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Alert! उपभोक्ता सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ा रहे एलईडी ब्रांड बल्ब
लखनऊ। भारत में एलईडी बल्ब का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की कवायद सरकार कर रही है। लेकिन एक स्टडी के अनुसार 70 फीसदी से ज्यादा एलईडी ब्रांड बल्ब उपभोक्ता सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अंतराराष्ट्रीय एजेंसी नीलसन के एक अध्ययन के अनुसार, 76 फीसदी बल्ब ब्रांड ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और भारत सरकार के इलेक्ट्रानिक्स एवं आईटी मंत्रालय द्वारा निश्चित किये गये सेफ्टी मानकों पर कहीं खरे नहीं उतरते हैं।
नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार एलईडी उत्पादों की इस स्थिति के कारण देश में एनर्जी इफिशियंसी पर भी असर पड़ेगा। एक ओर सरकार देश भर में उजाला स्कीम के तहत 77 करोड़ सामान्य बल्ब की जगह एलईडी बल्ब लाना चाहती है वहीं इनकी खराब क्वालिटी पूरे किये कराये पर पानी फेर सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकार को नॉन ब्रांड और घटिया उत्पाद के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिये।
नीलसन का अध्ययन नई दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद और हैदराबाद में किया गया। सध्ययन में पाया गया कि मानकों का सबसे ज्यादा उल्लंघन दिल्ली में 73 फीसदी - है। दिल्ली में एलईडी बल्ब में 32 फीसदी में निर्माता का नाम नहीं था। 34 फीसदी में पता नहीं था और 73 फीसदी में बीआईएस मार्का नहीं था। इसके बाद हैदराबाद का स्थान है जहां 69 फीसदी बल्ब में बीआईएस मार्का नहीं था। इस मामले में मुंबई बेहतर है जहां बीआईएस मार्का 36 फीसदी उत्पादों में नहीं था, 2 फीसदी में नाम या पता नहीं था।
भारत में इलेक्ट्रिक लाइटिंग कंपनियों के संगठन का ही अनुमान है कि तीन बड़े महानगरों में ही 54 फीसदी एलईडी लाइटिंग ब्रांड और 63 फीसदी डाउनलाइट ब्रांड उद्योग नियमों का पालन नहीं करते हैं यानी लाइटिंग बाजार का आधा हिस्सा गैकानूनी है।
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आंकड़े
- 10 हजार करोड़ रुपये का है भारत में एलईडी बाजार।
- 22 हजार करोड़ की लाइटिंग इंडस्ट्री में एलईडी का हिस्सा 45 फीसदी है।
- कुल एलईडी बाजार का 50 फीसदी हिस्सा बल्ब और डाउनलाइट का है।
- नौ अरब डॉलर कीमत की एलईडी लाइटिंग का निर्यात 2014 में चीन ने किया था।
- चीन से एलईडी का सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका में होता है।
- एलईडी लाइटिंग में चीन का हिस्सा 23.1 फीसदी है।
- 2020 तक एलईडी लाइटिंग बाजार 27 अरब डॉलर का हो जाने का अनुमान है।
- विश्व में जितनी एलईडी लाइटिंग बिकती है उसका 12 फीसदी भारत में बिकता है।
- भारत में एलईडी लाइटिंग बनाने की करीब 650 इकाईयां हैं।
- भारत में एलईडी लाइटिंग का बाजार 2009 से 16 के बीच सालाना 17.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है।
एलईडी पर होगी स्टार रेटिंग
घरों में बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहे एलईडी बल्ब पर भी अब एसी, फ्रिज की तरह बिजली बचत मानक वाले सितारें लगेंगे। सरकार अब एलईडी बल्ब को भी अनिवार्य रूप से स्टार लेबलिंग कार्यक्रम के दायरे में लाने की तैयारी कर रही है। स्टार लेबलिंग यानी स्टैन्डर्ड एंड लेबलिंग कार्यक्रम बिजली मंत्रालय के अधीन आने वाले ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) का एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसके तहत उत्पादों पर एक से लेकर पांच तक सितारे यानी स्टार दिये जाते हैं। स्टार की संख्या जैसे-जैसे बढ़ती है, वह उत्पाद उतना ही कम बिजली की खपत करता है।
बीईई के अनुसार एलईडी लैंप को स्टार रेटिंग कार्यक्रम के अंतर्गत अनिवार्य श्रेणी में लाया जा रहा है। इसे जनवरी 2018 से लागू किया जाएगा। फिलहाल एलईडी लैंप स्टार रेटिंग कार्यक्रम के अंतर्गत स्वैच्छिक श्रेणी में है। सरकार उजाला कार्यक्रम को जोरशोर से लागू कर रही है सो ऐसे में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ग्राहकों को केवल गुणवत्तापूर्ण उत्पाद ही मिले।
स्टार रेटिंग कार्यक्रम के अंतर्गत कमरों में उपयोग होने वाले एसी, फ्रास्ट फ्री रेफ्रिजरेटर, ट्यूबलाइट (ट्यूबलर फ्लोरेसेंट लैंप), रंगीन टीवी, बिजली से चलने वाली गीजर, इनवर्टर एसी जैसे नौ उत्पाद अनिवार्य श्रेणी में हैं। वहीं पंखे, एलपीजी स्टोव, वाशिंग मशीन, कंप्यूटर जैसे 12 आइटम स्वैच्छिक श्रेणी में हैं। स्वैच्छिक यानी कंपनियां चाहें तो स्टार रेटिंग लेबल लगाएं या न लगायें।
