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Jammu Kashmir Election 2024: जमात ए इस्लामी हुआ एक्टिव, कश्मीर चुनाव के लिए की रैली
Jammu Kashmir Election: जम्मू कश्मीर में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के बैनर तले चुनाव लड़ा था। अब 2024 के चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए जमात समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों ने प्रचार करने के लिए अपनी पहली रैली की है।
Jammu Kashmir Election: जमात-ए-इस्लामी ने 1987 के बाद से अपनी राजनीतिक ताकत का पहला प्रदर्शन किया है। सन 87 में जमात ने आखिरी बार जम्मू कश्मीर में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के बैनर तले चुनाव लड़ा था। अब 2024 के चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए जमात समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों ने प्रचार करने के लिए अपनी पहली रैली की है।
जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर 2029 तक यूएपीए के तहत प्रतिबंधित है। लेकिन इसने अपने तीन पूर्व सदस्यों डॉ तलत मजीद, सयार अहमद रेशी और नजीर अहमद को जम्मू-कश्मीर चुनावों के पहले चरण के लिए निर्दलीय के रूप में मैदान में उतारने का फैसला किया है। जमात एक अन्य स्वतंत्र उम्मीदवार एजाज अहमद मीर का भी समर्थन कर रही है, पीडीपी ने उन्हें शोपियां के ज़ैनापोरा निर्वाचन क्षेत्र से टिकट देने से इनकार कर दिया था।
दक्षिण कश्मीर के कुलगाम के बोगाम गाँव में रैली के दौरान कुलगाम से जमात समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार रेशी ने कहा, “एक वैक्यूम है, जो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा बनाया गया है, जिसे भरने की आवश्यकता है। हम पर उंगलियां उठाई जाएंगी, हमारी आलोचना की जाएगी। लेकिन आज हम जो देख रहे हैं, वह वास्तविकता है। हमारी ताकत जन सैलाब है।" उनका मुकाबला कम्युनिस्ट नेता और एनसी-कांग्रेस गठबंधन के सर्वसम्मत उम्मीदवार एम वाई तारिगामी और पीडीपी के मोहम्मद अमीन डार से है।
जमात समर्थित उम्मीदवार पिछले कई हफ़्तों से घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं, लेकिन 8 सितंबरकी रैली, चुनाव लड़ने के उनके फ़ैसले की घोषणा के बाद से उनकी पहली सार्वजनिक रैली थी। जमात के इस फ़ैसले की वजह से उसे अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी नेशनल कॉन्फ्रेंस और संगठन के भीतर, ख़ासकर उसके जमीनी कार्यकर्ताओं की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
जमात पर प्रतिबंध हटाने के लिए केंद्र के साथ बातचीत कर रहे जमात के आठ सदस्यीय पैनल के साथ, रेशी ने दोहराया कि पार्टी के दरवाजे चुनाव पूर्व या चुनाव बाद गठबंधन के लिए खुले हैं। रेशी ने कहा - हम किसी भी पार्टी का समर्थन करेंगे जो लोगों की गरिमा को बहाल करने के लिए काम करेगी।
उग्रवाद और जमात
जमात की सबसे बड़ी आलोचना यह रही है कि इस संगठन ने जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद का नेतृत्व किया है। उग्रवाद की शुरुआत में, घाटी के सबसे बड़े स्वदेशी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन ने खुद को जमात की सशस्त्र शाखा कहा था। हालांकि, जमात के पैनल का कहना है कि वे कभी भी आधिकारिक तौर पर उग्रवाद में शामिल नहीं थे। लेकिन उन्होंने 1997 में किसी भी तरह की हिंसा से खुद को अलग करने की घोषणा की थी, जब इसके प्रमुख गुलाम मोहम्मद बट ने कहा था कि संगठन की कोई सैन्य शाखा नहीं है।
रेशी का कहना है - हम भारत के संविधान का समर्थन करेंगे। लेकिन अगर दमन होगा तो हम इसे दमन कहेंगे। हम शांति और सौहार्द की भी अपील करेंगे। रैली में अपने संबोधन के दौरान मीर ने कहा, "हम भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे और पारदर्शी तरीके से काम करेंगे। हम कश्मीर और कश्मीरियों के बारे में बात करेंगे। हम विधानसभा में लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे।"
क्यों लगा था बैन
इस साल 27 फरवरी को केंद्र ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया तहस। इस फैसले की घोषणा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा था, "आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन करते हुए सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। ये संगठन राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ अपनी गतिविधियों को जारी रखता पाया गया है। इस संगठन को पहली बार 28 फरवरी 2019 को 'गैरकानूनी संघ' घोषित किया गया था। राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी
जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर या जेईआई पर आखिरी प्रतिबंध पुलवामा हमले (14 फरवरी, 2019) के कुछ दिनों बाद 28 फरवरी, 2019 को लगाया गया था। उस समय जेईआई, जम्मू-कश्मीर के 100 से अधिक सदस्यों, जिनमें इसके प्रमुख अब्दुल हमीद फैयाज भी शामिल थे, को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया था।