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महाराष्ट्र में बड़ा गुल खिलाएंगे हजारों बागी - निर्दल कैंडीडेट

Maharashtra Election: महाराष्ट्र चुनाव में निर्दलीय विधायक बड़े गेम चेंजर हो सकते है।

Neel Mani Lal
Published on: 15 Nov 2024 1:05 PM IST
Maharashtra Election
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Maharashtra Election (social media) 

Maharashtra Election: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस बार एक नया फैक्टर जुड़ गया है। ये फैक्टर है बागी - निर्दलीय प्रत्याशियों का जो चुनाव नतीजों में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं।

क्या है ये फैक्टर

महाराष्ट्र चुनाव में संभावित अप्रत्याशित नतीजों का कारण आसान है। प्रदेश में 7000 से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने कई दोतरफा मुकाबलों को त्रिकोणीय और कुछ स्थानों पर बहु कोणीय मुकाबलों में बदल दिया है। 1995 में 3196 उम्मीदवार मैदान में थे। और तब सबसे ज्यादा संख्या में निर्दलीय - 45 - चुने गए थे। इस बार, निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा है। इस फैक्टर की वजह से परिणामों की कैसी भी भविष्यवाणी करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है।

कैसे कैसे निर्दलीय

- उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी शिरीष चौधरी चुनाव मैदान में हैं और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के उम्मीदवार मंत्री अनिल पाटिल के खिलाफ अमलनेर में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।


- अमलनेर के पास ही परोला-एरोन्डल निर्वाचन क्षेत्र में, भाजपा के पूर्व लोकसभा सांसद एटी पाटिल ने शिवसेना के अमोल पाटिल के खिलाफ ताल ठोंकी है।

- बगल के पचोरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के एक अन्य नेता अमोल पाटिल, जो भाजपा मंत्री गिरीश महाजन के करीबी हैं और खुद को महाजन का मानस-पुत्र कहते हैं, शिवसेना उम्मीदवार किशोर पाटिल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

- नवी मुंबई है में एकनाथ शिंदे के साथ रहे विजय नाहट ने अपनी पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी है और बेलापुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक मंदा म्हात्रे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

- मुख्यमंत्री शिंदे के एक अन्य करीबी विजय चोगुले एरोली में भाजपा उम्मीदवार गणेश नाइक के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

बदला हुआ है माहौल

दरअसल, इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि निर्दलीय उम्मीदवार सबसे ज्यादा किसे नुकसान पहुंचाएंगे- महायुति को या महा विकास अघाड़ी को। लेकिन किसी को भी इस बात पर जरा भी संदेह नहीं है कि बागियों ने चुनाव माहौल बदल दिया है।


मजे की बात ये है कि बगावत ने किसी को नहीं बख्शा है। कांग्रेस और भाजपा के अलावा इसने शिवसेना और एनसीपी दोनों को भी प्रभावित किया है।

अटकलें तो ये भी लग रहीं हैं कि अपनी जीत के अलावा वोट काटने के खेल के लिए प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी बगावत की सोची समझी 'योजना' बनाई है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इन बागियों को कथित तौर पर इन चुनावों को लड़ने के लिए जरूरी सभी संसाधन दिए जा रहे हैं। इसलिए, कागजों पर भले ही उन्हें बागी कहा जा रहा हो, लेकिन पार्टी अनौपचारिक रूप से उनका पूरा समर्थन कर रही है। खासतौर पर कांग्रेस को इन बागियों से काफी उम्मीदें हैं। हरियाणा में बागियों ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है। अब महाराष्ट्र में पार्टी को उम्मीद है कि वह इसका फायदा उठा सकेगी, क्योंकि महायुति के लिए विद्रोहियों की संख्या महा विकास अघाड़ी से ज्यादा है।

ये भी है एक वजह

बागी - निर्दलीयों की एक वजह यह भी है कि पिछले पांच साल में कोई स्थानीय निकाय चुनाव नहीं हुआ है, चाहे वह जिला पंचायत का हो या नगर निगम का। लोकसभा चुनाव लड़ना हमेशा से इनमें से कई नेताओं की हैसियत से बाहर रहा है। इसलिए, मुमकिन है कि उनमें से कई इसे अपने लिए एक बड़ा मौका मान रहे हैं।



Sonali kesarwani

Sonali kesarwani

Content Writer

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