×

बेबस निर्भया: असुरक्षित हैं बेटियां, रेप पर आखिर कैसे लगे लगाम

वर्ष 2017 मेें देश में 43 हजार 197 बलात्कार के आरोपी गिरफ्तार किए गए। इनमें से 38 हजार 559 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन केवल 6 हजार 957 आरोपित ही दोषी साबित हो पाए। इसी वर्ष बलात्कार के बाद हत्या के मामलों में 374 गिरफ्तार हुए, लेकिन केवल 48 ही दोषी साबित हो पाए।

Shivakant Shukla
Published on: 16 Dec 2019 4:30 AM GMT
बेबस निर्भया: असुरक्षित हैं बेटियां, रेप पर आखिर कैसे लगे लगाम
X

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: हैदराबाद में महिला वेटरनरी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और फिर जिंदा जला दिए जाने की घटना से पूरे देश में गुस्सा है। इस घटना को लेकर सडक़ से संसद तक गुस्सा दिख रहा है। सपा सांसद जया बच्चन ने बलात्कारियों की माब लिंचिंग का समर्थन किया है तो भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने बलात्कारियों को जीवन भर जेल में ही रखने का सुझाव दिया है।

हैदराबाद की घटना को लेकर पूरे देश में जबर्दस्त गुस्से के बावजूद बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगती नहीं दिख रही है। सवाल यह है कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों नहीं रुक पा रही हैं। क्या वह समाज तरक्की कर सकता है जहां आधी आबादी ही खुद को असुरक्षित महसूस करे? आखिर अपराधियों के मन में पुलिस व कानून का भय क्यों नहीं है? इतनी जघन्य घटनाएं करने वाले भी कैसे कानून की नजर से बच निकलते हैं?

उन्नाव में जघन्य कांड

हैदराबाद की घटना के बाद भी बलात्कार की घटनाओं की आए दिन खबरें आ रही हैं। इस घटना के बाद उन्नाव में तो बहुत ही जघन्य कांड हुआ जहां रेप के आरोपियों ने पीडि़ता को जिंदा जलाने की कोशिश की। नब्बे फीसदी झुलस चुकी पीडि़ता की हालत गंभीर है और उसे लखनऊ के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पीडि़ता के परिवार का कहना है कि जेल से छूटकर आए आरोपी पिछले दो दिनों से उन्हें धमकी दे रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक रेप केस की सुनवाई में रायबरेली जाने के लिए पीडि़ता स्टेशन की तरफ बढ़ रही थी, तभी रेप केस में नामजद दो आरोपियों समेत 5 लोगों ने पेट्रोल डालकर उसे जला दिया। उन्नाव की घटना को लेकर विपक्ष ने प्रदेश सरकार पर जबर्दस्त हमला बोला है।

प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी शर्मनाक घटनाएं

इस बीच मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में तीन बलात्कार के मामले सामने आए हैं। मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक नाबालिग लडक़ी से बलात्कार की घटना सामने आई है। पुलिस के अनुसार आरोपी पीडि़ता का परिचित है। पुलिस ने बताया कि आरोपी पहली दिसंबर को पीडि़ता को घुमाने के बहाने बाइक पर बैठाकर होटल गया। वहां उसे शराब पिलाकर मांग में सिंदूर भरकर शादी का ढोंग किया और फिर उसके साथ बलात्कार किया। वहीं, उत्तर प्रदेश के कासगंज के थाना सिढ़पुरा के एक गांव में किशोरी के साथ दरिंदगी की सनसनीखेज वारदात सामने आई। किशोरी को गांव के ही चार युवक खींचकर बाग में ले गए और वहां उससे सामूहिक बलात्कार किया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में हाईस्कूल की छात्रा के साथ नीली बत्ती और पुलिस का लोगो लगी गाड़ी में अगवा कर गैंगरेप किया गया। पुलिस ने छात्रा के पिता की तहरीर पर पूर्व जेलर के बेटे और सीआरपीएफ जवान समेत चार लोगों को गिरफ्तार कर गाड़ी भी जब्त कर ली है। छात्रा के नाबालिग होने के कारण चारों पर पास्को एक्ट के तहत भी कार्रवाई हुई है।

