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Histoy of Jauhar Kund : ग्वालियर का जौहर कुंड

Jauhar Kund : कुछ सालों पहले बॉलीवुड में एक फ़िल्म पद्मावत आयी थी । जिसमें जौहर दिखाया गया था । राजपूत महारानी रानी पद्मावती और उनकी 16000 स्त्रियों ने एक साथ एक कुंड में जौहर किया था

Akshita Pidiha
Published on: 18 Jun 2023 10:06 AM IST (Updated on: 18 Jun 2023 10:17 AM IST)

Jauhar Kund : कुछ सालों पहले बॉलीवुड में एक फ़िल्म पद्मावत आयी थी । जिसमें जौहर दिखाया गया था । राजपूत महारानी रानी पद्मावती और उनकी 16000 स्त्रियों ने एक साथ एक कुंड में जौहर किया था ।यह फ़िल्म सत्य घटना से प्रेरित थी।इतिहास की ऐसी एक और घटना ग्वालियर में भी हुई थी। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में भी एक ऐसा कुंड है जो जौहर का साक्षी रहा है।

जौहर क्या होता है -

जौहर का शब्दशः अर्थ “सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय” अर्थात “प्रकृति के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव ही जौहर है“।

ग्वालियर अपनी विरासत और सुंदर किलों के लिए जाना जाता है ।यहाँ ऐसे कई दुर्ग हैं, जिनका नाम इतिहास में हुई अनेक घटनाओं के लिए दर्ज है ।यहाँ कई शासकों से लेकर अंग्रेजों ने अपना ठिकाना बनाया ।यहाँ की खूबसूरत छठा मोहित करने वाली है । यहाँ के क़िले की संरचना इस तरह बनायी गयी थी कि साल साल भर भी राजा क़िले से बाहर नहीं निकलते थे ।वे अपने क़िले में सबसे सुरक्षित हुआ करते थे ।क़िले से ही युद्ध लड़े जाते थे ।

जौहर कुंड ग्वालियर किले के उत्तरी छोर पर स्थित जलाशय है।यह कुंड 1200 वीं सदी में बनाया गया था ।इस समय ग्वालियर पर प्रतिहार वंश के राजाओं का साम्राज्य स्थापित था।अफगानिस्तान से आए शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने ग्वालियर दुर्ग पर अपना क़ब्ज़ा करने के लिए घेराबंदी की ।इल्तुतमिश ने अपने एक दूत को राजा के पास भेज कर प्रस्ताव दिया कि वह अपनी बेटी का विवाह सुल्तान के साथ कर के आत्मसमर्पण कर दे नहीं तो ग्वालियर दुर्ग पर हमला कर देंग।लेकिन राजा ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

जिसके बाद इल्तुतमिश ने क़िले पर आक्रमण करने का आदेश दिया और जवाब में राजा ने भी युद्ध किया ।यह युद्ध एक साल तक चला ।इल्तुतमिश के पास बहुत बड़ी सेना थी पर वह क़िले के नीचे थी ।पर मुस्लिम शासक पीछे नहीं हटा और कुछ सैनिकों के साथ युद्ध जारी रखा ।राजा ने एक साल तक क़िले के अंदर से युद्ध किया पर जब राजा को यह लगने लगा की रसद नहीं है तो राजा अपने सभी साथी योद्धा के साथ केसरिया बाना पहन कर किले के बाहर निकल कर शत्रु पर टूट पड़े।पर यह राजा की भूल थी ।क्योंकि इनके पास सेना इल्तुतमिश की अपेक्षा कम थी।जिसके चलते उनकी हार संभावित थी।और राजा इस बात को जानते थे ।

राजपूत रानियों ने खुद को मुस्लिम शासकों के हाथ में आने से बेहतर जौहर में जाना स्वीकार किया। फिर इसी बीच सभी राजपूत रानियों और उनकी दासियों एवं अन्य महिलाओं ने किले के भीतर बने इस कुंड का अग्नि प्रज्वलित कर उसमें सामूहिक रुप से आत्मदाह कर लिया था।कहा जाता है उस समय एक साथ लग भग 1400 रानियों के आत्मदाह किया था ।इस घटना के बाद से इस कुंड को जौहर कुंड के नाम से जाना जाने लगा।अभी भी इस कुंड का नाम ऐतिहासिक रूप से बरकरार है ।

यह जलाशय अभी भी ज़मीन स्तर से काफ़ी ऊँचाई पर है ।इसके बाद भी यह कुंड कभी सूखा नहीं रहता है ।गर्मी के दिनों में जलस्तर कम हो जाता है पर कभी सूखता नहीं है ।यह कुंड पहले यहाँ की रानियों के स्नान के लिए बनवाया गया था ।साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस सरोवर के पानी का उपयोग करण महल, विक्रम महल, जहाँगीर महल, शाहजहाँ महल आदि के लिए किया जाता था। यह एक ऐतिहासिक स्मारक है।उत्तरी छोर में होने के कारण इस स्मारक को देखने के लिए आगंतुकों को करण महल को पार करना पड़ता है।जौहरकुंड की देखरेख वर्तमान में राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय कर रहा है। जौहरकुंड देखने सैकड़ों पयर्टक आते हैं।

Akshita Pidiha

Akshita Pidiha

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