क्षेत्रफल बिहार के लगभग बराबर होने के बावजूद भी बिहार की पापुलेशन झारखंड की तुलना में ढाई गुना ज्यादा है ।बिहार के आबादी लगभग 10 करोड़ है और झारखंड के चार करोड़ है। बिहार के कुल आबादी में 10 परसेंट लोग ही आदिवासी है ।जबकि झारखंड के कुल आबादी में 26 प्रतिशत लोग आदिवासी है। वही भौगोलिक रूप से देखें तो झारखंड एक पहाड़ी इलाका है।यहां पर बहुत ज्यादा जंगल, पर्वत ,हरियाली और खदान है जबकि बिहार एक समतल जगह है।


दोनों राज्यों के हैं अलग पेशा

बिहार का मुख्य पेशा कृषि है यानी बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। इस कारण से दोनों के भौगोलिक स्थिति में भी काफी अंतर है। इसके अलावा झारखंड में मुख्य रूप से खनिज संपदा का भंडार है । लेकिन कृषि योग्य भूमि बहुत कम है ।जबकि बिहार में खनिज संपदा उतने प्रचुर मात्रा में नहीं है। लेकिन कृषि योग्य भूमि बहुत है। अगर इन दोनों ही राज्यों का इतिहास देखें तो बिहार का इतिहास ज्यादा समृद्ध है । क्योंकि बिहार ,मगध, मिथिला ,भोजपुरी आदि से मिलकर बना है जबकि झारखंड मगध और कलिंग के बीच का भाग था जिसमें ज्यादातर आदिवासी जनजातियां रहती थीं।

झारखंड के लोगों को हमेशा से लगता रहा है कि हम बिहारी लोगों से अलग हैं। इसके अलावा इतिहास में कई ऐसी घटनाएं भी घटी थी जिसके चलते झारखंड के लोगों में यह भावना और गहराई से बैठ गई थी कि हम बिहारी लोगों से अलग है जैसे -

जयपाल सिंह मुंडा बने पहले स्त्रोत

जयपाल सिंह मुंडा ने साल 1920 में पहली बार झारखंड को अलग राज्य बनाने की आधिकारिक मांग रखी थी।यह मांग अचानक से नहीं आई थी बल्कि इसके कुछ ऐतिहासिक कारण थे। अंग्रेज़ों द्वारा साल 1793 में स्थाई बंदोबस्त और साल 1859 में शेल और रें लॉ लाया गया था, जिससे झारखंड के कहीं आदिवासी लोगों की जमीन बाहरी लोगों के पास चली गई ।इसके बाद अंग्रेजों द्वारा भारतीय वन अधिनियम लाया गया। भारतीय वन अधिनियम आने के बाद आदिवासी लोग जंगल से चीजों को इकट्ठा नहीं कर सकते थे जो कि उनके आमदनी का एक प्रमुख जरिया था। अब जमीन हस्तांतरण के कारण आदिवासी लोगों की जमीन बाहरी लोगों को दी गई । तो बाहरी लोग और झारखंड के मूल निवासियों के बीच काफी संघर्ष होने लगा था । साल 1903 के छोटा नागपुर और संथाल परगना सेटलमेंट रेपुटेशन के बाद कुछ काम हो गया था ।


झारखंड के लोगों का हुआ विस्थापन

अब झारखंड खनिज संपदा से भरा प्रदेश है तो इन खनिज के खनन के लिए झारखंड में कई बड़े-बड़े उद्योग लगाये गये जिस कारण पर झारखंड के मूल निवासियों को एक बार फिर अपनी जमीन छोड़कर स्थापित होना पड़ा था। इसके बदले में उन्हें इसका उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया । यानी झारखंड में भले ही खनिज का अपार भंडार था । लेकिन इसके बावजूदयहां के लोग गरीब के गरीब ही रहे। क्योंकि खनिज उत्पादन से जो भी फायदा होता था वह पहले अंग्रेजों को और उसके बाद केंद्र को मिलता था। झारखंड के मूल निवासियों को इसका एक भी लाभ नहीं मिला। जिस कारण इन लोगों के अंदर यह भावना और अधिक बैठ गई कि अपना अलग राज्य बनाना बहुत जरूरी है । अन्यथा उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

