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Population of India: भारत की बढ़ती आबादी उपलब्धि या चिंता?
Population of India: जनसंख्या विस्फोट से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण जैसी बीमारियां बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतें प्रभावित होने लगती हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर कम पड़ने लगते हैं। पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर पड़ता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि व अन्य प्रदूषण का भी हमें सामना करना पड़ता है। खेती योग्य जमीनें सिकुड़ती जाती हैं, नतीजन खाद्यान्न संकट बढ़ता जाता है। इनसे निपटने को भी कारगर रणनीति बनानी होगी।
Population of India: आबादी के मामले में चीन को पछाड़कर अब भारत नंबर वन हो गया है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है जो चीन से तकरीबन 26 लाख ज्यादा है। भारत का विशाल जनसमूह जहां उसकी ताकत बन रहा है वहीं, कई चिंताएं भी वाजिब हैं।
मसलन, जनसंख्या विस्फोट से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण जैसी बीमारियां बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतें प्रभावित होने लगती हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर कम पड़ने लगते हैं। पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर पड़ता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि व अन्य प्रदूषण का भी हमें सामना करना पड़ता है। खेती योग्य जमीनें सिकुड़ती जाती हैं, नतीजन खाद्यान्न संकट बढ़ता जाता है। इनसे निपटने को भी कारगर रणनीति बनानी होगी।
आबादी के मामले में चीन को पछाड़कर अब भारत नंबर वन हो गया है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है जो चीन से तकरीबन 26 लाख ज्यादा है। भारत का विशाल जनसमूह जहां उसकी ताकत बन रहा है वहीं, कई चिंताएं भी वाजिब हैं।
मसलन, जनसंख्या विस्फोट से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण जैसी बीमारियां बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतें प्रभावित होने लगती हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर कम पड़ने लगते हैं। पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर पड़ता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि व अन्य प्रदूषण का भी हमें सामना करना पड़ता है। खेती योग्य जमीनें सिकुड़ती जाती हैं, नतीजन खाद्यान्न संकट बढ़ता जाता है। इनसे निपटने को भी कारगर रणनीति बनानी होगी।
खुश क्यों हों?
खुशी की बात यह है कि इस आबादी में बड़ी तादाद युवाओं की है। लेकिन चिंता भी है कि अगर इनका सकारात्मक उपयोग नहीं किया गया तो यही आबादी देश पर बोझ भी बन सकती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि 0-14 आयु वर्ग, 10-19 और 10-24 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा युवा भारत में है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सरकार को युवाओं से जुड़ी पॉलिसी के जरिये यह सुनिश्चित करना होगा कि देश अपने युवाओं को हुनरमंद बनाये। साथ ही उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल कर देश को विकास के नए पथ पर लेकर जाया जा सके।
यूथ इन इंडिया की रिपोर्ट
यूथ इन इंडिया की रिपोर्ट बताती है, 2014 में कुल आबादी का लगभग 35 फीसदी हिस्सा 15 से 24 साल का था। 2030 तक इसके 31 फीसदी तक चले जाने की उम्मीद है। यानी 2030 तक युवाओं की हिस्सेदारी जहां कम होने लगेगी वहीं, उम्रदराजों की संख्या बढ़ने लगेगी। ऐसे में युवा आबादी के लिहाज से अगले 10 साल भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे।
युवा शक्ति का सदुपयोग करें
समाजशास्त्री कहते हैं कि भारत में युवाओं का अनुपात बुजुर्गों और बच्चों से अधिक है। लेकिन समय जैसे-जैसे बीतेगा, आज के युवा प्रौढ़ होंगे और बच्चे युवा। ऐसे में यह आवश्यक है कि अपनी युवा शक्ति का समय रहते सदुपयोग करें।
स्किल डेवलपमेंट पर करना होगा फोकस
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सरकार को युवाओं के स्किल डेवलपमेंट पर और अधिक जोर देना होगा, ताकि हमारा देश मैन्युफैक्चरिंग में आगे रहे। मौजूदा समय में देश की 68 प्रतिशत आबादी कामकाजी है। इसका फायदा उठाकर स्किल डिवेलपमेंट ट्रेनिंग पर ध्यान देकर स्टार्टअप और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में देश को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। जरूरी है कि हम होनहार युवाओं को अपने देश में ही जॉब्स, स्टार्टअप के ज्यादा मौके दे सकें। साथ ही टॉप संस्थानों से पढ़े-लिखे जो छात्र विदेशी कंपनियों को आगे बढ़ाते हैं, उन्हें अपने देश में ही प्लेसमेंट देना होगा। इसके लिए सरकार की नीतियां सरल होनी चाहिए ताकि उन्हें मौका मिले।
पीएम बोले- कमजोरी बनी हमारी ताकत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं कि जिस बड़ी आबादी को लोग भारत की सबसे बड़ी कमजोरी बता रहे थे वही हमारी सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने बीते दिनों कहा था, "कुछ लोग 130 करोड़ की आबादी को बोझ समझते हैं लेकिन मैं 130 करोड़ की आबादी को एक बड़ा बाजार मानता हूं। पीएम मोदी ने पिछले नौ वर्षों में देश के विकास के लिए काम किया है।" सरकार का दावा है कि 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से अब तक स्किल डेवलपमेंट पर बहुत काम किया गया है और किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री एक ओर जहां युवा शक्ति को ताकत करार दे रहे हैं वहीं, जनसंख्या विस्फोट को लेकर चिंतित भी हैं। 73वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "जनसंख्या विस्फोट हमारे देश के लिए गंभीर और जटिल समस्याएं पैदा कर रहा है, इसलिए जो परिवार छोटे परिवार की नीति को अपना रहा है, वो देश के विकास में अपने योगदान को प्रदर्शित कर रहा है।
जनसंख्या नियंत्रण की वकालत
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जनसंख्या विस्फोट की रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने पर विशेष जोर दिया है। कई धर्मगुरु और नेता भी जनसंख्या नियंत्रण के फेवर में हैं। योगगुरु बाबा रामदेव तीसरी संतान को अन्य नागरिक अधिकारों से वंचित रखने की बात भी कह चुके हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी कई बार मुखरता से जनसंख्या असंतुलन की बात कही है और कानून के सहारे इसे रोकने की वकालत की है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी बड़े और व्यापक सोच के आधार पर जनसंख्या नीति तैयार करने की बात कही थी, जो सभी समुदायों पर समान रूप से लागू हो सके। इसके अलावा कई और नेताओं ने भी जनसंख्या नियंत्रण की वकालत की है।
हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील क्यों?
देश का एक बड़ा वर्ग भले ही जनसंख्या नियंत्रण की वकालत करता है, लेकिन संघ के कई नेता व धर्मगुरु हिंदुओं से आबादी बढ़ाने की बात करते हैं। बीजेपी सांसद साक्षी महाराज हिंदू महिलाओं से चार बच्चे पैदा करने का आह्वान कर चुके हैं जबकि साल 2016 में शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने हिंदुओं से 10 बच्चे पैदा करने को कहा था। हालांकि, धर्म संसद में जनसंख्या नियंत्रण कानून को सख्ती से लागू करने की मांग रखी गई थी। इनका मानना है कि भारत धर्मनिरपेक्ष इसलिए है क्योंकि यहां की बड़ी आबादी हिंदू है। इन धर्मगुरूओं में चिंता मुस्लिमों की आबादी के 9.9 फीसदी से बढ़कर 14.2 फीसदी तक बढ़ने को लेकर है। वहीं, हिंदू आबादी 85 फीसदी से घटकर 79.6 फीसदी रह गई है।
क्या कहते हैं NHFS के आंकड़े
साल 2005-2006 में जारी National Family Health Survey, India के मुताबिक, हिंदुओं की टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआऱ) 2.6 थी जबकि मुसलमानों की 2.4 फीसदी। 2015-16 में मुसलमानों का टीएफआर 2.6 हो गया जबकि हिंदुओं का घटकर 2.1 रह गया। आपको बता दें कि टीएफआर के सहारे पॉपुलेशन के ग्रोथ रेट के बारे में जानकारी मिलती है। हालांकि, कई एक्सपर्ट्स आरएसएस और कई धर्मगुरुओं के जनसंख्या असंतुलन के आरोपों को निराधार ठहराते हैं।
2019 में बना था जनसंख्या नियंत्रण विधेयक
वर्ष 2019 में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक विधेयक तैयार किया गया था। इस बिल के मुताबिक, प्रत्येक दंपती को टू चाइल्ड पॉलिसी अपनाना होगा। मतलब दो से ज्यादा बच्चे नहीं। हालांकि, 2022 में इसे वापस ले लिया गया है। आजादी के बाद से टू चाइल्ड पॉलिसी को अब तक 35 बार संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन यह कभी पास नहीं हो सका।
संविधान में कितने बच्चे पैदा करने का अधिकार?
1969 के डिक्लेरेशन ऑन सोशल प्रोग्रेस एंड डेवलपमेंट का अनुच्छेद 22 यह सुनिश्चित करता है कि दंपती यह निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं कि उनके कितने बच्चे हों। इस पर अंकुश लगाना अनुच्छेद 16 यानी पब्लिक रोजगार में भागीदारी और अनुच्छेद 21 यानी जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करना है।
2021 में यूपी में आया था प्रपोजल
वर्ष 2017 में असम असेंबली में पॉपुलेशन एंड वुमन एंपावरमेंट पॉलिसी पास हुई थी। इसके अनुसार वही सरकारी नौकरी के लिए वही पात्र माने जाएंगे, जिनके दो बच्चे होंगे। इसके अलावा सरकारी नौकरी कर रहे लोगों भी टू चाइल्ड पॉलिसी को अपनाने का निर्देश दिया गया था। यूपी की लॉ कमीशन वर्ष 2021 में एक प्रपोजल लेकर आई थी। इसके मुताबिक, दो से अधिक बच्चों वालों को किसी भी सरकारी सुविधा से वंचित रखा जाएगा। फिलहाल, यह ड्राफ्ट बिल अभी विचाराधीन स्थिति में है।
इन देशों में घट रही है आबादी
भारत, चीन, यूएसए और इंडोनेशिया जैसे देशों में आबादी भले ही तेजी से बढ़ रही है लेकिन बड़ी संख्या ऐसे देशों की भी है, जहां आबादी घटती जा रही है। इनमें सबसे ज्यादा यूरोपीय देश हैं। यहां जनसंख्या कम होने की वजह गिरता फर्टिलिटी रेट भी है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, जनसंख्या स्थिर रखने के लिए फर्टिलिटी रेट 2 से अधिक होना अनिवार्य है जबकि यूरोपीय देशों में फर्टिलिटी रेट प्रति महिला 1.2 से 1.6 के बीच है।