निर्भया कांड के बाद के कदम पर्याप्त नहीं

वर्ष 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड के समय पूरा देश इसी तरह आक्रोशित था। देश भर में युवाओं, मीडिया और सियासी दलों ने ऐसा जबर्दस्त विरोध किया कि सरकार भी दबाव में आ गई। उस समय पूरे देश में यही घटना चर्चा का विषय बन गई थी। देश के हर हिस्से में लोगों ने कैंडल मार्च निकाला और दोषियों की कड़ी सजा देने की मांग की। बाद में जब यह मामला अदालत में पहुंचा तो न्यायपालिका ने भी निर्भया कांड के दोषियों को कड़ी सजा दी।

निर्भया कांड के बाद सरकार के कई कदम उठाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि अब देश की महिलाएं पहले से ज्यादा सुरक्षित रहेंगी, लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। प्रतिदिन देश के हर हिस्से में महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने वाली कोई न कोई घटना घट ही जाती है। अब हैदराबाद की घटना ने एक बार फिर यह बता दिया है कि देश की महिलाएं दूरदराज के क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि राज्यों की राजधानी में भी सुरक्षित नहीं हैं। इससे साफ है कि दिल्ली के निर्भया कांड के बाद ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जो भी कदम उठाए गए हैं,वे पर्याप्त नहीं है।

अपराधियों में कड़े कानून का खौफ नहीं

निर्भया कांड के बाद जो बदलाव हुए, उसमें मुख्य था बलात्कार से जुड़े कानूनों में बदलाव। बदलाव सुझाने के लिए पूर्व जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। समिति ने इसके लिए न सिर्फ भारतीय दंड संहिता में बदलाव की सिफारिशें कीं बल्कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में भी बदलाव के कई सुझाव दिए। उस समय जो आंदोलन चल रहा था, उसकी एक प्रमुख मांग थी कि बलात्कार के दोषियों को मृत्युदंड दिया जाए। हालांकि इसे लेकर मतभेद भी थे, लेकिन अंत में इसकी सिफारिश भी की गई। अगले तीन महीनों के अंदर ही कानून में इस बदलाव का अधिनियम भी जारी हो गया। कानून में इस बदलाव के पीछे कड़े दंड का सिद्धांत था।

सोच यही थी कि इससे बलात्कारियों के बच निकलने के रास्ते बंद करने के साथ ही उन्हें दिया जाने वाला दंड बाकी समाज के लिए एक कठोर सबक का काम करेगा और यह अपराधी मानसिकता के लोगों में खौफ पैदा करेगा और ऐसे अपराध करने से रोकेगा। ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई और निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट भी बनाई गई, लेकिन इन कदमों के बावजूद अगर ऐसी वारदात नहीं रुक रही हैं तो इससे साफ है कि कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है। इसका जवाब भी हमें पूर्व जस्टिस जेएस वर्मा के उस बयान से मिलता है जिसमें उन्होंने कहा था कि दुष्कर्म जैसे अपराध को रोकने के लिए कानून को कड़ाई से लागू करने के साथ ही सरकारी तंत्र को संवेदनशील बनाना होगा।

पुलिस का लचर रवैया बड़ा कारण

बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले में पुलिस में अपराध दर्ज होना ही एक टेढ़ी खीर माना जाता है। कई मामलों में तो पीडि़त पक्ष लोकलाज व लंबी कार्यवाही के डर से मामला दर्ज ही नहीं कराता है। इससे इतर अगर कोई पक्ष मामला दर्ज करा भी देता है तो भी ज्यादा वर्कलोड या लचर पुलिसिया कार्रवाई से मामला सालों तक चलता रहता है। हैदराबाद रेप कांड में भी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे हैं। पुलिस के दो थानों में क्षेत्र विवाद के कारण भी पीडि़ता को तुरंत मदद नहीं मिल सकी।

