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न कोई रिश्तेदारी और न कोई ख़ून का संबंध, हुस्ना बानो 25 बच्चों की अम्मी
एक बेहद ग़रीब इलाके में किराए के टूटे-फूटे मकान में रहने वाली हुस्ना बानो ने अबतक 25 लावारिस बच्चे-बच्चियों को पाला-पोसा और उनकी शादी कराई।
रांची: रांची की हुस्ना बानो का हुस्न कबका साथ छोड़ चुका है। ज़िंदगी अब आख़िरी ढलान पर है। हालांकि, दूसरों को मदद करने का जज्बा अबभी बाक़ी है। राजधानी के एक बेहद ग़रीब इलाके में किराए के टूटे-फूटे मकान में रहने वाली हुस्ना बानो ने अबतक 25 लावारिस बच्चे-बच्चियों को पाला-पोसा और उनकी शादी कराई। आज भी हुस्ना की गोद भरी है। 04 बच्चे उनके आंचल में परवरिश पा रहे हैं। बच्चों से इनका कोई ख़ून का रिश्ता तो नहीं है लेकिन मासूम इन्हे अम्मी जान कहकर पुकारते हैं। हुस्ना बानो के लिए यही उनकी कमाई है।
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हुस्ना के लिए बच्चे ही सबकुछ
पति दुनिया में नहीं रहे लेकिन हुस्ना बानो ने अपना सफ़र नहीं रोका। कहती हैं कि, अकेले ही बच्चों का लालन-पालन करती हूं। हालांकि, अब डगर मुश्किल होती जा रही है। घर का किराया एक हज़ार रुपए है लेकिन उसे भी देना मुश्किल होता है। काग़ज़ का ठोंगा बनाकर दुकानों में देती हूं तो थोड़े पैसे मिल जाते हैं। उसी से ज़िंदगी चल रही है। जिन बच्चों की शादी कराकर हुस्ना विदा चुकी हैं वे भी अपनी तरफ से मदद करते हैं। हालांकि, हुस्ना बानो अपने बच्चों का पैसा लेने से गुरेज़ करती हैं।
jharkhand-story (social media)
हुस्ना बानो की बेटी बनी राजपूत की बेटी
सय्यादा परवीन को जब रांची की हुस्ना बानो ने अपने घर पर लाया तब वो सिर्फ एक दिन की थी। आज सय्यादा परवीन की बेटी की उम्र 14 साल की है। हुस्ना बानो उस दिन को याद करते हुए कहती हैं कि, इनके मां-बाप ने इसे फेंकन का मन बना लिया था लेकिन उसने उन्हे ऐसा नहीं करने दिया। हुस्ना की मानें तो सय्यादा एक राजपूत की बेटी है। सय्यादा कहती हैं कि, उन्होने अपनी मां को तो नहीं देखा लेकिन उनकी ज़िंदगी संवारने वाली बस यही हैं। हुस्ना ने भी बच्चों की परवरिश में कभी भी जात-पात और धर्म को जगह नहीं दी। जिसे भी ज़रूरत पड़ी उसे अपने घर में पनाह दी।
दूसरों के नाम अपनी ज़िंदगी
दूसरों को नई ज़िंदगी देने वाली हुस्ना बानो आज खुद खस्ताहाल ज़िंदगी जी रही हैं। किराए के मकान में रहकर ग़रीब बच्चों का लालन-पालन बेहद मुश्किल हो रहा है। उम्र भी बढ़ती जा रही है। लिहाजा, जिस्म ने साथ देना छोड़ दिया है। हालांकि, खुद्दारी ऐसी की काग़ज़ के ठोंगे बनाकर बच्चों को पालना गंवारा करती हैं। सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। ऐसे में हुस्ना को किसी फरिश्ते का इंतज़ार है। लाक डाउन में बेहद मुश्किल दौर देखने वाली हुस्ना बानो की बेटियां कहती हैं कि, एक अदद घर की दरकार है जो अबतक पूरा नहीं हुआ है। आमदनी का कोई ज़रिया भी नहीं है। लिहाजा, महंगाई के इस दौर में बच्चों को पालना दुश्वार हो रहा है।
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यूपी में पैदा हुईं लेकिन झारखंड में दफ़न होने की तमन्ना
मूल रूप से यूपी के बरेली की रहने वाली हुस्ना बानो की मांग सालों पहले उजड़ चुकी है। हालांकि, उन्होने अपनी उजड़ी ज़िंदगी के बावजूद कई बच्चों को नई ज़िंदगी दी है। हुस्ना बानो को बस इस बात का मलाल है कि, उन्हे आज भी किराए के मकान में रहना पड़ता है। अपना घर होता तो किराए के बचे पैसों को बच्चों पर खर्च करती। कई तंज़ीमों और संगठनों की तरफ से उन्हे सम्मानित भी किया गया। मदद का भरोसा दिलाया गया लेकिन वर्षों बाद भी हुस्ना बानो अपने बच्चों के साथ जर्जर किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। उम्मीद है कि, जिस तरह हुस्ना बानो लावारिस बच्चों के लिए फरिश्ता बनकर सामने आईं उसी तरह कोई नेक इंसान उनकी मदद करने सामने आएगा।
शाहनवाज़
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