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INTERVIEW: अंतिम सांस तक किसानों के मुद्दे उठाता रहूंगा : योगेंद्र
किसानों को हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव का कहना है कि देश में किसान सर्वाधिक पीड़ित और सताया हुआ है। एक बार किसानों की हालत सुधर जाए तो बाकी समस्याएं खुद ही सुलझ जाएंगी। उनका कहना है कि वह अंतिम सांस तक किसानों के मुद्दे उठाते रहेंगे
नई दिल्ली: किसानों को हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव का कहना है कि देश में किसान सर्वाधिक पीड़ित और सताया हुआ है। एक बार किसानों की हालत सुधर जाए तो बाकी समस्याएं खुद ही सुलझ जाएंगी। उनका कहना है कि वह अंतिम सांस तक किसानों के मुद्दे उठाते रहेंगे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले 20-21 नवंबर को योगेंद्र के नेतृत्व में अपने तरह की अनोखी किसान मुक्ति संसद आयोजित हुई थी, जिसमें देशभर के 184 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया था। इस दौरान कृषि ऋण माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर दो विधेयकों का मसौदा भी पेश हुआ था।
किसान मुक्ति संसद के बारे में आईएएनएस ने योगेंद्र से विस्तार से बातचीत की। उन्होंने इस पहल के बारे में कहा, "किसान मुक्ति संसद की सबसे प्रमुख उपलब्धि यह है कि इसका एजेंडा नया है। आमतौर पर किसान आंदोलन लंबे मांग-पत्र रखते हैं, केवल आलोचनाएं होती हैं, जिस वजह से विकल्प सामने नहीं आ पाते। लेकिन किसान मुक्ति संसद में सिर्फ सरकारों और नीतियों की आलोचना नहीं हुई। इस संसद के सामने दो नए कानून प्रस्तुत किए गए। पहली बार किसान आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर वैकल्पिक नीतियां और कानून पेश कर रहा है।"
यह पूछने पर कि देश में अमूमन किसान आंदोलन होते रहते हैं, लेकिन इनसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में क्या योगेंद्र यादव के नेतृत्व में इस नए आंदोलन से कुछ हासिल हो पाएगा? उन्होंने कहा, "बदलाव देखने को मिल रहा है और आगे भी यह बदलाव देखने को मिलेगा। पहली नजर में कर्ज मुक्ति और फसलों के पूरे दाम की मांग में कुछ भी नया नहीं लगेगा। लेकिन आज इन पुरानी मांगों को नए तरीके से पेश किया जा रहा है। फसल के पूरे दाम का मतलब अब केवल सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि नहीं है।"
वह कहते हैं, "किसानों ने आंदोलनों से सीखा है कि मांगें बहुत सीमित हैं और इसका फायदा 10 प्रतिशत किसानों को भी नहीं मिलता। इसलिए किसान अब चाहते हैं कि फसल की लागत का हिसाब बेहतर तरीके से किया जाए। इस लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत बचत सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही किसानों ने यह भी समझ लिया है कि असली मामला सिर्फ सरकारी घोषणा का नहीं है, असली चुनौती यह है कि सरकारी समर्थन मूल्य सभी किसानों को कैसे मिल सके। इसलिए नए किसान आंदोलनों की मांग है कि सरकारी खरीद के अलावा भी नए तरीके खोजे जाएं, जिससे सभी किसानों को घोषित मूल्य हासिल हो सके ।"
योगेंद्र का मानना है कि अब किसान आंदोलन नए युग में प्रवेश कर गया है। पिछले डेढ़ महीने में देशभर में किसानों में नई ऊर्जा देखने को मिली है।
योगेंद्र बीते कुछ वर्षो से खुद को एक किसान नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हुए हैं। इस बारे में वह क्या सोचते हैं? उन्होंने कहा, "इस समय देश में जो सबसे ज्यादा पीड़ित है, वह किसान है। जीवन के अंतिम सांस तक किसानों के मुद्दे उठाता रहूंगा, लोग क्या कहते हैं, इसकी परवाह नहीं है।"
पांच साल पूरे कर चुकी आम आदमी पार्टी (आप) के बारे में वह कहते हैं, "इन पांच वर्षो में पार्टी वह नहीं रही, जिसकी नींव हमने रखी थी। आम आदमी पार्टी के सिद्धांत, नीतियां सब कुछ बदल गया है। उसमें और बाकी पार्टियों में अब कुछ फर्क नहीं रहा।"
सौजन्य: आईएएनएस