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Iran Election: ईरान में राष्ट्रपति चुनने के लिए वोटिंग, लेकिन जनता में उत्साह नहीं
Iran President Election: पिछले चार वर्षों में मतदान में गिरावट आई है क्योंकि ज़्यादातर युवा देश में राजनीतिक और सामाजिक प्रतिबंधों से परेशान हैं
Iran Election: ईरान में नए राष्ट्रपति के चुनाव में जनता में ज्यादा उत्साह नजर नहीं आ रहा है। मतदाताओं के सामने विकल्प भी बहुत सीमित हैं। उन्हें कट्टरपंथी उम्मीदवारों और ईरान के सुधारवादी आंदोलन से जुड़े एक अनजान से नेता के बीच चयन करना है।जैसा कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से होता आ रहा है, महिलाओं और कट्टरपंथी बदलाव की मांग करने वालों को वोटिंग से रोक दिया गया है, जबकि मतदान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त निगरानीकर्ताओं की कोई निगरानी नहीं है
मतदान ऐसे समय में हो रहा है, जब गाजा पट्टी में इजरायल-हमास युद्ध को लेकर मध्य पूर्व में व्यापक तनाव व्याप्त है।सरकारी टेलीविजन ने कई शहरों में मतदान केंद्रों के अंदर कतारें दिखाईं हैं लेकिन कहीं भी ज्यादा भीड़ नजर नहीं आई। 6 करोड़ 10 लाख से अधिक ईरानी मतदान के पात्र हैं।हालांकि चुनाव से इस इस्लामिक राष्ट्र की नीतियों में कोई बड़ा बदलाव आने की संभावना नहीं है, लेकिन इसके नतीजे 1989 से सत्ता में काबिज ईरान के 85 वर्षीय सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के उत्तराधिकार को प्रभावित कर सकते हैं। पिछले चार वर्षों में मतदान में गिरावट आई है क्योंकि ज़्यादातर युवा देश में राजनीतिक और सामाजिक प्रतिबंधों से परेशान हैं।
कब आएंगे नतीजे?
मतपत्रों की मैन्युअल गिनती का मतलब है कि अंतिम परिणाम घोषित होने में दो दिन लगने की उम्मीद है, हालांकि शुरुआती आंकड़े शनिवार को दोपहर के आसपास सामने आ सकते हैं। अगर कोई भी उम्मीदवार डाले गए सभी मतों में से कम से कम 50 फीसदी से अधिक वोट नहीं जीतता है, तो चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद पहले टॉप दो उम्मीदवारों के बीच रन-ऑफ राउंड आयोजित किया जाता है।
कौन हैं उम्मीदवार
राष्ट्रपति पद के लिए तीन उम्मीदवार कट्टरपंथी हैं और एक कम प्रोफ़ाइल वाला तुलनात्मक रूप से उदारवादी है, जिसे सुधारवादी गुट का समर्थन प्राप्त है। ईरान के मौलवी शासन के आलोचकों का कहना है कि हाल के चुनावों में कम और घटते मतदान से पता चलता है कि व्यवस्था चरमरा गई है। 2021 के चुनाव में सिर्फ़ 48 फीसदी मतदाताओं ने भाग लिया, जिसके चलते रईसी सत्ता में आये थे। तीन महीने पहले संसदीय चुनाव में मतदान 41 फीसदी के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था।