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Parliament Attack: आज ही के दिन 2001 में संसद पर हुआ था हमला, भारत-पाक के बीच युद्ध की आ गई थी नौबत
Parliament Attack: आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर 2001 को पाकिस्तान पोषित लश्कर और जैश के आतंकियों ने लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले देश की संसद को दहलाने की कोशिश की थी।
Parliament Attack: संसद हमले की आज 21वीं बरसी है। आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर 2001 को पाकिस्तान पोषित लश्कर और जैश के आतंकियों ने लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले देश की संसद को दहलाने की कोशिश की थी। लेकिन संसद भवन की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाबलों ने आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए हमले को नाकाम कर दिया। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। संसद हमले के कारण भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) के बीच तनाव एकबार फिर चरम पर पहुंच गया था।
क्या हुआ था उस दिन ?
13 दिसंबर 2001 को संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। कारगिल युद्ध के दौरान खरीदे गए सैन्य साजो-सामान में कथित घोटाले को लेकर विपक्ष तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर हमलावर था। लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों के जोरदार हंगामे के कारण संसद सुबह ही ठप हो गई थी। सुबह 11.40 बजे पांच आतंकवादी गृह मंत्रालय के स्टिकर वाली एक सफेद एंबेसडर कार लेकर संसद भवन परिसर में घुस आए थे। एक आतंकी संसद भवन के गेट पर ही खुद को बम से उड़ा लेता है।
उपराष्ट्रपति के ड्राइवर शेखर संसद में राज्यसभा के गेट नंबर 11 पर उनके आने का इंतजार कर रहे थे। तभी धमाके की आवाज सुनते ही शेखर की नजरें दूसरी ओर मुड़ती हैं। वो कुछ समझ पाते कि कार सवार आतंकी उनकी गाड़ी में पीछे से जोरदार टक्कर मारते हैं और फिर नीचे उतरकर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर देते हैं। शेखर अपनी जान बचाने के लिए कार के पीछे छिप जाते हैं। इसके बाद फौरन उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात जवान मोर्चा संभाल लेते हैं। उनके और आतंकियों के बीच भीषण मुठभेड़ शुरू हो जाती है।
हमले के दौरान संसद के अंदर पूर्व उपप्रधानमंत्री सह गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी और दिवंगत रक्षा मंत्री जसवंत सिंह समेत 100 सांसद और कर्मचारी मौजूद थे। गोलियों की आवाज सुनते ही आडवानी अपने दफ्तर से बाहर निकलते हैं लेकिन सुरक्षाकर्मी उन्हें रोक लेते हैं और सारा माजरा बताते हैं। हमले की बात सुनकर आडवानी वापस अपने दफ्तर चले जाते हैं और प्रधानमंत्री वाजपेयी को घटना की जानकारी देते हैं। संसद के अंदर गोलीबारी से अफरातफरी मच गई थी। लोग इधर-उधर भाग रहे थे। हमले के वक्त संसद में टीवी मीडिया के लोग मौजूद थे। ऐसे में पूरे हमले का टेलीविजन पर लाइव टेलीकास्ट चल रहा था, जिसे देखकर पूरा देश हैरान था।
सभी आतंकी मारे गए
हमले के कुछ ही देर बाद सीआरपीएफ के जवानों ने मोर्चा संभाला और सभी पांचों आतंकियों को मार गिराया। इस हमले में महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव समेत 8 सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे। इसके अलावा संसद भवन का माली भी आतंकी हमले का शिकार हुआ था। इस आतंकी हमले में शामिल अफजल गुरू को 12 साल बाद 9 फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी।
चरम पर पहुंच गया था तनाव
कारगिल युद्ध के जख्म अभी भरे ही नहीं थे कि संसद हमले ने भारत और पाकिस्तान को एकबार फिर आमने-सामने खड़ा कर दिया था। संसद भवन हमले में पाकिस्तान आतंकियों और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई के शामिल होने से भारत पाक पर भड़का हुआ था। जबकि पाकिस्तान जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा को फंडिग देने के भारत के आरोप को खारिज कर रहा था। दोनों देशों की सेनाएं सरहद पर एकबार फिर एक दूसरे के सामने थीं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया परमाणु युद्ध की भविष्यवाणी करने में व्यस्त थी।
परमाणु युद्ध के खतरे को भांपते हुए इस विवाद में अमेरिका की एंट्री हुई। पाकिस्तान ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ भारत के साथ तनाव को खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने की अपील की। जिसके बाद जनवरी 2002 में ब्रिटिश पीएम टोनी ब्लेयर पाक राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का संदेश लेकर भारत आए। अमेरिका के बुश प्रशासन ने भी जैश और लश्कर को ग्लोबल टेरर संगठन की सूची में डाल दिया। राष्ट्रपति मुशर्रफ ने संसद हमले को 9/11 आतंकी हमले के सामान मानते हुए इसकी निंदा की और लश्कर एवं जैश समेत पांच आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया। जिसके बाद जाकर दोनों देशों के बीच तनाव कम हुआ।
बता दें कि संसद भवन पर हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी सुरक्षा काफी कड़ी कर दी। वर्तमान में यह देश के सबसे सुरक्षित परिसरों में से एक है। इसकी सुरक्षा में दिल्ली पुलिस,सीआरपीएफ, आईटीबीपी,एसपीजी, एनएसजी, आईबी और पार्लियामेंट सिक्योरिटी फोर्स तैनात हैं। संसद भवन में प्रवेश करने वालों को अब कई सुरक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।