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अगर आप 1985 से पहले से उत्तराखंड में रहते हैं, तो हैं स्थाई निवासी
देहरादून: स्थायी निवास प्रमाण पत्र जारी करने में शासनादेश का सही अध्ययन न कर प्रमाण पत्र जारी करने में की जा रही हीलाहवाली को सेवा का अधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया है। आयोग ने जिलाधिकारी देहरादून को तहसीलदार सदर को उचित तरीके से काम न करने व बिना विचारे काम करने का दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।
साथ ही राजस्व विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को सेवा के अधिकार के तहत लाई गई सेवाओं के बाबत नियमों, शासनादेशों व प्रक्रियाओं का ज्ञान ही नहीं होने पर उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करने को कहा है। दरअसल, स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए प्रदेश में स्थायी संपत्ति होना जरूरी नहीं है, बल्कि राज्य गठन की तिथि से 15 साल पहले से राज्य का निवासी होना ही पर्याप्त है। सेवा का अधिकार आयोग ने देहरादून तहसील द्वारा ऐसे ही एक मामले में जाति प्रमाण पत्र बनाने से इनकार करने के मामले में यह आदेश दिया है।
ये है मामला
बता दें, कि जाति प्रमाण पत्र के लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र जरूरी होता है। प्रेमनगर निवासी सचिन कुमार कन्नौजिया ने आयोग से शिकायत की थी, कि उनकी साढ़े पांच साल की बेटी कनिष्का कन्नौजिया के जाति प्रमाण पत्र की अर्जी देहरादून सदर तहसील से इसलिए रद्द कर दी गई कि संपत्ति का साक्ष्य अपूर्ण है। इसके लिए समाज कल्याण विभाग के 2013 के एक शासनादेश को आधार बनाया गया।
आयोग ने सचिन कुमार की ओर से मुहैया कराए गए दस्तावेजों का अध्ययन किया तो पाया, कि सचिन के पिता छोटे लाल को 1975 में जिलाधिकारी देहरादून ने जाति प्रमाण पत्र जारी किया था। इसी तरह 1998 में एसडीएम देहरादून ने सचिन कुमार को तहसील देहरादून से स्थायी निवास व 2001 में जाति प्रमाण पत्र जारी किया। सचिन कुमार के पिता भारतीय सैन्य अकादमी में 1980 से 2014 तक एमटी ड्राइवर रहे हैं। इसका प्रमाण भी उन्होंने दिया।
वैध प्रमाण पत्र के बावजूद आवेदन निरस्त किया
आयोग ने कहा, कि सारे तथ्य साफ कहते हैं कि उनके पास वैध जाति प्रमाण पत्र हैं इसके वावजूद जून 2017 में सचिन की पुत्री का जाति प्रमाण पत्र आवेदन निरस्त कर दिया गया। आयोग ने इस मामले में देहरादून के जिलाधिकारी को आदेश दिया है कि वह तहसीलदार सदर को इस मामले में उचित तरीके से काम न करने व बिना विचारे काम करने के लिए उन पर समुचित कार्यवाही करें। यही नहीं इस मामले से साफ हुआ है कि राजस्व विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को सेवा के अधिकार के तहत लाई गई सेवाओं के बाबत नियमों, शासनादेशों व प्रक्रियाओं का ज्ञान ही नहीं है ऐसे में उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। माना जा रहा है कि इस व्यवस्था के बाद सेवा के अधिकार के तहत नागरिक लाभान्वित हो पाएंगे।