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पॉली हाउस खेती में भारत को आत्मनिर्भर होने में मदद करेगा इजरायल
लखनऊ: इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू छह दिन के भारत दौरे पर हैं जिसमें दोनों देश रक्षा, सिंचाई और खेती समेत नौ क्षेत्रों में मदद के करार हुए हैं। सवाल ये कि इजरायल खेती में भारत की क्या मदद कर सकता है जिसका 50 प्रतिशत इलाका रेगिस्तान है और जहां 20 प्रतिशत ही खेती की जमीन है। इसके बावजूद इजरायल अपने जरूरत की पूरी फसल उगाने के बाद कुछ निर्यात भी कर देता है। ऐसा क्या खास वहां की खेती में।
हां है खास क्योंकि वहां पॉली हाउस में खेती की जाती है। खासियत होती है कि उसमें बेमौसम की सब्जियां और फल उगाए जाते हैं । जैसे जाडे में करेला,परवल और खीरा या गर्मी में गोबी या पत्तागोबी। फसल भी ऐसी कि लोग चौंक जाएं ।अगर खीरा उगा रहे हैं तो साल में चार फसल खीरे की ही होगी। इजरायल में पूरी खेती के पॉली फार्मिंग पर ही निर्भर करती है।
इसीलिए वो खेती पर पूरी तरह से आत्मनिर्भर है और उसे कहीं से अनाज लेने की जरूरत नहीं होती। तापमान को नियंत्रित कर देने से फसल भी बंपर होती है। जैसे एक वर्ग मीटर इलाके में 40 से 50 किलो तक टमाटर पैदा हो जाता है। पॉली हाउस में उत्पादित फसल अच्छी गुणवत्ता वाली होती है।
पॉली हाउस प्लास्टिक का बना ढांचा होता है ढाँचा बाहरी वातावरण के प्रतिकूल होने के बावजूद भीतर उगाये गये पौधों का संरक्षण करते हैं और बेमौसमी नर्सरी तथा फसलोत्पादन में सहायक होते हैं।
ढाँचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं। जैसे- गुम्बदाकार, गुफानुमा, रूपान्तरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि। पहाड़ों पर रूपान्तरित गुफानुमा या झोपड़ीनुमा डिजायन अधिक उपयोगी होते हैं। ढाँचे के लिए आमतौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग करते हैं जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं।
अस्थाई तौर पर बाँस के ढाँचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं जो सस्ते पड़ते हैं। आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है। इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है। निर्माण लागत तथा वातावरण पर नियन्त्रण की सुविधा के आधार पर पॉली हाउस तीन प्रकार के होते हैं।
कम कीमत वाले पॉली हाउस या साधारण पॉली हाउस जिसमें यन्त्रों से किसी प्रकार का कृत्रिम नियन्त्रण वातावरण पर नहीं किया जाता। मध्यम कीमत वाले पॉली हाउस जिसमें कृत्रिम नियन्त्रण के लिए (ठण्डा या गर्म करने के लिए) साधारण उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं और तीसरा
डाई कास्ट पॉली हाउस जिसमें आवश्यकता के अनुसार तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश, वायु संचार आदि को घटा-बढ़ा सकते हैं और मनचाही फसल किसी भी मौसम में ले सकते हैं। इसलिए कि पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें।
पंजाव विश्वविधालय से एमबीए कर रहीं कृषिका सिंह कहती हैं कि पाली फार्मिंग काफी फायदेमंद हैं । इसीलिए उन्होंने किसी कारपोरेट सेक्टर में नौकरी करने की अपेक्षा खेती को चुना है ।वो अपने काम में लगी हैं ओर इसे बडे पेमाने पर करना चाहती हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पत्तागोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं। फसलों का चुनाव क्षेत्र की ऊँचाई के आधार पर कुछ अलग हो सकता है।
वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए फूलगोभी, टमाटर, मिर्च आदि की पौध भी पॉली हाउस में डाली जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीष्म में शीघ्र फसल लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियों टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च की पौध भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार की जाती है। एक 100 वर्गमीटर का एंगिल आयरन का साधारण पॉली हाउस बनाने में लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है।
विवेकपूर्ण फसलों के उत्पादन से प्रथम दो वर्ष के भीतर ही लागत वसूल हो सकती है। उसके बाद के वर्षों में केवल उत्पादन लागत तथा 4 वर्षों में प्लास्टिक शीट बदलने का खर्चा शेष रहने से काफी मुनाफा कमाने की सम्भावना रहती है।
ऐसा नपहीं कि भारत में पॉली हाउस खेती का प्रचलन नहीं है। पंजाब और हरियाणा के किसान इस तरीके से खेती कर लाखों कमा रहे हैं। इजरायल के साथ ऐ समझौता इसलिए हुआ कि वो भारत के किसानों को इसकी वैज्ञानिक जानकारी भी देगा ताकि उनकी आर्थिग्क स्थिति सुधर सके।