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Har Ghar Tiranga Abhiyaan: भारत के झंडे की यात्रा तिरंगे तक
Har Ghar Tiranga Abhiyaan: अगर आजादी के पहले की बात करें तो छोटी छोटी रियासतों में बंटे इस देश का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था।
Har Ghar Tiranga Abhiyaan: भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास। तिरंगा कब से अस्तित्व में आया क्या देश आजाद होने के पहले भी तिरंगा देश का झंडा था। इस झंडे में कितने संशोधन हुए और कैसे यह देश का राष्ट्रीय ध्वज बना।
अगर आजादी के पहले की बात करें तो छोटी छोटी रियासतों में बंटे इस देश का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। ये बात अलग है कि विदेशी हुकूमत से सब परेशान थे और सबकी इच्छा विदेशी हुकूमत से निजात पाने की थी। इसी लिए एक समान उद्देश्य के लिए सब मिलकर लड़े। 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम के समय भी मिलकर लड़ने के बावजूद देश का कोई एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। उस समय यूनियन जैक ही फहराया करता था। उससे पहले भी कोई भारत के पास कभी भी ऐसा राष्ट्रीय ध्वज नहीं था जो उसे एक राष्ट्र के रूप में प्रतिनिधित्व दिला सके।
पहला झंडा कब अस्तित्व में आया
देश का पहला झंडा एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सचिंद्र प्रसाद बोस ने डिजाइन किया था। जोकि सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी के अनुयायी थे। इस झंडे को 1906 में बंगाल विभाजन के विरोध में फहराया गया था। उस समय सचिंद्र रिपन कॉलेज, कलकत्ता के चौथे वर्ष के छात्र थे। उन्होंने 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता, भारत में पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीर पार्क) में कलकत्ता ध्वज को डिजाइन और फहराया। 1908 में उन्हें गिरफ्तार कर रावलपिंडी जेल भेज दिया गया। यह झंडा केसरिया पीला और हरे रंग का था जिसमें बीच में वंदे मातरम लिखा था। वास्तव में जब तक बंगाल के विभाजन की घोषणा नहीं हुई, तब तक भारतीयों को झंडा रखने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई थी। उस दिन को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया गया था। एक साल बाद विभाजन विरोधी आंदोलन की बरसी पर यह झंडा फहराया गया। बाद में विभाजन रद्द होने के बाद लोग झंडे के बारे में भूल गए।
जर्मनी में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भाग लेने वाली मैडम भीकाजी रुस्तम कामा ने अंग्रेजों के साथ राजनीतिक लड़ाई के बारे में भाषण दिया और झंडा लहराया। इसे हेम चंद्र दास ने बनाया था। यह झंडा ऊपर हरा बीच में केसरिया और नीचे लाल था इसमें भी बीच में वंदेमातरम लिखा था।
वर्षों बाद 1917 में होमरूल आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और श्रीमती ऐनी बेसेंट ने भी एक झंडे का डिजाइन तैयार किया। यह झंडा यूनियन जैक के साथ था जिसमें पांच लाल और पांच हरी आड़ी पट्टियां थीं
चार साल बाद 1921 में गांधी जी ने श्री पिंगले वेंकय्या को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन करने के लिए कहा, जिसमें ध्वज में 'चरखा' होना चाहिए क्योंकि यह आत्मनिर्भरता, प्रगति और आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है। इसे स्वराज ध्वज, गांधी ध्वज और चरखा ध्वज भी कहा जाता था। हालांकि, 1931 में कराची में ध्वज को संशोधित करने के लिए एक सात सदस्यीय ध्वज समिति की स्थापना की गई थी और उन्होंने एक नया डिजाइन दिया था।
भारत के लिए बड़ा दिन तब आया जब लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत को स्वतंत्र करने के निर्णय की घोषणा की। सभी दलों को स्वीकार्य ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई और स्वतंत्र भारत के लिए ध्वज को डिजाइन करने के लिए डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक तदर्थ ध्वज समिति का गठन किया गया। गांधीजी की सहमति ली गई और पिंगले वेंकैया के झंडे को संशोधित करने का निर्णय लिया गया। चरखे के स्थान पर अशोक के सारनाथ स्तम्भ का चिन्ह, पहिया तय किया गया था। किसी भी रंग का कोई सांप्रदायिक महत्व नहीं था। राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया था।