हकीकत बयां करते हैं आंकड़े

इससे जाहिर है कि अभी भी हमारा पुलिस तंत्र इतना संवेदनशील नहीं हुआ है, जिसकी अपेक्षा पूर्व जस्टिस वर्मा को थी। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। देश की पुलिस को वर्ष 2017 में बलात्कार के 46 हजार 965 मामलों की जांच करनी थी। इसमें पहले से लंबित 14 हजार 406 मामले और नए दर्ज 32 हजार 559 मामले थे। इनमें से महज 28 हजार 750 मामलों में ही चार्जशीट दाखिल हो सकी जबकि 4 हजार 364 केस बंद कर दिए गए और 13 हजार 765 केस अगले साल के लिए लंबित कर दिए गए। वर्ष 2017 में ही पुलिस को बलात्कार के बाद हत्या किए जाने के कुल 413 मामलों की जांच करनी थी, जिनमें से 108 मामले वर्ष 2016 के लंबित थे और 223 मामले नए थे। इनमें से 211 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई, जबकि 11 मामले बंद कर दिए गए और 109 फिर लंबित हो गए।

बलात्कार जैसे मामलों में लंबी प्रक्रिया के कारण सबूत या तो मिट जाते हैं या मिटा दिए जाते हैं और सबूतों के अभाव में आरोपी दोषी नहीं साबित हो पाते। वर्ष 2017 मेें देश में 43 हजार 197 बलात्कार के आरोपी गिरफ्तार किए गए। इनमें से 38 हजार 559 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन केवल 6 हजार 957 आरोपित ही दोषी साबित हो पाए। इसी वर्ष बलात्कार के बाद हत्या के मामलों में 374 गिरफ्तार हुए, लेकिन केवल 48 ही दोषी साबित हो पाए।

अदालतों पर भी है बहुत बोझ

इसी तरह देश की अदालतों पर भी बहुत ज्यादा मुकदमों का बोझ होने के कारण बलात्कार के मामलों का लंबे समय तक निपटारा नहीं हो पाता है। वर्ष 2017 में देश की निचली अदालतों में बलात्कार के कुल 1 लाख 46 हजार 201 मामले थे। इनमें 28 हजार 750 मामले इस साल के थे जबकि 1 लाख 17 हजार 451 पुराने लंबित मामले थे। ट्रायल कोर्ट में इनमें से केवल 18 हजार 99 मामलों में ही सुनवाई हो सकी, 5 हजार 822 मामलों में दोष सिद्ध हुआ तथा 11 हजार 453 मामलों में आरोपी रिहा कर दिए गए और 1 लाख 27 हजार 868 अगले साल के लिए लंबित हो गए। इतना ही नहीं बलात्कार के बाद हत्या किए जाने के वर्ष 2017 में कुल 574 मामले थे। इनमें से 363 मामले पुराने थे। इनमें से इस वर्ष केवल 57 का ही ट्रायल हो पाया, 33 मामलों में सजा हुई और 24 बरी हो गए जबकि 517 मामले अगले वर्ष के लिए लंबित हो गए।

कड़े कानून का नहीं दिख रहा असर

इस संबंध में लखनऊ में अपनी संस्था रेड ब्रिगेड के जरिए महिलाओं में ऐसी घटनाओं से निपटने का हौसला पैदा करने वाली ऊषा विश्वकर्मा ने घटनाओं के विरोध में यूपी की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास पूरी रात बिताने की अपील की। उनका कहना है कि पहले की घटनाओं में केवल रेप ही होता था, लेकिन अब रेप के बाद हत्या का चलन बन गया है।

हैदराबाद की घटना से दुखी ऊषा कहती हैं कि वर्ष 2012 में देश की राजधानी में हुए निर्भया कांड के बाद भी पूरे देश में ऐसा ही माहौल बना था, लेकिन सात साल बाद फिर वैसी ही घटना एक प्रदेश की राजधानी में होने से साफ है कि चाहे जितने भी कड़े कानून बन जाए, कहीं कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वे कहती हैं कि जबसे कानून में रेप के लिए सजा-ए-मौत का प्राविधान हुआ है तब से अपराधी सबूत मिटाने के लिए रेप पीडि़ता की हत्या कर देते है। रेप जैसे जघन्य अपराध के लिए वह समाज को भी दोषी ठहराते हुए कहती हैं कि समाज भी बहुत ज्यादा असंवेदनशील होता जा रहा है। रेप के मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे सिस्टम में ही गोलमाल है। रेप के मामलों में पुलिस का रवैया अधिकतर टरकाने वाला ही होता है।

