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Tryst With Destiny: पूरा हुआ नियति से किया वादा, आजादी पर नेहरू का ऐतिहासिक भाषण
Tryst With Destiny: 14 अगस्त की मध्य रात्रि से कुछ ही पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में अपना ऐतिहासिक ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ भाषण दिया था।
Tryst With Destiny speech of Jawahar Lal Nehru: ब्रिटिश हुकूमत से सत्ता के हस्तांतरण और भारत की आज़ादी के रोमांचकारी लम्हों में पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण की खास जगह है। 14 अगस्त की मध्य रात्रि से कुछ ही पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में अपना ऐतिहासिक 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' भाषण दिया था। इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना था।
पंडित नेहरू ने कहा था "वर्षों पहले हमने नियति से वादा किया था और अब समय आ गया है कि वह प्रतिज्ञा पूरी हो रही है। आज ठीक जब घड़ी में रात्रि के 12 बजेंगे, जब सारी दुनिया सो रही होगी तब भारत आज़ाद होकर जागेगा।
इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं पर बहुत कम आते हैं जब हम पुराने को त्याग कर नये में प्रवेश करते हैं। जब वर्षों के शोषण के बाद वाणी मिलती है। यह सही है कि हम स्वयं को देश और मानवता की सेवा के लिए अर्पित कर रहे हैं। जब मानवीय सभ्यता का उदय हुआ था तभी से हमारा देश उस मंजिल की ओर बढ़ चला था और सदियों उस मंजिल को प्राप्त करने का प्रयास करता रहा और उस मंजिल को प्राप्त करने में उसे सफलताएं और असफलताएं दोनों मिलती रहीं। इन तमाम पिछली सदियों में भारत अपने आदर्शों से विमुख नहीं हुआ। आज वह समय आ गया है कि जब हमारे इतिहास का वह काला अध्याय समाप्त हो गया है। आज हम उस दिशा में कदम रख रहे हैं जब अनेक सफलताएं हमारा रास्ता देख रही है और हम पूर्ण साहस के साथ आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करेंगे।
आज़ादी और सत्ता अपने साथ जिम्मेदारियां भी लाती हैं। स्वतंत्रता के जन्म से पहले, हमने कठिन परिश्रम के सारे दर्द सहे हैं और हमारा दिल इस दुःख की याद से जल उठता हैं। उन में से थोडा दर्द अभी भी जारी है। फिर भी, भूतकाल खत्म हो चुका है और अब भविष्य ही है जो हमारी ओर देख रहा है।
भविष्य आराम करने या चैन से बैठने का नहीं
ये भविष्य आराम करने या चैन से बैठने का नहीं है, बल्कि लगातार प्रयास करने का है ताकि हमारे द्वारा बार-बार की गयी प्रतिज्ञा को हम पूरा कर सकें। भारत की सेवा का मतलब लाखों पीड़ित लोगों की सेवा करना है। इस सदन के ऊपर, यह सदन जो कि एक सार्वभौमिक सदन है और जो इस देश की स्वतंत्र जनता का प्रतिनिधि है उसके ऊपर भी बहुत गंभीर जिम्मेदारियां आ पड़ी हैं। आज़ादी के आंदोलन के दौरान हमने अनेक मुसीबतों का सामना किया। अनेक तरह की यातनाएं झेलीं, वह सब आज भी हमारी स्मृति पटल पर कायम है। परंतु हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अतीत के दिन लद गए हैं और भविष्य हमारा इंतजार कर रहा है। भविष्य भी कांटों से परिपूर्ण है। इस देश में हमें अपने देशवासियों की सेवा करना है। उन देशवासियों की जो करोड़ों की संख्या में आज भी विभिन्न प्रकार के अभावों की जिंदगी जी रहे हैं। हमें करोड़ों लोगों की गरीबी, अज्ञानता और असमानता को दूर करना है।
हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति की आकांक्षा इस देश के हर निवासी के आंसू पोंछने की है। यह बहुत ही महत्वाकांक्षी कार्य है परंतु हमें इसे करना होगा। और आज हमें इसे हासिल करने की प्रतिज्ञा करना होगी। हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए कड़ा परिश्रम करना होगा। यह सपने हमारे देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण देशों के लिए हैं। दुनिया के सभी निवासियों के लिए है। हमें आज के इस प्रसन्नता के क्षण में इस बात को भी महसूस करना है कि दुनिया का कोई भी राष्ट्र अलग-थलग रह कर जिंदा नहीं रह सकता है। दुनिया के लिए शांति आवश्यक है। शांति, आज़ादी और प्रगति यह सब अविभाज्य मूल हैं।
सुख और शांति की सांस
आज इस अवसर पर हम भारत के निवासियों को, जिनके हम प्रतिनिधि हैं, यह अपील करते हैं कि वे हममें पूरा भरोसा कर हमारे साथ चलें। आज यह अवसर आलोचना का नहीं है, बुराईयों का नहीं है, एक दूसरे पर दोषारोपण का नहीं है। हमें आज़ाद भारत के भव्य भवन का निर्माण करना है। ऐसा भारत जिसमें सब सुख और शांति की सांस ले सकें।
हमारा आगे का काम मुश्किल है। हम में से कोई आराम नहीं कर सकता है जब तक हम अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर लेते, जब तक हम भारत के सभी लोगों को उनकी भाग्यरेखा तक नहीं पहुंचा देते। हम आगे वाली पंक्ति के एक महान देश के नागरिक हैं और हमें उच्च मानकों पर खरा उतरना है।
हम सभी, चाहे हम किसी भी धर्म से संबंधित हों, समान रूप से समान अधिकार, विशेषाधिकार और दायित्व के साथ भारत की संतानें हैं। हम सांप्रदायिकता या संकीर्णता को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं, कोई भी देश महान नहीं हो सकता है जिसके लोगों की सोच में या कर्म में संकीर्णता हो।
हम दुनिया के देशों और लोगों के लिए शुभकामनाएं करते हैं और हम उनके साथ सहयोग करने शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिज्ञा लेते हैं। और भारत की, प्राचीन, शाश्वत और हमेशा नई स्फूर्ति देने वाली, हमारी अत्यंत प्रिय मातृभूमि को श्रद्धा से नमन करते हैं और हम नए सिरे से इसकी सेवा करने का संकल्प लेते हैं।" जय हिन्द