25 जून,1975: लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दिन, इंदिरा गांधी ने इसी दिन थोपी थी इमरजेंसी, आखिर क्या था इसका कारण

Emergency 1975: 25 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 25 Jun 2024 3:45 AM GMT
25 जून,1975: लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दिन, इंदिरा गांधी ने इसी दिन थोपी थी इमरजेंसी, आखिर क्या था इसका कारण
X

Indira Gandhi (photo: social media )

Emergency 1975: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 49 साल पहले 25 जून 1975 का दिन सबसे काला दिन माना जाता है क्योंकि उसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। 25 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था। इंदिरा गांधी ने अगले दिन सुबह रेडियो पर राष्ट्र के नाम संदेश में देश में इमरजेंसी लगाने की जानकारी दी थी।

आपातकाल लागू होने के साथ ही नागरिकों के सभी मूल अधिकार खत्म कर दिए गए थे और विरोध करने वाले सभी राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया था। हालत यह हो गई कि किसी भी जेल में जगह नहीं बची। नई पीढ़ी के लोग तो आपातकाल की विभीषिका को नहीं जानते मगर पुरानी पीढ़ी के लोगों को आज भी देश के लोकतांत्रिक इतिहास का वह सबसे काला दिन अच्छी तरह याद है। आपातकाल का यह दौर 21 महीने तक चला था और उस समय हुई कई घटनाओं ने आपातकाल की पटकथा लिखी थी। आपातकाल को लेकर भाजपा आज भी कांग्रेस पर हमला करती रही है जिसका जवाब देना कांग्रेस के लिए हमेशा मुश्किल साबित होता रहा है।

गुजरात आंदोलन ने दिखाया बड़ा असर

इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ 1973-75 के दौरान जबर्दस्त राजनीतिक असंतोष उभरा। गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन और जेपी के संपूर्ण क्रांति के नारे ने इंदिरा सरकार की नींव हिला दी थी। आर्थिक संकट और सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्रों और मध्य वर्ग में जबर्दस्त असंतोष उपजा जो गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन के रूप में सामने आया।

गुजरात में इस आंदोलन के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। गुजरात आंदोलन का इतना बड़ा असर पड़ा कि केंद्र सरकार राज्य विधानसभा भंग कर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए मजबूर हो गई।


जेपी ने दिया संपूर्ण क्रांति का नारा

1974 में हुई एक और घटना ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बड़ा झटका दिया था। दरअसल 1974 में मार्च-अप्रैल के दौरान बिहार में छात्र आंदोलन चरम पर पहुंच गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी इस आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया।

पटना के गांधी मैदान में उन्होंने ऐतिहासिक रैली में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। उन्होंने छात्रों, किसानों और श्रमिक संगठनों से अपील की कि वे सब अपने तरीके से भारतीय समाज को बदलने के लिए आगे आएं। जेपी के संपूर्ण क्रांति के इस नारे ने भी जबर्दस्त असर दिखाया।


रेलवे का चक्का जाम होने से हड़कंप

एक महीने बाद ही देश में रेलवे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई। रेलवे के चक्का जाम होने से सरकार में हड़कंप मच गया। सरकार ने इस आंदोलन को काफी सख्ती से कुचला। इस कारण सरकार के खिलाफ असंतोष और बढ़ गया।

इंदिरा गांधी 1966 में सत्ता पर काबिज हुई थी और इस दौरान उनके खिलाफ लोकसभा में दस अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए मगर वे हर बार इस भंवर से बाहर निकलती रहीं। वैसे उसे समय हो रही घटनाएं इंदिरा गांधी के लिए बड़ी मुसीबत बन गई थीं।


इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

इंदिरा गांधी की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही थीं मगर इसी बीच एक घटना ने उन्हें भीतर तक हिला दिया। 1971 के लोकसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के नेता राजनारायण रायबरेली में इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे। इंदिरा गांधी से चुनाव हारने के बाद राजनारायण इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर इंदिरा गांधी पर चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने और भ्रष्ट तरीके से चुनाव जीतने का आरोप लगाया। इस मुकदमे के दौरान देश के इतिहास में पहली बार किसी मामले में प्रधानमंत्री को हाईकोर्ट में पेश होना पड़ा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून, 1975 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया। उन्होंने रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया। जस्टिस सिन्हा ने उनकी लोकसभा सीट रिक्त घोषित करने के साथ उन पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लगा दी।


सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली इंदिरा को राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से राजधानी दिल्ली में हड़कंप मच गया। इस फैसले से इंदिरा गांधी को बड़ा झटका लगा और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के जज वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए इंदिरा गांधी को सांसद के रूप में मिल रही सारी सुविधाओं से वंचित कर दिया, लेकिन उनका प्रधानमंत्री पद सुरक्षित रहा।

इस आदेश के अगले दिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण में दिल्ली में बड़ी रैली की और पुलिस अधिकारियों से कहा कि उन्हें सरकार के अनैतिक आदेशों को नहीं मानना चाहिए। जेपी के इस आह्वान को देश में अशांति भड़काने के कदम के रूप में देखा गया। माना गया कि जेपी पुलिस और सरकारी कर्मियों को भड़का रहे हैं।


इस नेता ने दी इमरजेंसी लगाने की सलाह

देश में चल रही भारी राजनीतिक उठापटक, बढ़ रहे राजनीतिक विरोध और कोर्ट के आदेश के चलते इंदिरा गांधी गहरी मुसीबत में फंस गई थीं। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल घोषित करने की सलाह दी। कुछ जानकारों का कहना है कि संजय गांधी ने भी अपनी मां को इसके लिए तैयार किया। सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इमरजेंसी लगाने के संबंध में मसौदे को अंतिम रूप दिया था।


इमरजेंसी का संवैधानिक प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल घोषित करने का प्रावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि बाहरी आक्रमण होने अथवा आंतरिक अशांति की स्थिति में देश में आपातकाल घोषित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्री परिषद के लिखित आग्रह पर राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में भी रखा जाता है और इसके एक महीने में वहां से पारित न होने पर प्रस्ताव खारिज हो जाता है।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून, 1975 का देश में आपातकाल घोषित करने के मसौदे पर मुहर लगा दी। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल घोषित कर दिया। लोकतांत्रिक अधिकार रद्द कर दिए गए। प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति अहमद हर छह महीने बाद आपातकाल की अवधि बढ़ाते रहे।


21 महीने तक चला इमरजेंसी का दौर

आपातकाल के दौरान अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई और देश के सभी प्रमुख नेताओं को जेल के भीतर डाल दिया गया। लोगों की जबरन नसबंदी का मामला भी खूब उभरा। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक करीब 21 महीने की अवधि के दौरान देश में आपातकाल चला। आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा कर निरंकुश सत्ता की स्थापना की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों को इंदिरा गांधी के जबर्दस्त कोप का सामना करना पड़ा और काफी संख्या में स्वयंसेवक जेलों में बंद कर दिए गए।


लोगों की नाराजगी से बुरी तरह हार गईं इंदिरा

जेल जाने वालों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सुरेंद्र मोहन और प्रकाश सिंह बादल जैसे नेता भी शामिल थे। इंदिरा गांधी के निरंकुश रवैये के खिलाफ असंतोष लगातार बढ़ता रहा और फिर 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को जनता पार्टी के हाथों भारी पराजय का सामना करना पड़ा।

कई दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया था और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद की कमान सौंपी गई। हालांकि यह सरकार भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और अपने अंतर्विरोधों के कारण जल्द ही सत्ता से बेदखल हो गई और फिर 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गई।

बाद में 31 अक्टूबर 1984 को अंगरक्षकों ने ही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी। इमरजेंसी को लेकर आज भी सवाल उठाए जाते हैं और इन सवालों का जवाब देना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल साबित होता है।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

Next Story