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‘बिहार’ में ‘इफ्तार’! टोपी और गमछा में नेताजी, जानें किसके हक में कुबूल होगी ‘मुस्लिम वोट’ की दुआ
Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां अभी से तैयारी में जुट गईं हैं। रमजान के महीने ने रोजा इफ्तार के बहाने पार्टियां अपनी पकड़ मुस्लिम वोटबैंक में मजबूत करने में लगी हुई हैं।
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होना है। जिसे लेकर पार्टियां पूरी जोरो- शोरों से तैयारियों में लगी हुई हैं। यह समय रमजान का चल रहा है। इसी बीच सभी राजनैतिक पार्टियां अपने अपने तरीके से रोजा इफ्तार का आयोजन कर रही हैं। आये दिन कोई न कोई पार्टी इफ्तार के बहाने सभी बड़े नेताओं को एकसाथ महफ़िल में बुला रही हैं। राजनेताओं द्वारा आयोजित इफ्तार में सभी नेता टोपी लगाने से लेकर गमछा पहने हुए दिखाई दे रहे हैं। बिहार में इफ्तार के बहाने सभी पार्टियां अपनी सियासी बिसात बिछाने में लगी हुईं हैं।
रमजान के महीने में हमने सबसे पहले जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर को इफ्तार की दावत बुलाते देखा होगा। वहीं रविवार को सीएम नीतीश कुमार ने अपने पटना दफ्तर में इफ्तार पार्टी दी थी। इस पार्टी में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान समेत कई बड़े नेता पहुंचे थे। वहीं आज यानी सोमवार को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। आज ही एलजेपी चिराग पासवान ने भी इफ्तार की पार्टी दी थी। अभी बिहार में कांग्रेस की इफ्तार पार्टी बची हुई है। जिसपर सब की नजरें टिकी हुई हैं। हर कोई यह जानना चाहता है कि इनकी इफ्तार पार्टी में कौन कौन शामिल होता है। क्योंकि यही वो मौका है जिसके जरिये आगे आने वाले विधानसभा चुनाव के रुख का पता चल सकेगा।
वक्फ बिल से नाराज मुश्लिमों ने नीतीश की इफ्तार का किया बायकॉट
बीते दिन रविवार को नीतीश कुमार ने अपने दफ्तर में इफ्तार का आयोजन किया। जिसमें वक्फ संसोधन बिल पर जेडीयू के बर्ताव से नाराज मुस्लिम संगठनों ने आने से मना कर दिया। मुस्लिम संगठनों की तरफ से भेजे गए पत्र में कहा गया कि आपकी इफ्तार दावत का मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना होता है लेकिन ये भरोसा सिर्फ औपचारिक दावतों से नहीं बल्कि ठोस नीति और उपायों से होता है। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा कि आपकी सरकार का मुस्लिम समाज की जायज मांगों को नजरअंदाज करना, एक तरह की औपचारिक दावतों को निरर्थक बना देता। बता दें कि जिस तरह से मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार के इफ्तार का बायकॉट किया इसे उनके लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
निर्णायक साबित होते हैं मुस्लिम वोटर्स
बिहार की सियासत में मुस्लिम वोटर्स बहुत मायने रखते हैं। वहां पर करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है। जो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में 47 सीटों पर निर्णायक साबित होती हैं। इन सीटों पर मुस्लिम आबादी लगभग 20 से 40 प्रतिशत की है। इसके अलावा बिहार में 11 सीटें ऐसी हैं जहाँ 40 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम है। जिस तरह से बिहार के काफी बड़े हिस्से में मुस्लिम वोट है उसे देखते हुए सीएम नीतीश कुमार से लेकर लालू यादव, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान यहाँ तक की असदुद्दीन ओवैसी और प्रशांत किशोर इसे अपने पाले में लाने में अभी लग गए हैं। ये सभी नेता रोजा इफ्तार के बहाने मुस्लिम वोट बैंक को साधने की फिराक में हैं जिससे कि साल के अंत में होने वाले चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिल सके।
कैसा रहा है पिछले रिकॉर्ड
बिहार की सियासत में अगर पिछले चुनावों की बात की जाए तो साल 2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 243 सीटों में से 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे। जिसमें से 11 आरजेडी, 6 कांग्रेस, 5 जेडीयू,1 बीजेपी और 1 सीपीआई (एमएल) से थे। बीजेपी ने बिहार में दो कैंडिडेट उतारे थे जिसमे से एक की हार हुई थी। वहीं साल 2000 में बिहार में सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीते थे।
अगर पिछले चुनाव 2020 की बात करें तो 19 मुस्लिम विधायक चुनकर आए। उस समय ओवैसी की पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा था। उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीती थी। इसके अलावा आरजेडी से 8, कांग्रेस से 4, भाकपा (माले) से एक और बसपा से एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी।
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