इस कारण साल 1920 में जयपाल मुंडा के प्रभावशाली नेतृत्व में झारखंड को एक अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव अंग्रेजों के सामने रखा गया । लेकिन साइमन कमीशन ने इस प्रस्ताव का सिरे से खारिज कर दिया । अंग्रेजों ने झारखंड को अलग राज्य बनाने की मंजूरी नहीं दिया। अब जयपाल मुंडा एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति थे । इंग्लैंड से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया था। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बहुत ही करीबी माने जाते थे । इसके बाद साल 1938 में जयपाल मुंडा ने आदिवासी महासभा की स्थापना की । महासभा के अध्यक्ष वह खुद ही बने थे। इस महासभा का एक ही उद्देश्य था कि झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाया जाए।

बोस और मुंडा की मुलाकात

इसके लिए जयपाल मुंडा ने एक बार सुभाष चंद्र बोस से झारखंड राज्य को अलग करने के बारे में विचार विमर्श भी किया था । तब सुभाष चंद्र बोस ने यह कहते हुए मना कर दिया कि देश के आजादी का जो मोमेंट है उस पर गलत असर पड़ेगा। इस कारण जयपाल मुंडा ने उस वक्त झारखंड को अलग राज्य बनाने के अपने प्रयास कम कर दिए। फिर देश के आजादी के बाद जयपाल मुंडा ने आदिवासी महासभा का नाम बदलकर झारखंड पार्टी कर लिया। वह बिहार के राजनीति में उतर गये। और कुछ सालों में इस पार्टी ने अपना रुतबा भी दिखा दिया । क्योंकि साल 1952 में इन्होंने 33 विधानसभा सीट जीती थी।जबकि 1962 में 20 सीटों में विजय मिली थी । तभी 1962 में राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने उन्होंने झारखंड को अलग राज्य बनाने की अपील की और कारण भी बताएं, जिस कारण बिहार और झारखंड का विभाजन चाहते थे। लेकिन उनके अपील को खारिज कर दिया गया। इसे देख जयपाल से मुंडा बहुत नाराज हुए। उन्होंने बिना किसी से राय मशवरा किये कांग्रेस पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर लिया ।


काँग्रेस में विलय के बाद आया राजनैतिक भूचाल

अब बिहार के राजनीति में झारखंड पार्टी का बहुत अहम योगदान था। जैसे ही उन्होंने कांग्रेस के साथ अपना विलय किया उसके बाद राजनीतिक भूचाल बिहार में आ गया ।अगले 7 सालों में झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कहीं ना कहीं कम पड़ती जा रही थी। तभी एक नई पार्टी का उदय हुआ जिसका नाम था झारखंड मुक्ति मोर्चा। इस पार्टी के संस्थापक विनोद बिहारी महतो थे ।क्योंकि 25 सालों से ज्यादा समय तक इन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ काम किया था । उनका उद्देश्य वहां पर भी झारखंड को एक मुक्त राज्य बनाना था। लेकिन जब उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए एक अलग पार्टी की जरूरत है तब उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी बनाई । इस पार्टी में शिबू सोरेन,विनोद बिहारी महतो जैसे कई बड़े-बड़े नाम जुड़ते गए हैं ।जिनका झारखंड का क्षेत्र में बहुत गहरा प्रभाव था । अब आज़ादी के बाद देश में पंचवर्षीय योजनाएं शुरू हुई तब सरकार ने झारखंड में उद्योग धंधे लगाने की तरफ ध्यान दिया । क्योंकि राज्य के पास खनिज संपदा तो थी । लेकिन झारखंड के मूल लोग शिक्षित नहीं थे।उनके पास संसाधनों का अभाव था । इसलिए वहां रोजगार हासिल नहीं कर सके हालांकि सरकार ने आरक्षण तो दिया था । लेकिन यहां के लोगों में जरूरी न्यूनतम योग्यता भी नहीं थी । इस कारण बाहरी लोगों को काम में रखा गया और धीरे-धीरे झारखंड में बाहरी लोगों की ताकत बढ़ती गई । जिससे झारखंड के डेमोग्राफी बदलने लगी क्योंकि पहले बाहरी लोग और झारखंड के मूल निवासियों का जो अनुपात था वह कभी 40:60 था ,वहां घटकर 70:30 हो गया था।

आजसू की भूमिका

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के तर्ज पर 1986 में ‘ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू का गठन जमशेदपुर में किया गया , जो झारखंड आंदोलन के लिए अहम मोड़ साबित हुआ ।प्रभाकर तिर्कि इसके संस्थापक थे।1989 में आजसू ने ‘करो या मरो’ एलान के साथ 72 घंटे झारखंड बन्द किया। जो आंदोलन के लिए टर्निंग पॉइंट था।तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यक्रम में इतिहास में पहली बार केंद्र सरकार और आजसू के बीच झारखंड वार्ता संपन्न हुई।


