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IPS अधिकारी राजेश पांडेय ने बताई गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला और सूरजभान की दोस्ती की कहानी, जानें पूरी कहानी
Gangster Shriprakash Shukla: बिहार के सूरजभान सिंह और यूपी के श्रीप्रकाश शुक्ला की दोस्ती की कहानी काफी ज्यादा रोचक है।
Gangster Shriprakash Shukla: एक समय था जब यूपी-बिहार के गैंगस्टरों की दोस्ती के किस्से पूरे देश में चर्चा के विषय हुआ करते थे। उसी में एक किस्सा बिहार के सूरजभान सिंह और यूपी के श्रीप्रकाश शुक्ला का है। जिनके बारे में खुद पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने खुलासा किया है। इन्होने इसे लेकर एक किताब भी लिखी है जिसका नाम वर्चस्व है। इस किताब में पूर्व आईपीएस अधिकारी ने अपराध के इस कालखंड का पूरा वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे उस समय में ये दोनों अपराध की दुनिया के राजा हुआ करते थे। बता दें कि इन दोनों की दोस्ती भी काफी ज्यादा चर्चित थी। अपराध जगत में इनका रिश्ता गुरु और चेले जैसा था। केंद्र सरकार में जब रेल मंत्री बिहार के किसी नेता को बनाया जाता था तब पूर्वांचल के गुंडों का रेलवे की ठेकेदारी लेने में पूरा दबदबा हुआ करता था। उस समय में उन ठेकेदारों की श्रेणी में सूरजभान सिंह भी थे। सूरजभान ने कई बार गोरखपुर के आसपास के इलाकों में काम करने की कोशिश की लेकिन उसे हर बार वीरेन्द्र प्रताप शाही के गुंडे खदेड़ देते थे। जानकारी के लिए बता दें कि पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ही वो शख्स थे जो श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के लिए बनाए गए एसटीएफ का नेतृत्व कर रहे थे।
एक पॉडकास्ट में पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने सूरभान सिंह और श्रीप्रकाश शुक्ला के रिश्तों को बड़े ही अच्छे से बताया है। उन्होंने कहा कि एक बार एक मर्डर के चलते श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक भाग गए थे लेकिन जब वो वापस लौट कर आये थे तब सूरजभान सिंह ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्होने बताया कि उस दौर में रेलवे में पेपर टेंडर हुआ करता था। और उस समय रेलवे का पेपर टेंडर कौन खरीदकर ले जा रहा है इसे देखने के लिए एक तरफ हरिशंकर तिवारी और दूसरी तरफ वीरेंद्र शाही हमेशा खड़े रहते थे। और वो उन लोगों का नाम लिखते थे जो पेपर टेंडर ले जा रहा है। और अगर ये टेंडर फार्म हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के अलावा कोई और जमा करता था तो उससे टेंडर छीन कर फाड़ दिया जाता था या फिर उन्हें सीधे गोली मार दी जाती थी।
सूरजभान सिंह जमा करना चाहते थे रेलवे टेंडर फार्म
अपने पॉडकास्ट में पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने बताया कि रेलवे का टेंडर फार्म सूरजभान सिंह जमा करना चाहते थे लेकिन उन्हें पता था कि उसके लिए उन्हें किसी दबंग की जरूरत पड़ेगी। तब उन्हें श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में पता चला। सूरजभान सिंह के पास दो AK-47 थे जिसे वो अपने साथ लेकर चलता था। और श्रीप्रकाश शुक्ला को ब्रांडेड हथियारों का बड़ा शौक था। वो हमेशा ब्रांडेड कपड़े ही पहनता था। जब एक बार दोनों की मुलाक़ात हुई तब श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा कि दादा आप मुझे एक एके-47 दे दीजिए।
जिसके बारे में राजेश पांडेय बताते हैं कि सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला से कहा कि मै तुम्हे एक नहीं दोनों AK-47 दे दूंगा लेकिन पहले तुम वीरेंद्र शाही को मार दो। इसपर श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा, ठीक है, कोशिश करते हैं। आप साथ रहिएगा। इसे मैं चलाऊंगा। इसके बाद गोरखपुर में श्रीप्रकाश शुक्ला और वीरेंद्र शाही की मुलाकात हो जाती है। और उसी समय पहली बार श्रीप्रकाश शुक्ला हाथ में AK-47 लेकर गोली चलाते हैं। जिसमें वीरेंद्र शाही का गनर मारा जाता है और वीरेंद्र शाही के पैर में गोली लगती है। लेकिन उसकी जान बच जाती है।
बाद में श्रीप्रकाश शुक्ला सूरजभान से कहते है कि यह उसका मुकद्दर था कि वह बच गया। मैंने अपना काम कर दिया। मुझे एके-47 देकर ही मोकामा जाइएगा। लेकिन सूरजभान ने अपनी शर्ते रखते हुए कहते है कि 'नहीं, वीरेंद्र शाही को मारोगे उसके बाद ही तुम्हें दोनों एके-47 दूंगा। क्योंकि वीरेंद्र शाही के रहते हम गोरखपुर में रेलवे का ठेका नहीं ले पा रहे हैं। बस फिर उसके बाद तो श्रीप्रकाश शुक्ला वीरेंद्र शाही के जान के पीछे ही पड़ गए थे। जिसकी पूरी कहानी पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने अपनी किताब में लिखी है।