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विस्फोटक सामग्रियों से कितनी सुरक्षित है भारतीय सेना!
ये सवाल उठना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि बीतें दिनों पुलगांव के डिपो में विस्फोटक सामग्री को निष्क्रिय करते वक्त 6 लोगों की मौत हो गई थी।
नई दिल्ली: पुलगांव स्थित आयुध डिपो में लगी आग भले ही शांत हो गई हो, लेकिन कई सवाल अब भी सुलग रहे हैं। सवाल कि भारतीय सेना विस्फोटक सामग्रियों (गोला-बारूद आदि) से कितनी सुरक्षित है? ये सवाल उठना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि बीतें दिनों पुलगांव के डिपो में विस्फोटक सामग्री को निष्क्रिय करते वक्त 6 लोगों की मौत हो गई थी। इस जगह को सेना के ठहराव का गढ़ माना जाता है। इस घटना के बाद से सेना की जवानों की सुरक्षा पर लगातार सवाल उठ रहे है।
टाला जा सकता था हादसा
देश के अंदर पुलगांव स्थित आयुध डिपो सेना को हथियार और विस्फोटक सामग्रियों को मुहैया कराने का काम करता है। यहीं पर गोला –बारूद और हथियारों का बड़ी तादाद में तैयार किया जाता है। बाद में जरूरत के हिसाब से देश भर के अलग –अलग आयुध डिपो पर इनकी सप्लाई की जाती है। फिर चाहें वह ब्रह्मोस मिसाइल ही क्यों न हो।
हथियारों के भंडार में आग पहली बार नहीं लगी है, लेकिन पिछली घटनाओं से अगर सबक लिया गया होता और कड़े कदम उठाए गए होते तो ऐसे भीषण कांड को टाला जा सकता था।
गत 3 वर्षों में छोटे-बड़े दस हादसे हुए हैं। यह सब तब हो रहा है जब गोला-बारूद की किल्लत से जूझ रही सेना के हथियार प्रबंधन को लेकर संसद में भी चिंता के सवाल उठते रहे हैं।
गोला-बारूद के रख्ररखाव पर उठे सवाल
पुलगांव में सेना के आयुध डिपो में लगी आग ने देश में गोला-बारूद के विशेष रूप से रखरखाव के इंतज़ामों पर ढेरों सवाल खड़े कर दिए हैं। संसद की स्थायी समिति अपनी रिपोर्ट में पहले ही गोला-बारूद के प्रबंधन पर रक्षा मंत्रालय की खिंचाई कर चुकी है लेकिन हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। हालत ये है कि भंडारण के माकूल इंतज़ामों के अभाव में ढेर सारा गोला-बारूद खुले में भी रखा जाता है।
कहीं शेड में रखा जाता है तो वो भी बेहतर तरीके से नहीं। कहा ये जा रहा है कि शेड में रखने वाले बारूद में रिसाव भी आ गया था और गर्मी की वजह से शायद ये दर्दनाक हादसा हो गया ।
पुलगांव में सेना के आयुध डिपो में लगी आग में अपनी जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर 19 हो गई है। सेना का जांच दल आग लगने के कारणों पर माथापच्ची कर रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि देश में भंडारण की उचित सुविधा के अभाव में ढेर सारा गोला बारूद खुले में भी रखा जाता है। गर्मी में घास सूखती है और किसी भी चिंगारी के जरिए उसमें आग पकड़ने की संभावना हमेशा बनी रहती है।
देश में खुले में रखा अनाज सड़ जाने की ख़बरें आती रहती हैं। लगता है कि गोला बारूद के मामले में भी हालात अनाज के भंडारण जैसे तो नही हैं?
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हादसे दर हादसे
पिछले एक दशक में सेना के कई हथियार डिपो इस तरह के हादसों का शिकार हुए हैं। साल 2000 में भरतपुर के आयुध डिपो में भयंकर आग लगी थी। 2001 में पठानकोट और गंगानगर के आयुध डिपो में करोड़ों का गोला बारूद जलकर ख़ाक हो गया। इसी तरह साल 2002 में दप्पर और जोधपुर के आयुध डिपो में आग लगी।
साल 2005 में सीएडी पुलगांव का आयुध डिपो तबाह हुआ। 2007 में कुंदरू के आयुध डिपो और 2010 में पानागढ़ के आयुध डिपो में आग लगी। एक अनुमान के मुताबिक 2000 से देशभर के हथियार डिपो में लगी आग से करीब 3000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हलांकि अभी पक्के तौर नहीं कहा जा सकता कि हादसे की वजह क्या है, लेकिन इस हादसे से सबक लेकर अपने आयुध डिपो के रखरखाव को दुरुस्त किए जाने की संभावना नहीं के बराबर है।
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जनरल वीके सिंह की चिट्ठी
पूर्व सेना प्रमुख और फिलहाल मोदी सरकार में विदेश राज्या मंत्री जनरल वीके सिंह ने साल 2012 में प्रधानमंत्री को लिखी अपनी बेहद विवादित चिट्ठी में भी देश में गोला बारूद की कमी का ज़िक्र किया था। जनरल सिंह ने लिखा था कि सेना की टैंक रेजीमेंट के पास बेहद ज़रूरी गोला बारूद की बड़ी कमी है।
दरअसल, देश में गोला बारूद की कमी का एक कारण भंडारण के लिए विशेष इंतज़ामों की कमी भी है। ठीक इसी तरह रक्षा मामलों पर बनी संसद की स्थाई समिति ने भी गोला बारूद की गुणवत्ता, भंडारण और प्रबंधन के इंतज़ामों में हीलाहवाली पर रक्षा मंत्रालय को लताड़ा था। गौरतलब है कि सेना गोला बारूद से जुड़े हादसों के कारण हज़ारों करोड़ रुपयों का गोला बारूद गंवा चुकी है। सवाल यह है कि जनरल वीके सिंह की उस चिट्ठी और संसदीय समिति की इस रिपोर्ट के बाद गोला बारूद के मामले में क्या कदम उठाए गए?
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