हालात से निपटने के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग

ऊषा रेप की घटनाओं के लिए पुलिस को ज्यादा बड़ा अपराधी बताती हैं। उनका कहना है कि अगर समय रहते पुलिस मदद के लिए पहुंच जाए तो बहुत सारी महिलाएं बच सकती हैं। रेप के लिए कानून तो बहुत सख्त कर दिया गया है, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाता है। कोई लडक़ी अगर कह रही है कि वह असुरक्षित महसूस कर रही है तो पुलिस को उसकी मदद करनी चाहिए। ऊषा का कहना है कि वह जानती है कि इस मामले को महिलाओं को खुद ही सुलझाना होगा। इसीलिए वे अब लड़कियों व महिलाओं को ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए ट्रेनिंग दे रही है।

उन्होंने बताया कि इस ट्रेनिंग के तीन हिस्से है सुरक्षा, आत्मविश्वास और इतिहास। वे कहती हैं कि जब किसी महिला पर बलात्कार के इरादे से हमला किया जाता है तो उस समय महिला के पास अपने बचाव के लिए महज 10 सेकेंड ही होते हैं और उसमें भी उसके हाथ हमलावर की गिरफ्त में होते हैं तथा मुंह भी बंद कर दिया जाता है। ऐसे में महिला घबरा जाती है और वह कुछ प्रतिरोध नहीं कर पाती है। वे बताती हैं कि महिलाओं व लड़कियों को ऐसी परिस्थतियों से निपटने के लिए सबसे बड़ा सहारा उसका आत्मविश्वास व साहस होता है और हम अपने प्रशिक्षण में ऐसी तमाम परिस्थितियों का माडलों के जरिए प्रदर्शन करते हैं और इससे बचाव के तरीके बताते हैं।

सामाजिक सोच बदलना जरूरी: विनायक त्रिपाठी

इस संबंध में समाजशास्त्री विनायक त्रिपाठी का मानना है कि अपराधी के बच निकलने के रास्ते बंद करना और कड़े दंड जरूरी हैं, लेकिन इससे अपराध के खत्म होने की गारंटी नहीं ली जा सकती है। इसके साथ ही सबसे जरूरी उन स्थितियों को खत्म करना है, जो ऐसे अपराधों का कारण बनती हैं। बलात्कार जैसे अपराध कुंठित मानसिकता के लोग करते हैं, लेकिन ऐसी कुंठाएं कई बार महिलाओं के प्रति हमारी सामाजिक सोच से उपजती हैं। महिलाओं को सिर्फ कानूनों में ही नहीं, सामाजिक धारणा के स्तर पर बराबरी का दर्जा देकर और उनकी सार्वजनिक सक्रियता बढ़ाकर ही इस मानसिकता को खत्म किया जा सकता है। इससे हम ऐसा समाज भी तैयार करेंगे, जो कुंठित मानसिकता वालों को बहिष्कृत कर सकेगा।

पुलिस बरतती है लापरवाही: वत्सला सिंह

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में वकालत करने वाली वत्सला सिंह का कहना है कि बलात्कार के मामलों में पुलिस हीलाहवाली करती है। ज्यादातर मामलों में अदालत भी अपनी कार्रवाई के लिए पुलिस द्वारा जुटाये साक्ष्यों पर ही निर्भर करती है। इसके साथ ही अब अदालतें भी उतनी संवेदनशील नहीं रह गई है। उनके लिए भी रेप के मामले अब डेली रूटीन की तरह हो गए हैं।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने रेप मामलों में छह महीने में केस का निपटारा करने का आदेश दिया हुआ है, लेकिन अपराधों की सुनवाई होना अलग बात है और अपराधों में कमी आना अलग बात है। कानूनी प्रक्रिया के दौरान हम अधिवक्ता भी पेशेवर हो जाते हैं और उस अपराधी को बचाव के रास्ते बताते हैं। इसीलिए ऐसे अपराध करने वालों को मालूम है कि वह किसी न किसी तरह से छूट ही जाएगा। किसी में कानून का डर नहीं है। वत्सला का कहना है कि मौजूदा प्रतियोगिता के दौर में सभी बहुत दबाव में हैं। इसलिए अब समय है कि बच्चों की साल में एक बार साइकलाजिकल काउंसिलिंग जरूर कराई जाए।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

Next Story