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Father-Daughter Love: पिता की जान के लिए बेटी ने कानून के विरुद्ध लड़ी जंग, देश का पहला ऐसा मामला कि आंखे कर देगा नम
India News: केरल के कोच्चि में अपने बीमार पिता की जान बचाने में नाबालिग बेटी ने बड़ी भूमिका निभाई है। लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे पिता की जान बचाने के लिए 17 वर्षीय बेटी देवानंदा ने अपने लीवर का एक हिस्सा दान कर दिया है।
India News: केरल के कोच्चि में अपने बीमार पिता की जान बचाने में नाबालिग बेटी ने बड़ी भूमिका निभाई है। लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे पिता की जान बचाने के लिए 17 वर्षीय बेटी देवानंदा ने अपने लीवर का एक हिस्सा दान कर दिया है। किसी नाबालिक के लीवर दान करने का देश में यह पहला मामला माना जा रहा है। पिता को लीवर देने के लिए इस बेटी को केरल हाईकोर्ट तक जंग लड़नी पड़ी क्योंकि देश में नाबालिग के अंगदान करने पर रोक लगी हुई है। केरल हाईकोर्ट की ओर से पिछले साल दिसंबर में देवानंदा को लीवर दान करने की अनुमति मिली थी और उसके बाद यह बेटी अपने पिता की जान बचाने में कामयाब रही है।
देवानंदा के पिता को मिली नई जिंदगी
केरल के राजागिरी अस्पताल में देवानंदा के पिता की सर्जरी करके उन्हें नई जिंदगी दी गई है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि अस्पताल में एक हफ्ते तक रहने के बाद देवानंदा अब सामान्य जीवन में लौट रही है। देवानंदा 12वीं की छात्रा है और अब वह मार्च में होने वाली अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गई है। राजागिरी अस्पताल के कार्यकारी निदेशक और सीईओ फादर जॉनसन वाझाप्पिल्ली सीएमआई ने एक बयान में देवानंदा की प्रशंसा करते हुए कहा कि अंगदान करने वालों के लिए देवानंदा एक रोल मॉडल की तरह है।
देवानंदा की इस पहल से खुश होकर अस्पताल प्रशासन की ओर से इलाज का पूरा खर्च भी माफ कर दिया गया है। अस्पताल प्रशासन की ओर से जारी किए गए बयान के मुताबिक सर्जरी का नेतृत्व राजागिरी अस्पताल में मल्टी ऑर्गन ट्रांसप्लांट सर्विसेज के प्रमुख डॉ. रामचंद्रन नारायण मेनन ने ट्रांसप्लांट सर्जन और ट्रांसप्लांट एनेस्थेटिस्ट के साथ किया। गत 9 फरवरी को किए गए इस ऑपरेशन के बाद मेनन ने भी देवानंदा के साहस की प्रशंसा करते हुए उसे दूसरे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बताया।
परिजनों में सिर्फ देवानंदा का लीवर मैच हुआ
केरल के त्रिशूल जिले के कोलाजी की मूल निवासी देवानंदा के पिता प्रतीक त्रिशूर में एक कैफे चलाते थे मगर वे लीवर कैंसर के शिकार हो गए थे। डॉक्टरों ने उन्हें जल्द से जल्द लीवर प्रत्यारोपण की सलाह दी थी मगर परिवार के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि किसी भी परिजन का लीवर मैच नहीं हो पा रहा था। परिजनों ने मैच होने वाले अन्य दानकर्ताओं की तलाश भी की मगर इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी। परिजनों में सिर्फ देवानंदा का लीवर ही पिता से मैच हो रहा था, लेकिन उसके लिए अंग दान में सबसे बड़ी बाधा उसकी उम्र थी।
हाईकोर्ट में जंग लड़कर हासिल की अनुमति
दरअसल मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 के प्रावधानों के अनुसार नाबालिगों के अंगदान पर रोक लगी हुई है। पिता को लीवर देने के लिए देवानंदा को केरल हाईकोर्ट तक जंग लड़नी पड़ी। देवानंदा ने अनुमति हासिल करने के लिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में देवानंदा को अपने पिता को लीवर दान देने की अनुमति दे दी थी।
केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी जी अरुण ने पिता के लिए देवानंदा की प्रेम भावना को सलाम करते हुए कहा था कि धन्य हैं वे माता-पिता है जिनके पास देवानंदा जैसी संतान हैं। केरल हाईकोर्ट से अनुमति पाने के बाद अब देवानंदा के पिता की सर्जरी हो गई है और देवानंदा के लीवर से उन्हें नई जिंदगी मिली है।