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गोलियों से छलनी यहां की दरकती दीवारें कह रहीं बर्बरता की कहानी
दुर्गेश पार्थ सारथी
अमृतसर। जलियांवाला बाग हत्याकांड को इसी वर्ष अप्रैल में सौ साल होने को हैं। सौ साल पहले हुई इस बर्बरता की गवाही यहां की दरकती दीवारें आज भी दे रही हैं। इन दीवारों में छिपे हैं भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी, सचिंद्र सान्याल, बटुकेश्वर दत्त और उधम सिंह जैसे असंख्य देश भक्तों के सुनहरे सपने जो उन्होंने भारत को आजाद करवाने और नए भारत का सपना देखा था। 13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के दिन हुई यह घटना काल के कपाल पर लिखे एक काले अध्याय की तरह है जिसे ब्रिटेन सरकार के बार-बार माफी मांगे जाने के बाद भी नहीं मिटाया जा सकता। जनरल डायर के एक इशारे पर 10 मिनट में 1650 गोलियां 379 लोगों के कलेजे को बेधती हुई दीवारों से टकराई थीं। गोलियों से छलनी लोगों के कलेजे से निकलने वाला रक्त हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी का था। जलियांवाला बाग आज दर्शनीय, पूजनीय और वंदनीय हो गया है जिसे देखने के लिए देश विदेश से रोजाना हजारों पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
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जलियांवाला बाग का इतिहास
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग में करीब दो हजार से अधिक लोग एकत्र हुए थे। तकरीरें भी हो रही थीं। इस बीच 90 सैनिकों के साथ बाग में पहुंचे ब्रिगेडियर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर गोली चलाने का आदेश जारी कर दिया। चारों तरफ से ऊंची-ऊंची इमारतों से घिरे इस मैदान में पहुंचने के लिए मात्र चार फुट का एक संकरा रास्ता हुआ करता था।
कहा जाता है कि ब्रिटिश सैनिकों ने 10 मिनट में 1650 गोलियां चलार्इं। इस कांड में 418 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक लोग जख्मी हो गए। लोगों के भागने का जो एक मात्र रास्ता था वहां डायर अपने सैनिकों के साथ डटा था। जान बचाने के लिए लोग गहरे कुंए में कूद गए थे। बाद में इस कुंए से 120 लाशें निकाली गई थीं। इस बात की तस्दीक अमृतसर के जिलाधिकारी कार्यालय रखी मृतकों की सूची करती है। बता दें कि 13 अप्रैल 1699 को सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
डायर ने इस कदम को बताया था सही
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद जनरल डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम करके बताया कि उस पर भारतीयों की फौज ने हमला कर दिया। जिसके जवाब में उसे गोलियां चलानी पड़ीं। ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर ने जनरल डायर के इस कदम को सही ठहराया था। दुनिया भर में हुई निंदा के बाद सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉण्टग्यू ने 1919 के अंत में इस घटना की जांच के लिए ‘हंटर कमीशन’ नियुक्त किया। कमीशन के सामने डायर ने यह स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने ने का फैसला पहले से ही कर के आया था। इसके लिए वह दो तोप भी साथ ले गया था, लेकिन बाग में जाने का रास्ता संकरा होने के कारण वह तोप नहीं ले जा सका। उसने यह बताया कि घटना से कुछ दिन पहले ही अमृतसर के किला गोबिंदगढ़ में अपनी छावनी डाल दी थी।
गुरुदेव ने अपनाया एकला चलो रे का रास्ता
जलियांवाला बाग हत्याकांड से गुरुदेव रविद्र नाथ टैगोर इतने आहत हुए कि उन्होंने नाइटहुड की उपाधि लौटा दी। यही नहीं उन्होंने उस वर्ष 23 से 26 अप्रैल के बीच सीएफ एंड्रयूज को एक के बाद एक पांच खत लिख डाले। वह चाहते थे कि महात्मा गांधी और पंडित जवारलाल नेहरू सहित कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता इस घटना का व्यापक ढंग से प्रतिकार करें, लेकिन यह लोग सहमत नहीं हुए। इससे आहत रविंद्रनाथ टैगरो ने ‘एकला चलो रे’ गीत लिखा था। इसके बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी राह अलग कर ली।
प्रधानमंत्री ने दिए सौ करोड़
भारत सरकार बलिदान दिवस के इस शताब्दी समारोह को पूरे देश में मनाए जाने की घोषणा पिछले साल अक्टूबर 2018 में कर चुकी है। इस समारोह के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 करोड़ रुपए का प्रावधान भी कर रखा है। इसके तहत देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।