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Election Commission: जनसंघ चाहता था जजों को चुनाव आयुक्त बनाना

Election Commission: लगभग पांच दशक पहले भारतीय जनसंघ ने मांग की थी कि न्यायाधीशों को चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों के रूप में नियुक्त किया जाए।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 16 Sept 2023 3:54 PM IST
Jana Sangh wanted to make judges election commissioners
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जनसंघ चाहता था जजों को चुनाव आयुक्त बनाना: Photo- Social Media

Election Commission: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में बदलाव से सम्बंधित एक विधेयक केंद्र सरकार ने संसद में पेश किया है जिस पर अगले सप्ताह होने वाले विशेष संसद सत्र में चर्चा की जाएगी। इस विधेयक में आयुक्तों की चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान है। लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि लगभग पांच दशक पहले भारतीय जनसंघ ने मांग की थी कि न्यायाधीशों को चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों के रूप में नियुक्त किया जाए।

क्या विचार था जनसंघ का

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1975 में जनसंघ का प्रस्ताव चुनाव संबंधी उसकी कई मांगों के अनुरूप था जो उसने 1951 में अपनी स्थापना के बाद से की थी। पार्टी ने दिसंबर 1952 में कानपुर में अपनी पहली आम सभा आयोजित की थी।

-31 दिसंबर को जनसंघ ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग की थी कि मतदान के तुरंत बाद वोटों की गिनती की जानी चाहिए।

-चार साल बाद दूसरे संसदीय और राज्य चुनावों से कुछ महीने पहले दिल्ली में आयोजित अपने पांचवें सामान्य सभा सत्र में जनसंघ ने मांग रखी थी कि ऑल इंडिया रेडियो मंत्रियों के चुनाव-संबंधी भाषणों का प्रसारण न करे।

-जनसंघ ने उस समय आरोप लगाया था कि केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों ने चुनावी उद्देश्यों के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। 24 मई, 1962 को कोटा राजस्थान में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जनसंघ ने मांग की कि सभी सरकारों को चुनावों से तीन महीने पहले इस्तीफा दे देना चाहिए।

-जनसंघ के प्रस्ताव में कहा गया था कि - लोकतंत्र में आम नागरिकों के विश्वास को बरकरार रखने के लिए भारतीय जनसंघ कार्यकारिणी ने सरकार से मांग की है कि संविधान में संशोधन कर यह प्रावधान किया जाए कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को चुनाव से तीन महीने पहले इस्तीफा देना होगा। कार्यकारिणी सभी दलों से मांग करती है कि वे इस मांग को उठाने में हमारा सहयोग करें।

चुनाव आयोग की स्थापना: Photo- Social Media

चुनाव आयोग की स्थापना

जब 1950 में चुनाव आयोग की स्थापना की गई थी, तो यह सिर्फ एक मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ एक सदस्यीय निकाय था। 1990 से यह तीन सदस्यीय आयोग रहा है लेकिन उससे बहुत पहले, 4 मार्च, 1971 को ही जनसंघ ने आयोग को बहु-सदस्यीय निकाय बनाने की मांग की थी। उसी वर्ष पार्टी ने 2 जुलाई को उदयपुर में आयोजित अपनी आम बैठक में कहा था कि सरकार को लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए मतदान प्रणाली पर पुनर्विचार करना चाहिए। उसी बैठक में, जनसंघ ने मांग की थी कि सरकार को धीरे-धीरे चुनावों के वित्तपोषण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और कहा कि पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव-संबंधी खर्च वहन नहीं करना चाहिए। इसमें कहा गया कि एक न्यायिक आयोग को सभी चुनावी विवादों का निपटारा करना चाहिए।

-20 मार्च 1972 को दिल्ली में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जनसंघ ने फिर से सरकार से चुनावी प्रणाली पर पुनर्विचार करने को कहा। उस साल 7 मई को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने बिहार के भागलपुर में अपनी बैठक के बाद कहा कि पूरे देश में एक ही दिन एक साथ चुनाव होने चाहिए। 1967 तक एक साथ चुनाव कराये जाते थे लेकिन उसके बाद विधानसभा चुनाव और संसदीय चुनाव चक्र अलग अलग हो गया।

-1975 में आपातकाल लागू होने से पांच महीने पहले, 22 से 24 जनवरी तक आयोजित एक बैठक में जनसंघ ने मांग की थी कि एकल सदस्यीय चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय निकाय द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए और ये भी कहा कि सदस्य न्यायाधीश होने चाहिए न कि सचिव स्तर के रिटायर्ड नौकरशाह।

बहुत कुछ बदल चुका है

बहरहाल, देश की राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आ चुका है और चुनाव प्रणाली धीरे-धीरे बदल गई है। सीईसी के रूप में टी एन शेषन के कार्यकाल के दौरान कई बदलाव हुए हैं। अब भाजपा सरकार सीईसी और ईसी को चुनने के तरीके में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 में चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के लेवल से नीचे करके कैबिनेट सचिव के स्तर का कर दिया गया है। अभी विधेयक पर चर्चा होगी तो बाकि दलों के भी विचार सामने आ जायेंगे।

Shashi kant gautam

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