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Vice President Oath Ceremony: जगदीप धनखड़ ने ली उपराष्ट्रपति पद की शपथ, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ
Vice President Oath Ceremony: जगदीप धनखड़ ने गुरूवार को देश के 14वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई।
Vice President Oath Ceremony: पश्चिम बंगाल के पूर्व गर्वनर और उपराष्ट्रपति पद के एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने गुरूवार को देश के 14वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली । राष्ट्रपति भवन में उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। बता दें कि निर्वतमान उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू का कार्यकाल कल यानी 10 अगस्त को समाप्त हो गया था। धनखड़ छह अगस्त को विपक्ष के उम्मीदवार मार्गरेट आल्वा को हराकर उपराष्ट्रपति पद का चुनाव जीते थे।
राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत अन्य सीनियर राजनेता और नौकरशाह मौजूद रहे। धनखड़ ने शपथ लेने से पहले राजघाट पर जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। बता दें कि जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति के चुनाव में 528 वोट मिले जबकि उनकी प्रतिदंवदी विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट आल्वा को महज 182 वोट प्राप्त हुए थे। उपराष्ट्रपति के चुनाव में कुल 725 वोट डाले गए थे। इनमें 710 वोट वैध पाए गए जबकि 15 वोट इनवैलिड मिले।
जगदीप धनखड़ का बचपन और शुरूआती कैरियर
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझनू जिले के किठाना में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गोकुल चंद और माता का नाम केसरी देवी है। जगदीप धनखड़ अपने चार भाई – बहनों में दूसरे नंबर पर आते थे। शुरूआती पढ़ाई गांव में करने के बाद वह चित्तौड़गढ़ स्थित सैनिक स्कूल चले गए। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे धनखड़ का चयन आईआईटी, एनडीए और फिर सिविल सेवा के लिए भी हुआ था। लेकिन उनका झुकाव वकालत की ओर था। राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल करने वाले धनखड़ ने अपनी वकालत की शुरूआत राजस्थान हाईकोर्ट से की थी। वे राजस्थान बार काउंसिल के चेयरमैन भी रहे थे। राजनीति में आने से पहले धनखड़ वकालत के पेशे में बड़ा नाम बन चुके थे।
धनखड़ का सियासी सफर
जगदीप धनखड़ एक वकील के तौर पर काफी मशहूर हो चुके थे। राजनीति में जाने को लेकर अनिच्छुक रहे धनखड़ बड़े नेताओं के आग्रह को ठुकरा नहीं सके और 1989 के आम चुनाव में झुंझनू लोकसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए। उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की। बाद में 1990 में चन्द्रशेखर सरकार में वह केंद्रीय मंत्री भी बने। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और साल 1993 के विधानसभा चुनाव में अजमेर की किशनगढ़ सीट से विधायक बने। 2003 आते – आते उनका कांग्रेस से भी मोहभंग हो गया और एकबार फिर पाला बदलते हुए उन्होंने बीजेपी का दामन थामा। हालांकि, यहां वे लंबे समय तक जमे रहे। 20 जुलाई 2019 को केंद्र सरकार ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देते हुए पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया। बंगाल के राजभवन में रहते हुए उनके और सीएम ममता बनर्जी के बीच संबंध कभी सहज नहीं रहे। दोनों के बीच काफी मतभेद रहे।