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भारत में जमे हुए हैं दो करोड़ से ज्यादा घुसपैठिये

raghvendra
Published on: 3 Aug 2018 4:02 PM IST
भारत में जमे हुए हैं दो करोड़ से ज्यादा घुसपैठिये
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नयी दिल्ली: भारत में किन देशों के कितने अवैध प्रवासी या घुसपैठिये रह रहे हैं इसका कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। हां, एक अनुमान जरूर है कि सिर्फ बांग्लादेश के ही कोई २ करोड़ घुसपैठिये भारत में रह रहे हैं। ये संख्या समूचे ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या के बराबर है। बांग्लादेशियों के अलावा ४० हजार से ज्यादा रोहिंगिया घुसपैठिये भारत में जमे हुए हैं।

वर्ष २००० में किए गए एक अनुमान के अनुसार भारत में अवैध बांग्लादेशियों की तादाद डेढ़ करोड़ थी और प्रति वर्ष करीब तीन लाख बांग्लादेशियों का आना जारी था। आमतौर पर ये माना जाता है कि अगर एक अवैध व्यक्ति पकड़ा जाता है तो चार बच निकलते हैं। इसी अनुमान के आधार पर गणना की जाती है। ज्यादातर अवैध प्रवासियों या घुसपैठियों का जमावड़ा सीमावर्ती इलाकों में है लेकिन धीरे-धीरे ये पूरे देश में फैल चुके हैं।

यूपीए शासन काल में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने १४ जलाई २००४ को संसद में बताया था कि भारत में १ करोड़ २० लाख बांग्लादेशी घुसपैठिये रह रहे हैं। घुसपैठियों का सबसे ज्यादा जमावड़ा पश्चिम बंगाल (५७ लाख) में है। मोदी सरकार की बात करें तो गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने घुसपैठियों की संख्या २ करोड़ बताई है।

जहां तक जनगणना की बात है तो २००१ के आंकड़ों के अनुसार भारत में बांग्लादेश से आ कर बस जाने वालों की संख्या ३० लाख ८४ हजार ८२६ है। ‘बांग्लादेश मुक्ति संग्राम’ के दौरान ही कोई एक करोड़ लोग जान बचा कर सीमा पार करके भारत में गए थे। इनमें से कितने वापसे गए ये भी विवाद का मुद्दा है।

भारत में घुसना सबसे सस्ता

बांग्लादेश से भारत में आना बहुत सस्ता सौदा है। अनुमान है कि सीमा पार कराने वाले ऑपरेटर दो हजार रुपए में बांग्ला भाषी ये लोग अपने आपको असम या बंगाल का बता कर कहीं भी रहने लग जाते हैं। कुछ सौ रुपए खर्च करके इनके वोटर कार्ड आदि भी आसानी से बना दिये जाते हैं।

घुसपैठियों की मदद करने वाले एजेंट खुद बांग्लादेशी होते हैं जो काफी समय से भारत में जमे हुए हैं। इन एजेंटों के तार सीमापार से जुड़े होते हैं। यही लोग घुसपैठियों को पासपोर्ट तक मुहैया कराते हैं। दिलचस्प बात ये है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत में आने के बाद हर साल अपने मूल घर का चक्कर जरूर लगाते हैं। ये उसी तरह है जैसे कि मुंबई, दिल्ली में काम करने वाले बिहार-यूपी के मजदूर त्योहारों आदि पर घर जाते हैं और वहां पैसा, सामान आदि पहुंचाते हैं। एजेंट लोग हर बार सीमा पार कराने का पैसा लेते हैं सो उनकी निश्चित आमदनी बनी रहती हैं। वैसे, इस काम में सीमा पर तैनात दोनों ओर की फोर्स के लोगों का भी सहयोग रहता है। फोर्स के अधिकारियों के भी एजेंट होते हैं जो इस काम का पैसा वसूलते हैं।

बिहार पर असर

असम के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से 40 लाख लोगों के नाम बाहर कर दिए जाने का मामला 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में भी प्रमुख चुनावी मुद्दा बनेगा। वजह ये है कि बिहार के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और सुपौल सहित प्रदेश की एक दर्जन सीटों पर बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी जमे हुए हैं। 1985 के बाद हर चुनाव बिहार में भाजपा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला एक मुद्दा रहा है। इसी के बल पर पार्टी को इस इलाके में हर चुनाव में सफलता भी मिलती रही है।

आबादी पर घुसपैठ का प्रभाव

  • अररिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.52 प्रतिशत, 2011 में मुस्लिम आबादी 42.94 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि।
  • कटिहार में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.58 प्रतिशत, 2011 में बढक़र 44.46 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में वृद्धि 7.88 प्रतिशत।
  • पूर्णिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 31.93 प्रतिशत, 2011 में बढक़र 38.46 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में वृद्धि 6.53 प्रतिशत।

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी

पश्चिम बंगाल में कोई भी पार्टी ३० फीसदी वोट बैंक को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। ये वो वोट बैंक है जो हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। वजह है, बांग्लादेश से घुसपैठ और जनसंख्या में बेलगाम बढ़ोतरी। २०११ की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि मुर्शिदाबाद, नॉर्थ दिनाजपुर और माल्दा में अब मुस्लिम बहुसंख्य हो गए हैं जबकि नॉर्थ व साउथ २४ परगना, नादिया, हुगली, हावड़ा और बीरभूम जिलों में अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है। राज्य की २९४ विधानसभा सीटों में से १०० से ज्यादा पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। आंकड़ों की बात करें तो मुर्शिदाबाद में ६६.२८ फीसदी आबादी मुस्लिम है, माल्दा में ५१.२७ फीसदी, नॉर्थ दिनाजपुर में ४९.९२ फीसदी, साउथ २४ परगना में ३५.५७ फीसदी आबादी मुस्लिम है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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