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Indira Gandhi Birthday: इंदिरा ने बांग्लादेश को पाक से कैसे किया अलग, भारत को बना दिया था दुनिया की बड़ी ताकत
Indira Gandhi Birthday: 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली। 1980 में वे फिर देश की प्रधानमंत्री बनीं मगर इस पद पर रहते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी।
Indira Gandhi Birthday 19 November 2022: देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को आयरन लेडी यूं ही नहीं कहा जाता। प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने अनेक साहसिक फैसले लिए जिसके कारण पूरी दुनिया को उनका लोहा मानना पड़ा था। ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर समेत उनके तमाम समकालीन नेता उनके साहसिक फसलों के मुरीद थे। उन्होंने 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली। 1980 में वे फिर देश की प्रधानमंत्री बनीं मगर इस पद पर रहते हुए ही 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गई थी।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने जीवनकाल में कई साहसिक फैसले किए जिनमें विशेष तौर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार,1974 का पोखरण विस्फोट,बैंकों का राष्ट्रीयकरण, रजवाड़ों का वर्चस्व खत्म करना और पाकिस्तान के साथ 1971 की जंग उल्लेखनीय है। 1971 की जंग में तो उन्होंने पाकिस्तान की पूरी तरह बोलती बंद कर दी थी। पाकिस्तान पूरी तरह घुटने टेकने पर मजबूर हो गया था। 93 हजार पाक सैनिकों के सरेंडर के साथ भारत ने यह युद्ध जीता था और पड़ोस में एक नए मुल्क बांग्लादेश का उदय हुआ था। फौलादी इरादों वाली इंदिरा गांधी का जन्म आज ही के दिन 1917 में हुआ था।
1971 में क्या थे पाकिस्तान में हालात
1971 में पाकिस्तान की सरकार और सेना पूर्वी पाकिस्तान में अपने ही लोगों पर बेतहाशा जुल्म कर रही थी। इन जुल्मों की वजह से पूर्वी पाकिस्तान के लोग काफी नाराज थे और उन्होंने अपनी ही सेना के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। जो लोग इस विद्रोह में शामिल नहीं थे, वे भारतीय सीमा में दाखिल हो रहे थे। पाकिस्तान की सीमा से सटे भारतीय राज्यों में पूर्वी पाकिस्तान से करीब दस लाख लोग दाखिल हो गए थे जिससे भारतीय राज्यों में भी अशांति का खतरा पैदा हो गया था। भारत की ओर से बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद पाकिस्तान के रवैए में कोई बदलाव नहीं आया था।
पाकिस्तान को चीन और अमेरिका की शह हासिल थी और उसी के दम पर वह भारत को गीदड़भभकी देने में लगा हुआ था। पाकिस्तान के सैन्य अफसर जंग तक की धमकी देने लगे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने उस समय दोहरी चुनौती थी। उन्हें भारतीय सीमा से सटे भारतीय राज्यों में फैली अशांति को भी खत्म करना था और इसके साथ ही पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब भी देना था।
अमेरिका को दिया टका सा जवाब
ऐसे नाजुक मोड़ पर इंदिरा गांधी ने काफी साहस और कूटनीति से काम लेते हुए पाकिस्तान को बैकफुट पर ढकेल दिया। इंदिरा गांधी ने सैन्य कार्रवाई के जरिए पाकिस्तान को सबक सिखाने की योजना के साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान की घेरेबंदी शुरू कर दी। हालांकि इस दौरान इंदिरा गांधी को अमेरिकी दबाव का सामना भी करना पड़ा।
अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर पाकिस्तान की तरफदारी करने के लिए भारत पहुंच गए। इंदिरा गांधी ने हेनरी किसिंजर से साफ तौर पर कहा कि वह पाकिस्तान को पूर्वी का पाकिस्तान में चल रहे नरसंहार पर रोक लगाने को कहें। अमेरिका की ओर से इसे पाकिस्तान का अंदरूनी मामला बताए जाने पर इंदिरा गांधी ने साफ तौर पर कह दिया कि पाकिस्तान के इन कदमों से भारतीय राज्यों में शांति भंग की आशंका पैदा हो गई है और हम इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
इंदिरा गांधी ने अमेरिका से दोटूक कहा कि अमेरिका ने अगर पाकिस्तान को नहीं रोका तो भारत कड़ी कार्रवाई करने में तनिक भी संकोच नहीं करेगा। किसिंजर और इंदिरा गांधी की इस बैठक के दौरान जनरल मानेक शॉ भी मौजूद थे। इस मीटिंग के दौरान इंदिरा गांधी ने मानेक शाॅ की ओर इशारा करते हुए कहा था कि हम इनकी मदद से पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे।
रूस के साथ समझौते की रणनीति
इंदिरा गांधी बहुत दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थीं और उन्होंने 1971 में रूस के साथ एक सुरक्षा संबंधी समझौता भी किया था। इस समझौते के तहत तय किया गया था कि सुरक्षा के मुद्दे पर दोनों देश एक दूसरे की मदद करेंगे। अमेरिका को दो टूक जवाब देने के बाद इंदिरा गांधी अपनी तैयारियों में जुट गई थीं।
