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अमीरी के साथ देश छोड़कर बाहर जाने वालों की तादाद बढ़ी
मुम्बई। भारत जैसे-जैसे अमीर बनता जा रहा है वैसे ही देश छोड़कर बाहर जाने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है। अनुमान है कि २०१७ में करीब १ करोड़ ७० लाख भारतीय लोग विदेशों में रह रहे थे। आज भारत दुनिया भर में अप्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत देश बन गया है। वजह साफ है- सन १९९० में ७० लाख भारतीय ही विदेशों में थे और इस संख्या में अब तक १४३ फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो चुका है।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक मामलों के विभाग के आंकड़ों का विश्लेषण करके इंडिया स्पेंड ने ये तस्वीर पेश की है। तस्वीर का एक पहलू ये भी है कि १९९० से २०१७ के बीच भारत की प्रति व्यक्ति आय ५२२ फीसदी बढ़ी है जिससे लोगों को विदेशों में जीवनयापन करने के लिए जाने के ज्यादा साधन मिल पा रहे हैं। लेकिन इसी अवधि में अकुशल अप्रवासियों के भारत छोडऩे की गति धीमी हुई है। एशियन डेवलेपमेंट बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार २०१७ में करीब ३,९१,००० ऐसे लोगों ने भारत छोड़ा जबकि २०११ में इनकी तादाद ६,३७,००० थी। इसका मतलब ये भी नहीं है कि भारत से बाहर जाने वालों में उच्च कुशलता वाले लोगों की भागीदारी ज्यादा रही है। पहले अकुशल श्रमिकों में 'इमीग्रेशन चेक रिक्वायर्डÓ (ईसीआर) का ठप्पा लगाया जाता था, लेकिन भारत सरकार के नियमों में बदलाव की वजह से अब अधिकाधिक अप्रवासी नॉन-ईसीआर पासपोर्ट पर यात्रा करते हैं। ये भी एक वजह हो सकती है कि अकुशल अप्रवासियों के बाहर जाने का सिर्फ आंकड़ा ही घटा है।
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आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय इमीग्रेशन आर्थिक विकास के साथ बढ़ता है क्योंकि लोगों में विदेश जाने का खर्च उठाने की क्षमता बढ़ती है। विदेश जाने का ये ट्रेंड तभी बदलता है जब देश अपर मिडिल क्लास का स्तर हासिल कर लेते हैं। लोगों के विदेश जाने का सिलसिला उन स्थितियों में पैदा होता है जब अपने देश में रोजगार के अवसर सीमित होने लगते हैं। एडीबी की रिपोर्ट के अनुसार विदेश पहुंचकर ७३ फीसदी लोग वहां की वर्कफोर्स में शामिल हो जाते हैं।
भारत का जॉब मार्केट
भारत में कामकाजी उम्र वाले लोगों की संख्या प्रति माह १३ लाख की रफ्तार से बढ़ रही है। इससे पहले से सुस्त जॉब मार्केट में स्थितियां और भी बिगड़ती जा रही हैं। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हाल में भारतीय रेलवे ने ९० हजार भर्तियां निकालीं तो २ करोड़ ८ लाख लोगों ने आवेदन किया।
काम और बेहतर जिंदगी
१९९० से २०१७ के बीच जिस तरह भारत से विदेश जाने वालों की बाढ़ रही उसी का नतीजा है कि कतर जैसे देश में भारतीयों की तादाद इस दौरान ८२,६६९ फीसदी तक बढ़ गयी। १९९० में जहां मात्र २७३८ भारतीय ही कतर में थे जो २००१७ में २२ लाख से भी ज्यादा हो गए। किसी भी देश की तुलना में ये सबसे बड़ा इमीग्रेशन रहा है। २०१५ से २०१७ के बीच मात्र तीन साल में ही कतर में भारतीय जनसंख्या २५० फीसदी बढ़ी है। जिन अन्य अरब देशों में १९९० से २०१७ के दरम्यान भारतीय बढ़े वो थे ओमान और यूएई। ओमान में इन २७ वर्षों में भारतीय जनसंख्या ६८८ फीसदी व यूएई में ६२२ फीसदी बढ़ी है। वहीं सऊदी अरब और कुवैत में २०१० से २०१७ के बीच भारतीय समुदाय क्रमश: ११० फीसदी व ७८ फीसदी बढ़ा है।
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ये आंकड़े बताते हैं कि खाड़ी के अमीर देशों के प्रति भारतीयों का रुझान कितना तेजी से बढ़ा है। वजह है इन देशों में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं जिनमें मानव श्रम की जरूरत महत्वपूर्ण होती है। कतर में हाल के वर्षों में कई बड़े अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन हुए हैं। अब वल्र्ड कप फुटबॉल की तैयारी चल रही है। इनके लिए ढेरों कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा पर्यटन को बढ़ावा देने व तेल के इतर आमदनी के लिए खाड़ी देश कई और भी प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। लेकिन हाल की वैश्विक आर्थिक सुस्ती के कारण भारत से बाहर जाने वालों का सिलसिला धीमा हुआ है। इसकी वजह तेल में मंदी, प्रोजेक्ट्स की संख्या में कमी आदि है।
