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Manual Scavengers Untold Story: भारत में इस कुप्रथा से जा रही सैंकड़ों जानें, आखिर इस कुप्रथा का कब होगा अंत

Manual Scavengers Untold Story: भारत में 2023 तक के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करीब 58,000 लोगों को हाथ से मैला ढोने का काम करने की पुष्टि हुई है।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 20 Dec 2024 2:01 PM IST
India Manual Scavengers Untold Story Wikipedia
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India Manual Scavengers Untold Story Wikipedia 

Manual Scavengers Untold Story: भारत, जहां विज्ञान और तकनीकी प्रगति के युग में प्रवेश कर चुका है, वहां आज भी लाखों लोग अमानवीय परिस्थितियों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। इनमें से एक गंभीर समस्या है ‘हाथ से मैला ढोना’ (Manual Scavenging)। यह प्रथा न केवल भारत के सामाजिक ताने-बाने में गहराई तक समाई हुई है, बल्कि यह सामाजिक भेदभाव और जातिगत शोषण का प्रतीक भी है।सभी प्रकार के सफाई कार्यों को ‘तुच्छ' या नीच कार्य माना जाता है और इसलिये यह कार्य सामाजिक पदानुक्रम के सबसे निचले पायदान के लोगों को सौंपा जाता है। सफाई कर्मचारी के रूप में मुख्यतः दलित व्यक्तियों को नियोजित किया जाता है, जहाँ वे हाथ से मैला ढोने वाले या ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स’ (Manual Scavengers), नालों की सफाई करने वाले, कचरा उठाने वाले और सड़कों की सफाई करने वाले के रूप में कार्य करते हैं।

हाथ से मैला ढोने का अर्थ

हाथ से मैला ढोना एक ऐसी प्रथा है जिसमें व्यक्ति को मानव मल और गंदगी को साफ करने के लिए शारीरिक श्रम करना पड़ता है। इसमें आमतौर पर सूखे शौचालयों, सेप्टिक टैंकों और खुले नालों से मल की सफाई करना शामिल है।


यह काम अक्सर अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में होता है, जहां स्वच्छता और सुरक्षा उपकरणों का अभाव होता है।

भारत में मौजूदा स्थिति

हालांकि, भारतीय संविधान और कानून हाथ से मैला ढोने को समाप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन यह प्रथा अभी भी समाज के निचले स्तर पर प्रचलित है। कानूनी रूप से, कोई भी व्यक्ति या एजेंसी किसी को हाथ से मैला ढोने के लिए नियोजित नहीं कर सकती। केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया है कि "हाथ से मैला ढोने का निषेध और पुनर्वास अधिनियम, 2013" के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऐसा करती है, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा। अधिनियम की धारा 8 के तहत, दोषी पाए जाने पर दो साल तक की कैद, 1 लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।सरकार के हाल के आँकड़ों के अनुसार, भारत में 97 प्रतिशत मैनुअल स्कैवेंजर्स दलित वर्ग के हैं।


यह कानूनी प्रावधान न केवल हाथ से मैला ढोने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि इसे समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस कानून के लागू होने के बावजूद, कई स्थानों पर इसका सही क्रियान्वयन अब भी एक चुनौती बना हुआ है।

आंकड़े और सच्चाई

भारत में 2023 तक के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करीब 58,000 लोगों को हाथ से मैला ढोने का काम करने की पुष्टि हुई है। हालांकि, यह आंकड़ा वास्तविक स्थिति का सही प्रतिबिंब नहीं है, क्योंकि कई मामलों में यह काम अनौपचारिक रूप से किया जाता है।


सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 339 लोगों की मौत हुई है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि 2023 में 9, 2022 में 66, 2021 में 58, 2020 में 22, 2019 में 117 और 2018 में 67 मौतें दर्ज की गईं। आंकड़ों के आधार पर बात की जाए तो साल 1983 से लेकर साल 2023 तक मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम करते हुए कल 941 लोगों की जान गई है. बता दें यह आधिकारिक आंकड़े हैं। इनमें उन लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिनकी मौत अनरजिस्टर्ड है। साल 2013 में दिल्ली भारत का पहला राज्य था. जिसने मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाया था।