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अब ऊर्जा दक्षता ब्यूरो कई और आइटम स्टार लेबल के तहत लाने की तैयारी में है। इन उत्पादों में चिलर्स और वीआरएफ (वर्चुअल राउटिंग एंड फारवाॄडग) समेत अन्य आइटम शामिल हैं। लेकिन यह अभी स्वैच्छिक होंगे। बीईई डायरेक्ट कूल रेफ्रिजरेटर्स, रूम एसी, वितरण ट्रांसफामर्र और बिजली वाले गीजर की ऊर्जा खपत मानकों की समीक्षा कर रहा है जिसका मकसद बाजार में बिजली खपत के लिहाज से इन उत्पादों को और बेहतर बनाना है। ये सभी उत्पाद स्टार रेटिंग कार्यक्रम के अंतर्गत अनिवार्य श्रेणी में आते हैं।
बिजली की बचत
- बीईई के अनुसार स्टार लेबल योजना से 2016-17 में 18.32 अरब यूनिट (बीयू) बिजली की बचत हुई।
- 2011-12 से लेकर अब तक इस कार्यक्रम से 99.41 अरब यूनिट बिजली की बचत हुई है।
आंखों को खतरा
एलईडी लाइटें आपकी आंखों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं, ऐसा एक अध्ययन में बताया गया है। अध्ययन के अनुसार लाइट एमिटिंग डायोड (एलईडी) लाइटें इंसान की आंखों के रेटिना को ऐसा नुकसान पहुंचा सकती हैं जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती है। एलईडी किरणों के लगातार एक्सपोजर से स्थाई नुकसान का खतरा होता है।
एलईडी लाइट्स का लगातार एक्सपोजर कम्प्यूटर, मोबाइल, टैबलेट, टीवी स्क्रीन और ट्रैफिक लाइटों से प्रमुखत: होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे बड़ा खतरा नीली रोशनी वाली एलईडी लाइट्स से होता है। इसलिये इनकी चमक को कम करने के लिए उपकरणों में फिल्टर लगाए जाने की जरूरत है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आंखों को ऐसे किसी खतरे से बचाने का सबसे अच्छा उपाय है कि लगातार एलईडी एक्सपोजर से जहां तक संभव है वहां तक बचा जाये। यानी लगातार स्क्रीन पर आंखें गड़ा कर न रखी जायें।
फ्लिकर से होता है सिरदर्द
बिजली की बचत करने वाले बल्ब ज्यादा टिमटिमाते या फ्लिकर करते हैं। इसका नतीजा है सिरदर्द। ब्रिटेन की एक यूनीवर्सिटी में की गयी हेल्थ रिसर्च के अनुसार एलईडी बल्ब को जलाने के सिर्फ बीस मिनट बाद लोगों को सिर चकराने और दर्द का एहसास हो सकता है। रिसर्च के अनुसार ऐसे बल्ब की टिमटिमाहट पारंपरिक बल्बों की तुलना में अधिक मजबूत होती है। ट्यूब लाइट या फ्लोरसेंट रोशनी हर टिमटिमाहट के साथ 35 प्रतिशत तक मध्यम होती है लेकिन एलईडी लाइट्स शत-प्रतिशत तक मध्यम हो जाती हैं।
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आंखों के सामने इस तरह की टिमटिमाहट सिरदर्द का कारण बनती हैं और काम करने में कठिनाई होती है, कंस्ट्रेशन में कमी आ जाती है। शोध के अनुसार जैसे जैसे बिजली बचाने वाले बल्ब का दायरा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे लोगों में फ्लिकर या टिमटिमाहट बर्दाशत न कर पाना, सिर चकराना और दर्द की शिकायत आम हो जाती है। अनुसंधान के अनुसार एलईडी बल्ब प्रति सेकंड चार सौ बार फ्लैश होते हैं जिससे सिरदर्द की संभावना चार गुना तक बढ़ जाती है।
सावधानी भी जरूरी
एक रिसर्च के अनुसार एलईडी बल्ब में आर्सेनिक तथा लेड यानी सीसा होता है जो कैंसरकारक पाया गया है। इन तत्वों की मात्रा रंगीन झालर में इस्तेमाल किये जाने वाले लाल रंग के एलईडी में सबसे ज्यादा पायी गयी है। सफेद एलईडी बल्ब में सबसे कम लेड होता है लेकिन निकल की काफी मात्रा होती है जो जबर्दस्त एलर्जी पैदा कर सकता है। वहीं कुछ एलईडी में कॉपर की इतनी मात्रा होती है कि वह पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा बन सकती है।
सुरक्षित ढंग से हटायें कचरा
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि घर में एलईडी या सीएफएल टूट जाये तो हाथों में दस्ताने व मुंह पार मास्क पहन कर टूटे बल्ब का कचरा हटाना चाहिए।
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एलईडी है क्या
- एलईडी का पूरा नाम लाइट इमिटिंग डायोड है। 1968 में इसका पहला सफल निर्माण हुआ, हालांकि इसके बनने की प्रक्रिया 1927 से ही शुरू हो गई थी।
- सामान्य बल्ब वायर फिलामेंट की वजह से रोशनी देता है, जबकि सेमीकंडक्टर में इलेक्टिक करंट पहुंचने से एलईडी प्रकाशित होता है।
- सामान्य बल्ब से बिजली का शॉक लग सकता है लेकिन एलईडी से झटका नहीं लगता। इसमें शॉक रेसिस्टेंस पावर होता है।
- एलईडी में हानिकारक मरकरी का उपयोग नहीं होता है।
- यह साधारण बल्ब से पांच गुना अधिक रोशनी देता है।
- एलईडी बल्ब 25 हजार घंटे से एक लाख घंटे तक आसानी से जलता है। सीएफएल बल्ब 10-15 हजार घंटे और सामान्य बल्ब एक से दो हजार घंटे तक जल सकता है।
- एलईडी बल्ब गर्म नहीं होता है, इसलिए इसे कूल लाइट भी कहा जाता है।