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Indian President Carriage: जानिए राष्ट्रपति की बग्घी की कहानी, जिसे बटवारे के समय भारत ने पाकिस्तान से था जीता
Indian President Carriage: राष्ट्रपति की शाही बग्घी और इससे जुड़ा किस्सा भी काफी दिलचस्प है। इस बग्घी को लेकर बंटवारे के दौरान भारत और पाकिस्तान में ठन गई थी।
Indian President Carriage: देश में राष्ट्रपति का चुनाव (presidential election) संपन्न हो चुका है। 25 जुलाई 2022 को एक आदिवासी महिला पहली बार भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन होने जा रही हैं, यही वजह है कि इस चुनाव को लेकर लोगों में शुरू से काफी उत्सुकता थी। भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास स्थान राष्ट्रपति भवन न केवल देश बल्कि विदेशों में भी अपनी भव्यता के लिए मशहूर है। राष्ट्रपति की शाही बग्घी (presidential carriage) और इससे जुड़ा किस्सा भी काफी दिलचस्प है। इस बग्घी को लेकर बंटवारे के दौरान भारत और पाकिस्तान में ठन गई थी। फिर एक ऐसी तरकीब निकाली जिससे इस मसले का हल निकल सका।
1947 में आजादी से पहले भारत दो हिस्सों में विभाजित हो गया। ये काफी कष्टदायक बंटवारा रहा, जिसमें भारत ने काफी कुछ महत्वपूर्ण चीजों को गंवा दिया था। इसी बंटवारे को अमलीजामे पहनाने के लिए भारत और पाकिस्तान की तरफ से नियुक्त एक प्रतिनिधि एक टेबल पर बैठे। भारत के प्रतिनिधि थे एच. एम. पटेल और पाकिस्तान के चौधरी मुहम्मद अली। दोनों को ये अधिकार दिया गया था कि वो अपने –अपने देश का पक्ष रखते हुए बंटवारे का काम आसान करें। भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन से लेकर से सेना तक हरचीज का बंटवारा हुआ।
शाही बग्घी का ऐसे हुआ बंटवारा
इस बंटवारे में से एक गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स रेजिमेंट भी थी। इस रेजिमेंट का बंटवारा तो दोनों पक्षों के बीच हो गया, लेकिन रेजिमेंट की मशहूर शाही बग्घी को लेकर दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बन पाई। दोनों पक्ष इस खूबसूरत चीज को अपने पास रखना चाहते थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये था कि आखिर शाही बग्घी किसे दिया जाए। फिर इस बंटवारे के लिए नायाब तरीका ढूंढा गया। इसके लिए वायसराय की अंगरक्षक टुकड़ी के तत्कालीन हिंदू कमांडेंट और मुस्लिम डिप्टी कमांडेंट के बीच सिक्का उछालकर टॉस किया गया। टॉस भारत ने जीता और इस तरह शाही बग्घी भारत के हिस्से में आ गई।
क्यों है खास है ये बग्घी
राष्ट्रपति की ये शाही बग्घी बेहद खास है। इस बग्घी में सोने के पानी की परत चढ़ी हुई है। घोड़ों से खींचे जाने वाली यह बग्घी अंग्रेजों के शासनकाल में भारत को मिली थी। आजादी से पहले वायसराय इसकी सवारी किया करते थे। इस बग्घी के दोनों ओर भारत का राष्ट्रीय चिह्न सोने से अंकित है। इसे खींचने के लिए 6 घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। ये घोड़े भी खास नस्ल के होते हैं। इसके लिए लिए खास तौर से भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई मिक्स ब्रीड के घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, अब इस बग्घी को 6 की बजाय चार घोड़े ही खींचते हैं।
आजादी के बाद कब हुआ पहली बार इस्तेमाल
आजादी के बाद पहली बार इस बग्घी का इस्तेमाल देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद (First President Dr. Rajendra Prasad) ने गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। इसी बग्घी में बैठकर वह शहर का दौरा भी करते थे। 1950 से लगातार 1984 तक सरकारी कार्यक्रमों में बग्घी का इस्तेमाल होता था। लेकिन साल 1984 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस परंपरा को सुरक्षा कारणों से रोक दिया गया। इसके बाद से राष्ट्रपति बुलेट प्रुफ गाड़ी में आने लगे।
प्रणब मुखर्जी ने फिर से जीवित की परंपरा
2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बग्घी का इस्तेमाल कर एकबार फिर इस परंपरा को जीवित कर दिया। प्रणब मुखर्जी बीटिंग रीट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचते थे। इसके बाद से ये प्रक्रिया निरंतर जारी है। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया।