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भारत में बनेगा चीन जैसा ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम, हर चेहरे का होगा डेटाबेस
नई दिल्ली: भारत दुनिया का सबसे बड़ा ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम तैयार करने की योजना बना रहा है। इस सिस्टम में एक विशालकाय केंद्रीयकृत डेटा बेस होगा जिसमें देश भर में सर्विलांस कैमरे से खींची गई फोटो संग्रह की जायेंगी। अपराधियों की धरपकड़ के लिये ये सबसे एडवांस सिस्टम है। चीन इस मामले में सबसे आगे है जहां हर नागरिक की फोटो का डेटाबेस बना हुआ है और लगातार लोगों पर सर्विलांस कैमरेों से निगाह रखी जाती है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम खड़ा करने के लिये अगले महीने टेंडर निकालेगी। बोली लगाने वाली कंपनियों को भारत भर में सर्विलांस कैमरे के जरिये एकत्र किये गये मुखाकृति यानी फेशियल डेटा का एक केंद्रीयकृत सिस्टम बनाना होगा। ये डेटाबेस पासपोर्ट से लेकर फिंगरप्रिंट के रिकार्ड से लिंक होगा। इससे पुलिस को अपराधियों, गुमशुदा लोगों और लावारिस लाशों की शिनाख्त में बहुत मदद मिलेगी। सरकार का कहना है कि पुलिस बल की अत्यधिक कमी से जूझ रहे देश को इस सिस्टम से बड़ी राहत मिलेगी।
जानकारों का कहना है कि इस सिस्टम से सर्विलांस कंपनियों को बहुत बड़ा फायदा होने जा रहा है। टेकसाई रिसर्च कंपनी का अनुमान है कि भारत का ‘फेशियल रिकग्नीशन’ बाजार २०२४ तक छह गुना बढ़ कर ४.३ बिलियन डॉलर का हो जायेगा। एक चिंता ये भी है कि उचित और पर्याप्त सुरक्षा के बगैर ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम का गलत फायदा उठाने का बहुत बड़ा जोखिम सामने आयेगा। इस सिस्टम का चीन व्यापक स्तर पर इस्तेमाल कर रहा है लेकिन उसके पास अपनी जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिये तकनीकी का इस्तेमाल करने की पूरी क्षमता है जो भारत के पास अभी नहीं है।
बहरहाल, अभी ये पता नहीं है कि ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम लगाने के लिये कौन कौन सी कंपनियां बोली लगायेंगी। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन नामक एनजीओ ने आरटीआई के जरिये जानकारी हासिल की है कि बोली लगाने वाली संभावित कंपनियों के साथ सरकार की बैठक हुई है जिसमें कंपनियों ने राज्यों के डेटाबेस के साथ केंद्रीयकृत डेटाबेस को जोडऩे के बारे में स्पष्ट जानकारी चाही। कंपनियां ये भी जानना चाहती थीं कि क्या ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम ऐसा होना चाहिये जो प्लास्टिक सर्जरी करा चुके लोगों को भी पहचान ले।
भारतीय कंपनियों के पास तकनीक नहीं
एक भारतीय स्टार्टअप स्टाक्यू टेक्रॉलजीज़ के सीईओ अतुल राय के अनुसार, ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम के लिये अधिकांश भारतीय कंपनियां बोली नहीं लगा पायेंगी क्योंकि टेंडर की शर्त है कि कंपनियों को यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्रॉलजी के मानकों को पूरा करना चाहिये।
‘स्टाक्यू’ कंपनी कई राज्यों की पुलिस फोर्स के लिये ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम डेवलप कर चुकी है। अतुल राय का कहना है कि भारत के पास चीन जैसी कैमरा क्वालिटी नहीं है जिस कारण एकीकृत सिस्टम के जरिये किसी इंसान की कैमरे द्वारा पहचान किया जाना मुश्किल है। इसके अलावा यहां कोई नेशनल नेटवर्क लागू करना कठिन है क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
चीन की समूची जनसंख्या का है डेटाबेस
दुनिया में अलग-अलग देश अपने हिसाब से ‘फेशियल रिकग्नीशन’ सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं। ब्रिटेन की पुलिस इस टेक्रॉलजी का परीक्षण कर रही है। ब्रिटेन में कई दुकानें व मॉल कमर्शियल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे दुकान या परिसर में प्रवेश करने वालों के चेहरों का तत्काल पुलिस डेटाबेस में दर्ज चोरों के रिकार्ड से मैच कर लिया जाता है।
अमेरिका में एफबीआई अपराधों की जांच में इंटरस्टेट फोटो सिस्टम का इस्तेमाल करती है जिसमें करीब तीन करोड़ नागरिकों का डेटाबेस है। इस सिस्टम में ८० फीसदी फोटो दोषी करार दिये गये अपराधियों की हैं।
चीन में देश के लगभग हर व्यक्ति की फोटो ‘फेशियल रिकग्नीशन’ डेटाबेस में दर्ज है। यीटू टेक्रॉलजी नामक कंपनी द्वारा बनाया गया सॉफ्टवेयर किसी भी चेहरे को विशालकाय डेटाबेस में मात्र दो सेकेंड में पहचान लेता है। डेटाबेस में लोगों के आईडी कार्ड में लगी फोटो का संग्रह है। डेटाबेस को निजी कंपनियों के सहयोग से केंद्र सरकार चलाती है। चीन में लगे सत्रह करोड़ सर्विलांस कैमरे इस काम में बहुत मददगार हैं। मिसाल के तौर पर, सेंस टाइम नामक कंपनी सर्विलांस वीडियो में से चेहरे छांट कर फोटो डेटाबेस से आनन फानन में मैच करा देती है। सेंस टाइम के प्रोग्राम को पुलिस द्वारा इस्तेमाल में भी लाया जा रहा है।
चीन में पुलिस व अन्य एन्फोर्समेंट एजेंसियों के पास विशेष कैमरे व चश्मे होते हैं जिसके सामने किसी व्यक्ति का चेहरा भर सामने आने से फोटो डेटाबेस से उसका मिलान हो जाता है और अपराधी को तत्काल ट्रेस या पकड़ा जा सकता है।