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Jan Nayak Karpuri Thakur: जन नायक कर्पूरी ठाकुर: पक्के सोशलिस्ट नेता जिन्होंने छोड़ी बिहार की राजनीति पर अमिट छाप

Jan Nayak Karpuri Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। जन नायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे - दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 23 Jan 2024 9:33 PM IST (Updated on: 23 Jan 2024 9:34 PM IST)
Jan Nayak Karpoori Thakur: A staunch socialist leader who left an indelible mark on the politics of Bihar
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जन नायक कर्पूरी ठाकुर: पक्के सोशलिस्ट नेता जिन्होंने छोड़ी बिहार की राजनीति पर अमिट छाप: Photo- Social Media

Jan Nayak Karpuri Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। जन नायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे - दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक।

कर्पूरी ठाकुर पक्के सोशलिस्ट नेता थे। वंचितों और पिछड़ों के हक के लिए उन्होंने कितनी ही लड़ाइयां लड़ीं। कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया। यह एक ऐसा कदम था जिसने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के लिए रास्ता तैयार किया। कर्पूरी ठाकुर भारत में सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के पर्याय, एक प्रमुख सोशलिस्ट नेता थे जिन्होंने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी।

Photo- Social Media

स्वतंत्रता सेनानी रहे

24 जनवरी 1924 को जन्मे ठाकुर ने चुनावी राजनीति में आने से पहले भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। वह 1970 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री थे।

जीवन परिचय

कर्पूरी ठाकुर का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गाँव में हुआ था। एक छात्र के रूप में वे राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गये। छात्र कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के लिए ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़ दी थी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए।

एक टीचर भी रहे

भारत को आज़ादी मिलने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने अपने गाँव के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। वह 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधानसभा के सदस्य बने। उन्हें 1960 में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों की आम हड़ताल के दौरान पी एंड टी कर्मचारियों का नेतृत्व करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। 1970 में उन्होंने टेल्को मजदूरों के अधिकारों के लिए 28 दिनों तक आमरण अनशन किया था।

Photo- Social Media

हिंदी के प्रबल समर्थक

कर्पूरी ठाकुर हिंदी भाषा के समर्थक थे और बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने मैट्रिक पाठ्यक्रम से अंग्रेजी को अनिवार्य विषय से हटा दिया था। 1970 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बनने से पहले ठाकुर ने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी भी लागू की। उनके शासनकाल के दौरान, बिहार के पिछड़े इलाकों में उनके नाम पर कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए थे।

पिछड़ों को आरक्षण

22 दिसंबर 1970 को, वह पहली बार मुख्यमंत्री बने और 2 जून 1971 तक सेवा की। 1977 में, जनता पार्टी बिहार में सत्ता में आई और कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 21 अप्रैल 1979 तक सेवा की। दूसरी बार मुख्यमंत्री रहते हुए कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी नौकरी में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सिफारिश करने वाली मुंगेरी लाल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय लिया था।

गहरा असर

कर्पूरी ठाकुर की नीतियों और पहल का असर बिहार में पिछड़ी राजनीति के उदय में देखा जा सकता है। उनके काम ने पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण की नींव रखी, जिसने बाद में जनता दल (यूनाइटेड) या जेडी (यू) और राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के गठन को प्रभावित किया। आजादी के बाद पहली बार बिहार में हुए हालिया जाति सर्वेक्षण में ठाकुर की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की गई है। सर्वेक्षण से पता चला कि पिछड़े समुदाय बिहार की आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा हैं।



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Shashi kant gautam

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