1971 के नवंबर महीने के दौरान पाकिस्तानी हेलीकॉप्टर बार-बार भारतीय सीमा में दाखिल हो रहे थे। भारत की ओर से पाकिस्तान को इस तरह का कदम न उठाने की चेतावनी दे दी गई मगर पाकिस्तान कहां अपनी हरकतों से बाज आने वाला था। उस समय याहया खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। उनको इंदिरा गांधी के साहस की जानकारी नहीं थी और उन्होंने उल्टे भारत को जंग की धमकी दे डाली।
पाकिस्तान को दिया न भूलने वाला दर्द
इंदिरा गांधी को पाकिस्तान का यह रवैया काफी नागवार गुजरा। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का फैसला कर लिया। वह भारतीय सेना को पहले ही इस बाबत अलर्ट कर चुकी थीं। तभी पाकिस्तान एक बहुत बड़ी गलती कर बैठा। पाकिस्तानी हेलीकॉप्टरों ने भारतीय शहरों पर बमबारी शुरू कर दी। इंदिरा गांधी ने देर रात में आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाई और पूरे मामले से विपक्षी नेताओं को भी अवगत कराया।
उन्होंने आकाशवाणी पर देश को संबोधित करने के साथ भारतीय सेना को भी ढाका की ओर कूच करने का आदेश दे दिया। भारतीय वायुसेना की ओर से भी पाकिस्तानी शहरों पर बमबारी शुरू कर दी गई।। 4 दिसंबर 1971 को शुरू किए गए ऑपरेशन ट्राइडेंट ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जिसका दर्द पाकिस्तान आज तक नहीं भूल सका है।
पाक सैनिकों का सरेंडर और बांग्लादेश का उदय
भारतीय सेना की ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कमांडर एके नियाजी ने युद्धविराम का प्रस्ताव रखा जिसे भारत ने ठुकरा दिया। भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों से सरेंडर करने को कहा। युद्ध शुरू होने के 13वें दिन पाकिस्तान की 93 हजार फौज ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेकते हुए सरेंडर कर दिया।
भारत ने वादे के मुताबिक 16 दिसंबर को पूर्वी पाकिस्तान की बांग्लादेश के रूप में बुनियाद डाल दी और शेख मुजीब उर रहमान बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री बने। उस समय भारत के सामने कठिन चुनौतियां थीं मगर भारतीय सेना की बहादुरी और इंदिरा गांधी की रणनीति ने भारत के सिर पर जीत का ताज पहनाकर पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था।
दबाव में झुकने से इंदिरा का इनकार
पाकिस्तान के खिलाफ की गई इस कार्रवाई के जरिए भारत पूरी दुनिया में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा। अमेरिका और चीन जैसे देशों के समर्थन के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान पर कार्रवाई से पहले नवंबर महीने के दौरान इंदिरा गांधी अमेरिका भी गई थीं जहां उनकी तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ लंबी बातचीत हुई थी।
निक्सन ने इंदिरा गांधी से साफ लहजे में पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने को कहा था मगर फौलादी इरादों वाली इंदिरा गांधी कहां झुकने वाली थीं। उन्होंने भारत लौटते ही पूर्वी पाकिस्तान में शांति बहाल करने के लिए भारतीय सेना को कार्रवाई का आदेश दे दिया। इंदिरा गांधी के इस कदम से पूरी दुनिया में यह संदेश गया था कि भारत किसी भी ताकत के आगे झुकने वाला नहीं है।
ब्रिटेन की ट्रेनिंग का कड़ा विरोध
श्रीलंका में तमिल संकट को लेकर भी इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन की नीतियों का तीखा विरोध किया था। उन्होंने ब्रिटिश सेना की ओर से श्रीलंकाई सैनिकों को प्रशिक्षण दिए जाने पर तीखी आपत्ति जताई थी। उन्होंने इस बाबत ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को कड़ा पत्र लिखने का साहस दिखाया था। उन्होंने थैचर को लिखे पत्र में कहा था कि ब्रिटिश सेना श्रीलंकाई सैनिकों को ट्रेनिंग देने का काम तत्काल बंद कर दे। श्रीलंकाई सेना को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिए जाने की आशंका के बाद इंदिरा गांधी ने यह कदम उठाया था।
साहसिक फसलों के लिए किया जाता है याद
जून 1975 में देश में इमरजेंसी लगाने के लिए हमेशा इंदिरा गांधी पर निशाना साधा जाता रहा है मगर उन्हें साहसिक फैसलों के लिए भी याद किया जाता है। बचपन में प्रियदर्शनी नाम से जानी जाने वाली इंदिरा गांधी ने अपने सियासी जीवन के दौरान कड़े फैसले लेने से कभी परहेज नहीं किया। एक बार फैसला ले लेने पर वे उसी पर डटी रहती थीं।
अपने दृढ़ निश्चय के कारण वे पाकिस्तान के दो टुकड़े करने और स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार का फैसला लेने में भी कामयाब रहीं। 1975 में देश में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद उनके प्रति गुस्सा जरूर दिखा था मगर 1980 के लोकसभा चुनाव में वे एक बार फिर देश की सत्ता में वापस आने में कामयाब हुई थीं।
देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के के लोग आज भी उन्हें साहसिक फैसलों के लिए याद करते हैं। सचमुच में फौलादी इरादों वाली महिला थीं और यही कारण था कि उन्हें देशवासियों का भरपूर समर्थन मिला।