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कहां रुकोगे ! आज कोरेगांव की जीत का बवाल, कल खिलजी फिर जयचंद...
आशीष शर्मा 'ऋषि'
एक जनवरी 1818 में कोरेगांव में भीमा नदी के घाट पर पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच घमासान युद्ध हुआ था। जिसमें अंग्रेजों ने पेशवाओं को मात दी थी और इस युद्ध में अंग्रेजों की ओर से लडे थे दलित महार। इसी युद्ध का दलित हर एक जनवरी को जश्न मनाते हैं। मेरा सीधा सा सवाल ये है कि आखिर इस जश्न की जरुरत आज 200 साल बाद क्यों आन पड़ी। वैसे तो हमारे साथी पाकिस्तान पर बड़े सवाल खड़े करते हैं, पुरातन पंथी होने का। वहां के लोगों और उनके कर्मों कुकर्मों पर। लेकिन स्वयं में झांक के देखिए हम क्या कर रहे हैं।
आज कोरेगांव का जश्न, फिर बवाल। उसके बाद खिलजी की जीत का जश्न, फिर बवाल। उसके बाद जयचंद और ना जाने कितने जयचंदों का महिमामंडित करने के लिए जश्न। उसके बाद फिर तोड़फोड़ आगजनी और मौतों को देखने वाले हैं हम।
समझ में नहीं आता कि आखिर क्यों हम खून के प्यासे होते जा रहे हैं। वहशत होती है ये सब देख कर। कल ही बच्चे टीवी देखने के बाद सवाल कर रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ। मैंने बताया 200 साल पहले एक युद्ध में जीत मिली थी। उसी की ख़ुशी मना रहे थे। तो बवाल हो गया। बिटिया ने बड़ी मासूमियत से कहा पापा इनका कम्युनिकेशन सिस्टम कितना स्लो है, इतने दिन बाद खबर मिली। अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था उसे देने के लिए।
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मेरा सभी से और सबसे पहले स्वयं से सवाल है कि आखिर ये सब कर हम किसे जलाने या बताने की कोशिश कर रहे हैं। जिन्होंने हिंसा का तांडव किया उन्हें क्या उनके दादा को भी सभी महार सैनिकों के नाम तक नहीं पता होंगे। सोच का स्तर कहां जा रहा है। मानसिकता किस स्तर पर जा चुकी है। समझ नहीं आता आज सभी के लिए चिंतन का समय है कि हम आने वाली नस्लों को क्या देकर जाना चाहते हैं।
तुम्हे क्यों समझ में नहीं आता कि हमारे कथित हितैषी नेता ऐसे ही मौकों को तलाशते हैं। जहां वो अपनी काठ की हांड़ी चड़ा उसमें इंसानी खून और गोश्त से अपनी भूख मिटा सकें। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता तुम्हारे होने या न होने से। लेकिन तुम्हारे जाने के बाद मां-बाप, बीवी-बच्चे कहीं बहुत पीछे रह जाएंगे रोने के लिए।
पश्चिमी देशों की नकल हम सभी करते हैं। उनके उत्सवों को खुशी-खुशी मनाते हैं। लेकिन उनसे सीखने का प्रयास हम नहीं करते। कोरेगांव जैसे युद्ध जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस सहित रूस में हुए। लेकिन वहां से कभी ऐसे बवाल की खबर नहीं आती। आज जर्मनी में यहूदी बाकियों के साथ ऐसे रहते हैं कि किसी को पता ही नहीं होता की कौन किस धर्म या वर्ग का है। जबकि वहां तो ऐसे बवाल आए दिन होने चाहिए। शुक्र मनाइए की आप इंडिया में हैं। जहां हमारा पाला किसी हिटलर मुसोलिनी या स्टॅलिन से नहीं पड़ा। वर्ना आज भी हमारी नस्लें खुली हवा में साँस लेने से डरती।
हम क्यों अपने को खाचों में बांट रहे हैं। बंद करो ये सब बहुत हुआ।