झारखंड समन्वय समिति

इस कारण साल 1987 में झारखंड समन्वय समिति का गठन हुआ । जिसमें यह तय किया गया कैसे सभी पार्टियों को जोड़कर एक किया जाए । जिनका नाम झारखंड से शुरू होता है। ऐसा करने से एक नई पार्टी बहुत बड़ी बन गई और इसके बाद इस पार्टी ने छोटे-छोटे लेकिन बहुत ही प्रभावशाली आंदोलन किये । जिसके चलते केंद्र सरकार का ध्यान इनके तरफ आकर्षित हुआ ।झारखंड समन्वय समिति के बढ़ते प्रभाव को केंद्र सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकी ।इस कारण झारखंड मामले की देखरेख करने के लिए एक अलग से समिति का गठन किया गया। साल 1990 में झारखंड समन्वय समिति ने केंद्र सरकार के सामने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने यह बताया कि झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कहीं ना कहीं तर्कसंगत है । इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि झारखंड के लोगों पर पिछले कई सालों से अत्याचार हो रहे हैं। इसका जितना जल्दी हो सके उतना समाधान होना चाहिए । लेकिन तभी राजीव गांधी की मौत हो गई । जिसके बाद इस आंदोलन को बहुत बड़ा झटका लगा क्योंकि आंदोलनकारी का मानना था कि राजीव गांधी एक दयालु व्यक्ति थे और वह इतने संवेदनशील हैं कि हमारे दर्द को समझने और एक अलग राज्य बनाने की मांग जरूर मानते हैं ।

फिर दिन आया 24 सितंबर, 1994 का झारखंड का एक अलग राज्य बनाने की मांग करने वाले लोगों के लिए एक खुशी का दिन था। इस दिन केंद्र सरकार, बिहार सरकार और झारखंड के आंदोलनकारी प्रतिनिधियों के बीच में एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ।इस समझौता के तहत झारखंड को कुछ अधिकार दिया । गया लेकिन यह अधिकार भी अधूरे थे ।

आखिर में ऐसे बना झारखंड राज्य

अब समय बीतता जा रहा था और तभी साल 1999 का लोकसभा चुनाव आया जिसमें अटल बिहारी वाजपेई जी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया ।इस वक्त देश में तो भाजपा के सरकार थी, साथ झारखंड में भी भाजपा के अनुकुल बहुमत था। इस कारण कई सालों के तपस्या के बाद आखिरकार स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर 15 नवंबर, 2000 को झारखंड को बिहार से अलग करके एक अलग राज्य बनाया गया ।


बाबूलाल मरांडी बने पहले मुख्यमंत्री

राज्य गठन के साथ ही सरकार बनाने का मौका भी बीजेपी के पाले में चला गया। मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तलाश तेज हो गई तब कड़िया मुंडा के नाम पर जोरदार चर्चा हुई और आखिरकार बाबूलाल मरांडी के नाम पर पार्टी ने मोहर लगा दी गयी ।

झारखंड को कहा जाता है जलप्रपातों का प्रदेश

झारखंड की सीमाएं बिहार, पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा ,छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से लगती है ।राजधानी रांची के आसपास बड़ी संख्या में जंगल और जलप्रपात हैं, जो पर्यटक को अपने और आकर्षित करते हैं रांची में हुंडराफॉल, दशमफॉल,जोन्हा फॉल, पंच घाघ फॉल और बिरसा जैविक उद्यान भी है।


झारखंड में खनिज का विशाल भंडार

भारत का 40 फ़ीसदी खनिज का भंडार झारखंड में मिलता है । परमाणु ऊर्जा के लिए जरूरी यूरेनियम झारखंड में ही मिलता है । इसके अलावा अभ्रक ,बॉक्साइट ,ग्रेनाइट, सोना, चांदी ,ग्रेफाइट, मैग्नेटाइट, डोलोमाइट ,फायर क्ले पार्ट्स ,फील्ड्सपर ,कोयला ,लोहा ,तांबा आदि का विशाल भंडार झारखंड में है।



\
Sonali kesarwani

Sonali kesarwani

Content Writer

Content Writer

Next Story