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राजस्थान : पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा लगी दांव पर

seema
Published on: 19 April 2019 3:06 PM IST
राजस्थान : पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा लगी दांव पर
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राजस्थान : पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा लगी दांव पर

बाड़मेर। राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दबदबे वाले बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में इस बार भी भाजपा के दिग्गज नेता रहे एवं पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी है जबकि भाजपा के नए उम्मीदवार पूर्व विधायक कैलाश चौधरी के सामने सीट बचाने की कड़ी चुनौती है।

जसवंत सिंह के पुत्र पूर्व सांसद मानवेन्द्र सिंह बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर फिर चुनाव मैदान में उतरे हैं। वह इस बार कांग्रेस प्रत्याशी हैं जबकि उन्होंने वर्ष 2004 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था। इस बार उनका सीधा मुकाबला कैलाश चौधरी से हैं। इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा एक प्रत्याशी बीएमयूपी पार्टी तथा चार निर्दलीय उम्मीदवार सहित कुल सात प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही होने के आसार हैं। इस बार भी कोई महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रही है।

इस बार बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी पूर्व पुलिस अधिकारी पंकज चौधरी का नामांकन खारिज होने से इसका फायदा मानवेन्द्र सिंह को होने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि बसपा प्रत्याशी के चुनाव मैदान में नहीं होने से कांग्रेस के परम्परागत मतों का बंटवारा नहीं होगा और इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिलेगा। मानवेन्द्र सिंह के प्रचार की कमान उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने संभाल रखी है। अभी कांग्रेस के बड़े नेताओं का चुनावी दौरा जिले में शुरू नहीं हुआ है। बताय जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तथा राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई नेताओं की चुनाव सभाएं होंगी।

कांग्रेस का कब्जा

आठ विधानसभा क्षेत्र वाले बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का कब्जा है और बायतू से विधायक चुने गये हरीश चौधरी राज्य में राजस्व मंत्री हैं जबकि शिव से अमीन खां एवं गुडामालानी से हेमाराम चौधरी मंत्री रह चुके हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार एवं उसके द्वारा किसानों का कर्ज माफ, बेरोजगारों को भत्ता आदि उपलब्धियों के साथ जसवंत सिंह का लम्बे समय तक राजनीति से जुड़े रहने तथा मानवेन्द्र सिंह का एक बार सांसद एवं वर्ष 2013 में भाजपा विधायक रहने का राजनीतिक फायदा मिल सकता है।

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भाजपा से नाराजगी

पिछले लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे। वह जोधपुर से एक बार, चित्तौडग़ढ़ से दो बार तथा पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से एक बार लोकसभा चुनाव जीते थे। भाजपा में जसवंत सिंह को तरजीह नहीं मिलने से नाराज मानवेन्द्र सिंह गत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में आ गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने झालावाड़ जिले की झालरापाटन से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, हालांकि वह चुनाव हार गए लेकिन पार्टी में छवि बन गई। मानवेन्द्र सिंह को पार्टी के साथ जाति गत वोट बैंक का भी फायदा मिल सकता है। भाजपा प्रत्याशी के नया चेहरा होने का भी उन्हें लाभ मिल सकता है।

भाजपा उम्मीदवार मोदी लहर के सहारे

भाजपा उम्मीदवार कैलाश चौधरी के पास वर्ष 2013 में बायतू से विधायक बनने के अलावा कोई राजनीतिक दबदबा नहीं रहा है। वह चुनाव में केन्द्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों एवं मोदी लहर के सहारे जीत का दावा कर रहे हैं। कैलाश चौधरी को भाजपा द्वारा नागौर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ गठबंधन का फायदा भी मिलने की उम्मीद है। रालोपा के संयोजक हनुमान बेनीवाल नागौर से भाजपा के समर्थन से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और वह भाजपा के लिए प्रचार भी करेंगे। बेनीवाल के कैलाश चौधरी के पक्ष में प्रचार करने पर जाटों के मतों का कम बंटवारा होने का फायदा मिल सकता है, क्योंकि गत विधानसभा चुनाव से पहले एवं रालोपा पार्टी बनाने से पूर्व बेनीवाल ने किसान रैली की शुरुआत बाड़मेर से की थी और उन्हें शानदार समर्थन मिला था।

१६ में से ९ बार जीती है कांग्रेस

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में अब तक हुए सोलह लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने नौ बार जीत हासिल की है। जबकि भाजपा केवल दो बार चुनाव जीत सकी है। इनके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार जनता पार्टी, जनता दल एवं रामराज्य परिषद पार्टी ने चुनाव जीता है। इनमें वर्ष 1952 में पहली लोकसभा का चुनाव जज रहे एवं पूर्व जागिरदार भवानी सिंह ने निर्दलीय के रूप में जीता था। वर्ष 1957 में निर्दलीय रघुनाथ सिंह तथा 1962 में रामराज्य परिषद के तान सिंह विजय रहे जबकि लोकसभा चनुाव शुरु होने के पन्द्रह साल बाद वर्ष 1967 में कांग्रेस के अमृत नाहटा चुनाव जीते। इसके अगला चुनाव भी उन्होंने जीता।

आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में तान सिंह ने फिर चुनाव जीता लेकिन इस बार वह जनता पार्टी के प्रत्याशी थे। इसके बाद वर्ष 1980 एवं 1984 में कांग्रेस के वृद्धि चंद जैन, वर्ष 1989 में केन्द्र में संयुक्त गठबंधन के चलते जनता दल के कल्याण सिंह कालवी, वर्ष 1991 में कांग्रेस के रामनिवास मिर्धा ने लोकसभा चुनाव जीता।

वर्ष 1996 से कांग्रेस के कर्नल सोना राम ने लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते लेकिन वर्ष 2004 में भाजपा प्रत्याशी मानवेन्द्र सिंह के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2009 में कांग्रेस के हरीश चौधरी मानवेन्द्र सिंह को हराकर लोकसभा पहुंचे। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा में आने पर सोनाराम को पार्टी का टिकट मिल गया और वह चौथी बार लोकसभा पहुंचे। इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को दे दिया।

13 सीटों पर 115 प्रत्याशी

राजस्थान में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में अब राज्य की 13 लोकसभा सीटों के लिए कुल 115 उम्मीवार चुनावी मैदान में बचे हैं। राज्य की कुल 25 में 13 सीटों पर 29 अप्रैल को मतदान होगा जबकि 12 सीटों पर छह मई को मतदान होना है। 13 लोकसभा सीटों के लिए 172 उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किए थे। 19 नामांकन पत्र अस्वीकार किए गए। 38 अभ्यर्थियों ने अपने नाम वापस लिए।

राज्य में 29 अप्रैल को होने वाले मतदान के लिए सबसे कम प्रत्याशी (चार) भीलवाड़ा में तथा सबसे ज्यादा १५-१५ प्रत्याशी जालौर व कोटा में हैं। पहले चरण में 2.57 करोड़ से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे। दूसरे चरण में 12 लोकसभा क्षेत्रों में श्रीगंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझूनूं, सीकर, जयपुर ग्रामीण, जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली-धौलपुर, दौसा और नागौर है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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