जातिगत प्रभाव:

हाथ से मैला ढोने का कार्य ज्यादातर दलित समुदाय से संबंधित लोगों को करना पड़ता है। यह उनके लिए जातिगत भेदभाव और सामाजिक कलंक को और गहरा करता है।

महिला श्रमिक:

हाथ से मैला ढोने वालों में एक बड़ी संख्या महिलाओं की है, जिन्हें इस काम के लिए बेहद कम मजदूरी दी जाती है और सामाजिक अपमान झेलना पड़ता है।

कानूनी और प्रशासनिक स्थिति

भारत सरकार ने हाथ से मैला ढोने को समाप्त करने के लिए कई कानूनी प्रावधान और योजनाएं लागू की हैं।कानूनी रूप से, कोई भी व्यक्ति या एजेंसी किसी को हाथ से मैला ढोने के लिए नियोजित नहीं कर सकती। केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया है कि "हाथ से मैला ढोने का निषेध और पुनर्वास अधिनियम, 2013" के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऐसा करती है, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा। अधिनियम की धारा 8 के तहत, दोषी पाए जाने पर दो साल तक की कैद, 1 लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।


यह कानूनी प्रावधान न केवल हाथ से मैला ढोने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि इसे समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस कानून के लागू होने के बावजूद, कई स्थानों पर इसका सही क्रियान्वयन अब भी एक चुनौती बना हुआ है।

प्रमुख कानून

हाथ से मैला ढोने का निषेध और पुनर्वास अधिनियम, 2013:

इस कानून के तहत हाथ से मैला ढोने को प्रतिबंधित किया गया है और दोषियों के लिए सजा का प्रावधान है। यह कानून श्रमिकों के पुनर्वास और उन्हें वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराने पर जोर देता है।

स्वच्छ भारत मिशन: इस मिशन का उद्देश्य देशभर में स्वच्छता की स्थिति को सुधारना और खुले में शौच को समाप्त करना है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिए मौजूदा कानूनी ढांचा

1. मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:

यह अधिनियम सूखे शौचालयों को हटाने और किसी भी प्रकार के अस्वच्छ शौचालय, नालों या गड्ढों की मैनुअल सफाई को गैर-कानूनी घोषित करता है। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को हाथ से मैला ढोने के लिए नियोजित करना दंडनीय अपराध है।दोषियों के लिए 2 साल तक की सजा या ₹1 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है।पुनर्वास के तहत प्रभावित व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, और आर्थिक सहायता दी जाती है।


2. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989: मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे अधिकांश श्रमिक दलित समुदाय से आते हैं। यह अधिनियम इन समुदायों के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करता है।

3. सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश: 2014 में सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने हाथ से मैला ढोने से जुड़े मामलों में प्रभावित परिवारों को ₹10 लाख की मुआवजा राशि देने का आदेश दिया।

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहलकदमियां

राष्ट्रीय गरिमा अभियान (National Dignity Campaign): यह अभियान 2012 में भोपाल से शुरू हुआ और ‘मैला मुक्त भारत’ का आह्वान करता है। इसके तहत देशभर में जागरूकता अभियान और ‘मैला मुक्ति यात्रा’ का आयोजन किया गया।

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC): यह संगठन सफाई कर्मचारियों को आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करता है।

समस्याएं और चुनौतियां

जातिगत संरचना और सामाजिक पूर्वाग्रह इस समस्या को समाप्त करने में बड़ी बाधा बनते हैं।कई मामलों में, हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान नहीं हो पाती है, जिससे उनके पुनर्वास में समस्या आती है।कई योजनाएं कागजों तक सीमित रह जाती हैं, और जमीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से नहीं हो पाता।नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग सीमित है। इससे हाथ से मैला ढोने वालों को इस कार्य में लगे रहना पड़ता है।


