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Human vs Technology: पीएफआई और नक्सल आपरेशन में प्रौद्योगिकी पर भारी पड़े मानवीय स्रोत

Human vs Technology: कुछ हफ्ते पहले हुई एक उच्च-स्तरीय बैठक के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने प्रौद्योगिकी-आधारित सूचना एकत्र करने के लिए मानव प्रणाली पर जोर दिया।

Durgesh Sharma
Written By Durgesh Sharma
Published on: 5 Oct 2022 2:54 PM IST
Human vs Technology How Information Gathering Methods Made PFI Raid
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Human vs Technology How Information Gathering Methods Made PFI Raid (Social media)

Human vs Technology: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ छापे के पहले दौर से बुद्ध पहाड़ को झारखंड में नक्सलियों से मुक्त कराने को लेकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी मुठभेड़ों तक जांच एजेंसियों ने हाल के अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रौद्योगिकी की तुलना में मानव संसाधनों पर ज्यादा भरोसा किया। कुछ हफ्ते पहले हुई एक उच्च-स्तरीय बैठक के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने प्रौद्योगिकी-आधारित सूचना एकत्र करने के लिए मानव प्रणाली पर जोर दिया।

छापे के कार्रवाई से लगभग दो सप्ताह पहले केंद्रीय खुफिया एजेंसियां पीएफआई के कई नेताओं और सदस्यों पक नजर बनाये हुई थीं। उन्होंने एक स्रोत विकसित किया और ह्यूमन इंटेलीजेंस के माध्यम से नेताओं के बारे में जानकारी एकत्र की। रिपोर्ट के मुताबिक इससे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) सहित एजेंसियों को विशेष रूप से मालाबार हाउस में नेताओं की पहचान करने में मदद मिली, जहां उनमें से कई कुछ हफ्ते पहले छापे के दौरान मौजूद थे।

टेक्नोलॉजी के बजाय इस पर किया भरोसा

हालांकि एजेंसियों ने टेक्नोलॉजी के साथ-साथ हयूमन रिसोर्सस पर भरोसा किया था, लेकिन एक विकसित स्रोत द्वारा एजेंसियों को जमीन से आगे बढ़ने के बाद छापे और गिरफ्तारियों को अंजाम दिया गया, जिन्होंने उन्हें जानकारी और गुप्त सूचना साझा की थी। सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक कुलदीप सिंह ने कुछ हफ्ते पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि तीन दशकों से नक्सलियों का गढ़ रहे झारखंड में सेना ने 'बुद्ध पहाड़' को सफलतापूर्वक मुक्त कर दिया है। सुरक्षाकर्मियों द्वारा पिछले तीन ऑपरेशनों के बाद इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।

ऐसे मिली सफलता

लातेहार और गढ़वा जिलों में स्थित बुद्ध पहाड़ में सीआरपीएफ का कैंप भी लगाया गया है। सुरक्षा बलों ने इलाके को मुक्त करने के कई असफल प्रयासों के बाद मानव खुफिया पर भरोसा करने का फैसला किया था। बलों ने शुरू में जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रौद्योगिकी की मदद ली लेकिन अंत में ऑपरेशन का निष्पादन एक मानव स्रोत पर आधारित था जिसने उन्हें क्षेत्र पर नियंत्रण करने में मदद की।

सूत्रों ने कहा कि अंतिम छोर तक की खुफिया जानकारी बिल्कूल सटीक थी, जो प्रौद्योगिकी के जरिए संभव नहीं थी। एक अधिकारी ने बताया कि "सुरक्षा बल खुफिया विंग और विशेष एजेंसियों द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर निर्भर होते हैं। किसी बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने के मामले में खुफिया जानकारी जुटाना पूरे ऑपरेशन की रीढ़ होती है। मान लीजिए, सुरक्षा बल नक्सलियों या आतंकवादियों के खिलाफ काम करना चाहते हैं, तो फोन इंटरसेप्शन, एरिया मैपिंग, डिजिटल विश्लेषण ऑपरेशन के संभावित क्षेत्र को कम कर सकते हैं।

टारगेट को लॉक करना और योजना को सफलतापूर्वक निष्पादित किया जा सकता है लेकिन यह सूचना ह्यूमन रिसोर्स स्रोत से पुष्टि होती है तो सफलता की संभावना बढ़ जाती है। जब तक हम अमेरिका रूस जैसी तकनीक का इस्तेमाल शुरू नहीं करते। लेकिन इजरायल की खुफिया ज्यादातर प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित मानव खुफिया प्रणाली पर निर्भर है।

जम्मू-कश्मीर एनकाउंटर

मुठभेड़ों के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा ड्रोन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, लेकिन एजेंसियां अब आतंकवादियों के ठिकाने की जानकारी इकट्ठा करने के लिए मानव स्रोत पर निर्भर हैं। टोक्नोलॉजी आधारित खुफिया से प्रारंभिक सहायता प्राप्त करने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवादियों को पकड़ने के लिए जम्मू-कश्मीर में कई अभियानों को अंजाम देने के लिए मानव संसाधन का इस्तेमाल किया।



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