भारतीय जनसंख्या में बढ़ोतरी वाले टॉप १० देश (११९०-२०१७)
कतर - ८२६६९ फीसदी
इटली - ३९६७ फीसदी
आयरलैंड - १६१९ फीसदी
मालदीव - १३६५ फीसदी
सिंगापुर - ९९७ फीसदी
स्पेन - ७३९ फीसदी
जापान - ७२७ फीसदी
ओमान - ६८८ फीसदी
न्यूजीलैंड - ६७१ फीसदी
यूएई - ६२२ फीसदी
यूरोप में सर्वाधिक भारतीय इटली पहुंचे
यूरोप की बात करें तो सर्वाधिक भारतीय इटली पहुंचे हैं। इसकी वजह ९० व सन २००० के दशक में अप्रवासियों को इस देश में कई तरह की आम माफी दी गई। अवैध तरीके से इटली पहुंचे हजारों भारतीयों को आम माफी के तहत प्रवासी स्तर मिल गया। बाद में बहुतों ने अपने परिवारों को वहां बुला लिया। शादियों के कारण परिवारों का विस्तार होता चला गया। इटली ही यूरोप का ऐसा देश है जो भारतीय नागरिकों को सीजनल वर्क वीज़ा देता है। इस वजह से भी ये देश भारतीयों के लिए पसंदीदा है।
कई अन्य देश भी बने पसंदीदा
भारतीय माईग्रेंट्स की सबसे ज्यादा संख्या पारंपरिक रूप से खाड़ी देश, यूके और यूएसए में सबसे ज्यादा रही है, लेकिन बीते एक दशक में कई और देशों में भारतीयों की रुचि बढ़ी है। मिसाल के तौर पर नीदरलैंड, नार्वे और स्वीडन में २०१० से २०१७ के बीच भारतीय जनसंख्या क्रमश: ६६ फीसदी, ५६ फीसदी और ४२ फीसदी बढ़ी है। इसका कारण सस्ती और बेहतर शिक्षा तथा ग्रेजुएशन के बाद काम के ज्यादा अवसरों का उपलब्ध होना है।
भारत को फायदा
यूरोप और पश्चिम में तेजी से बूढ़ी होती आबादी के कारण प्रवासी श्रमिकों की मांग में और इजाफा होगा। विकसित देशों में घटती जा रही जन्म दर के कारण कर्मचारियों की कमी को बाहर से आए श्रमिक ही पूरा कर रहे हैं। चूंकि भारतीय मानव श्रम तलनात्मक रूप से ज्यादा कुशल (सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में) और अंग्रेजी बोलने वाला है, इसलिए इन देशों की मांग से भारत को ही फायदा होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के आधे देशों में फर्टिलिटी दर २.१ से भी नीचे है। मतलब ये कि वहां की जनसंख्या के आकार को बरकरार रखने के लिए जितने बच्चे पैदा होने चाहिए उससे कहीं कहीं कम हो रहे हैं।
अब बाहर जाने वालों में यूपी सबसे आगे
भारत से विदेश खासकर मध्य-पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया जाने वाले अधिकांश अकुशल श्रमिक आमतौर पर केरल व तमिलनाडु के रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में उत्तरी राज्यों और गरीब राज्यों से विदेश जाने वालों की तादाद दक्षिणी राज्यों के लोगों से कहीं ज्यादा हो गई है। २०११ से यूपी इस मामले में सबसे आगे है। इसके बाद बिहार व तमिलनाडु हैं। उधर केरल में तो बीते ६ वर्षों में विदेश जाने वाले लोगों की संख्या ६९ फीसदी घटी है। २०११ और २०१३ में जहां केरल से ८० हजार लोग विदेश गये थे वहीं २०१७ में ये संख्या २५ हजार से कम हो गई। असल में भारत में असमान विकास और असमान श्रम बाजार के कारण सभी राज्यों के लोग विदेश जाने को इच्छुक भी नहीं रहते। इसके अलावा गोवा, केरल, तमिलनाडु में शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति कमोबेश विकसित देशों की तरह हैं सो यहां के लोगों में बाहर जाने का कोई लालच नहीं रहा है।
४४ खरब रुपए से ज्यादा भारत भेजा
भारत से बड़ी तादाद में विदेश जाने वाली श्रम शक्ति के कारण कमाई भी खूब हुई है। बाहर काम करने वालों ने २०१६ में ही ६२.७ बिलियन डॉलर यानी ४४ खरब रुपए से भी ज्यादा भारत भेजे। इस वर्ष भारत में विदेशी निवेश मात्र ४६.४ बिलियन डॉलर का रहा।
कहां से कितने गए
(२०११ से २०१६ के बीच कुल अप्रवासियों में राज्यों का शेयर)
उत्तर प्रदेश - ३१ फीसदी
बिहार - १५ फीसदी
तमिलनाडु - ११ फीसदी
केरल - १० फीसदी
प. बंगाल - ८ फीसदी
आंध्र प्रदेश - ७ फीसदी
पंजाब - ७ फीसदी
राजस्थान - ७ फीसदी
तेलंगाना - २ फीसदी
ओडीशा - २ फीसदी