मैला ढोने और साफ-सफाई के कार्यों में संलग्न लोग कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया और मीथेन जैसी गैसों के संपर्क में आते हैं। इन गैसों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से उनमें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है। बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा और रोज़गार तथा अवसरों की कमी के कारण मैनुअल स्कैवेंजर्स यह कार्य करने को विवश होते हैं और समाज भी उन्हें अन्य सामुदायिक गतिविधियों के लिये स्वीकार नहीं करता है। बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा और रोज़गार तथा अवसरों की कमी के कारण मैनुअल स्कैवेंजर्स यह कार्य करने को विवश होते हैं और समाज भी उन्हें अन्य सामुदायिक गतिविधियों के लिये स्वीकार नहीं करता है।

हाल के घटनाक्रम और सुधार

1. रोबोटिक्स और मशीनों का उपयोग- भारत में कुछ शहरों ने सीवर सफाई के लिए रोबोट और मशीनों का उपयोग करना शुरू किया है। यह तकनीकी श्रमिकों के लिए एक सुरक्षित विकल्प प्रस्तुत करती है।

2. सामाजिक जागरूकता अभियान:

कई गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और सामाजिक कार्यकर्ता हाथ से मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं।

3. उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप:

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकार को इस समस्या को समाप्त करने के लिए और अधिक कठोर कदम उठाने का निर्देश दिया है।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह हमारे समाज के नैतिक मूल्यों पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। हालांकि सरकार और विभिन्न संगठनों ने इसे समाप्त करने के लिए कदम उठाए हैं। लेकिन सामाजिक भेदभाव और प्रशासनिक अक्षमता इस प्रयास को कमजोर करती है।

किन राज्यों में मशीनों का उपयोग और कहां अभी भी मैन्युअल सफाई

मशीनों का उपयोग करने वाले राज्य

तमिलनाडु: तमिलनाडु ने रोबोटिक सीवर सफाई मशीनें ‘बैंडिकूट’ को अपनाने की पहल की है। ये मशीनें सीवर और नालियों की सफाई में मानव श्रमिकों की जगह ले रही हैं।

केरल: केरल सरकार ने भी रोबोटिक्स और आधुनिक उपकरणों को प्रोत्साहित किया है। यहां तकनीकी पहल ने मैन्युअल सफाई की दर को काफी हद तक कम कर दिया है।

महाराष्ट्र: मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में सीवर सफाई के लिए अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है।


दिल्ली: दिल्ली में मशीनीकृत सफाई के लिए बड़ी संख्या में उपकरण खरीदे गए हैं।

कर्नाटक: बेंगलुरु जैसे शहरों में स्थानीय निकाय मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे मैन्युअल सफाई की जरूरत घट रही है।

अभी भी मैन्युअल सफाई वाले राज्य

उत्तर प्रदेश: बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में मैन्युअल सफाई प्रचलित है।

बिहार: राज्य में आधुनिक उपकरणों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण हाथ से मैला ढोने की प्रथा जारी है।

झारखंड: आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के कारण यहां मैन्युअल सफाई व्यापक है।


मध्य प्रदेश: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मशीनों का उपयोग सीमित है, जिससे मैन्युअल सफाई अभी भी हो रही है।

राजस्थान: राज्य के ग्रामीण इलाकों में सूखे शौचालयों की सफाई के लिए मैन्युअल श्रम का उपयोग होता है।

सरकार का नजरिया और सुधार के प्रयास

सरकारें धीरे-धीरे मैन्युअल सफाई को खत्म करने के लिए मशीनों की खरीद और वितरण पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। लेकिन इन प्रयासों के सफल होने के लिए उचित नीतियां और उनका क्रियान्वयन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विदेश की बात करें तो पश्चिमी किसी भी देश में हाथ से मैला नहीं उठाया जाता है वहाँ यह सभी काम मशीन करती हैं ।इस मामले में पाकिस्तान और बांग्लादेश की हालत बुरी है । यह समय की मांग है कि इस अमानवीय प्रथा को पूरी तरह से समाप्त किया जाए। इसके लिए सामाजिक जागरूकता, तकनीकी उपाय और सरकारी नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। जब तक हाथ से मैला ढोने वाले लोगों को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार नहीं मिलता, तब तक हमारा समाज सही मायनों में प्रगतिशील नहीं कहा जा सकता।



Admin 2

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