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सेना दिवस के मौके पर जानिए इतिहास और मुस्लिम रेजिमेंट का सच

आज 15 जनवरी है। राजनीति की बात करें तो दलितों की स्वघोषित देवी मायावती का आज हैप्पी वाला बड्डे है। लेकिन, हम उनकी बात नहीं कर रहे। हम बात कर रहे हमारी आन बान और शान हमारी सेना की। जी हां! आज सेना दिवस है। इस मौके पर हम आपको बताएंगे हमारी सेना की सुनी अनसुनी बातें..  

Rishi
Published on: 15 Jan 2019 8:36 AM GMT
सेना दिवस के मौके पर जानिए इतिहास और मुस्लिम रेजिमेंट का सच
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नई दिल्ली : आज 15 जनवरी है। राजनीति की बात करें तो दलितों की स्वघोषित देवी मायावती का आज हैप्पी वाला बड्डे है। लेकिन, हम उनकी बात नहीं कर रहे। हम बात कर रहे हमारी आन बान और शान हमारी सेना की। जी हां! आज सेना दिवस है। इस मौके पर हम आपको बताएंगे हमारी सेना की सुनी अनसुनी बातें..

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फील्ड मार्शल के.एम.करियप्पा ने 15 जनवरी, 1949 को आखिरी ब्रिटिश कमांडर इन चीफ जनरल फ्रांसिस बूचर से थल सेना के कमांडर इन चीफ का प्रभार संभाला। तभी से इस दिन को सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्ष 1776 में कोलकाता में कंपनी सरकार ने भारतीय सेना का गठन किया।

देश भर में सेना की 53 छावनियां और 9 बेस हैं।

हमारे संविधान में जबरन भर्ती का भी प्रावधान है।

असम राइफल्स का गठन साल 1835 में हुआ ये देश की सबसे पुरानी पैरामिलिट्री फोर्स है।

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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना के करीब 93,000 सैनिकों और अधिकारियों को सरेंडर करने पर विवश कर सेना ने दुनिया के नक़्शे पर बांग्लादेश का निर्माण कर दिया।

आजादी से पहले खास पहचान के आधार पर रेजिमेंट बनती थी। अंग्रेजों को ऐसा लगता था कि पठान, कुरैशी, अहीर और राजपूत गजब के लड़ाका थे। उन्होंने इन सभी को रेजिमेंट में बांट दिया। इसके बाद 1857 में हुई बगावत से गोरी सरकार हिल गई और उन्होंने बागी समुदाय या उन इलाकों से भर्ती कम कर दी जहां के सैनिकों ने बगावत का साथ दिया। बाकी भर्ती चलती रही। इसके साथ ही जब कोई राजा हारता तो उसकी सेना भी गोरी सेना में शामिल हो जाती और नई रेजिमेंट सामने आ जाती थी। कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह की फौज जब गोरों से हारी तो 1849 में उनकी फौज अंग्रेज़ फौज में शामिल हो गई और सिख रेजिमेंट का जन्म हुआ।

मुस्लिम और सेना का रिश्ता

1857 की बगावत का केंद्र बंगाल आर्मी के सैनिक थे। इसलिए गोरों ने अपनी बंगाल आर्मी में अवध से लेकर बंगाल तक से भर्ती बंद कर दी। इसके बाद यहां से न मुस्लिम और ना ही ब्राह्मण भर्ती किए जाते थे। क्योंकि गोरों को लगता था कि इन दोनों समुदाय के सैनिकों ने बगावत को असरदार बनाया। लेकिन ऐसा नहीं था कि गोरी सेना में मुस्लिम और ब्राहमण की भर्ती सिरे से बंद हो गई थी। अब वो दूसरे इलाकों से इस समुदाय के सैनिक भर्ती करते थे। क्योंकि उस समय हिंदुस्तान कोई एक देश तो था नहीं कई रजवाड़े थे नवाब थे और पूरा भूभाग अलग अलग राज्यों(देश भी कह सकते हैं) के नियंत्रण में था। जिसे सिर्फ गोरी सरकार एक देश मानती थी। तो उसने दूसरे इलाकों से भर्ती कार्यक्रम आयोजित किए। ये कार्यक्रम आजादी तक चलता रहा। स्वतंत्रता से पहले ईस्ट इंडिया सरकार की सेना में करीब 30 प्रतिशत मुस्लिम सैनिक थे।

स्वतंत्रता मिली और कागज कलम के साथ ही सेना का भी बंटवारा हुआ। एक हिस्सा इंडियन आर्मी बना और दूसरा पाकिस्तान आर्मी। अब जानिए मुद्दे की बात। आपको बताया था कि बगावत के बाद दूसरे इलाके के मुसलमान सैनिक गोरी सेना ने भर्ती किए थे। ये इलाका था उत्तर पश्चिम का जो स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान के हिस्से में था। तो जब सेना बांटी गई तो पाकिस्तान की फौज में ये सैनिक शामिल हो गए। क्योंकि उनके घर वहां थे। इसलिए इंडियन आर्मी में मुसलमानों की संख्या कम हो गई। लेकिन ये कहना गलत है कि सेना में मुसलमान हैं ही नहीं।

फिलहाल रेजिमेंटल सिस्टम आर्मी का हिस्सा है। लेकिन अब इसमें सबकुछ बदल चुका है। रेजिमेंट का नाम भले ही कोई हो लेकिन उसमें सभी समुदाय के सैनिक होते हैं। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे गोरखा नहीं थे। लेकिन जब वो शहीद हुए, तो वो 11 गोरखा राइफल्स के अधिकारी थे। कई जाट सैनिक सिख रेजिमेंट में थे और हैं भी। हमने ये दो नाम आपको समझाने के लिए बता दिए हैं वर्ना सभी रेजिमेंट्स में ऐसा ही होता है।

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भाइयों और बहनों कान साफ़ कर के आंखों में गुलाब जल डाल कर पढ़िए और दूसरों को सुनाइए कि न तो गोरी सेना और न ही भारतीय थलसेना में कभी मुस्लिम रेजिमेंट थी। लेकिन... लेकिन! इंफेंट्री बटालियनों में मुसलमानों को हमेशा से प्रतिनिधित्व मिलता रहा है, जो आज भी मिल रहा है। आर्मी की ग्रेनेडियर रेजिमेंट की बटालियनों में आधे जवान मुसलमान हैं। इनमें भी कायमखानी मुसलमान अधिक संख्या में हैं। जम्मू कश्मीर लाइट इंफेंट्री में भी आधे जवान मुसलमान होते हैं। इनके अलावा आर्टिलरी और आर्मड कोर में भी मुस्लिम बड़ी तादात में हैं। सेना में कभी भी धर्म जाति समुदाय के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया। सैनिकों को देख कर कोई भी ये नहीं कहता, वो देखों फला धर्म का सैनिक खड़ा है। वहां सिर्फ एक ही नाम चलता है इंडिया.. सिर्फ एक जाति होती है इंडियन... सिर्फ एक धर्म होता है इंडियन्स।

अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि सेना में सिर्फ एक धर्म होता है। बाकी वहां कोई हिंदू मुस्लिम सिख इसाई नहीं होता।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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