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Jharkhand Politics: झारखंड में बिहार दोहराने की तैयारी, हेमंत पत्नी को बनाएंगे मुख्यमंत्री
Jharkhand Politics: पोस्ट ऑफ प्रॉफिट के चलते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी है।उन्होंने अपने ही कार्यकाल में अपने नाम एक छोटी सी पत्थर की खदान अनगड़ा में एलाट करा ली थी।
Jharkhand Politics: झारखंड में 25 जुलाई 1997 का बिहार दोहराये जाने का माहौल बनता नज़र आ रहा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता रद करने के निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद हेमंत सोरेन ने जिन तीन नामों को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति जाहिर की है, उनमें उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, तोबा मांझी व चंपई सोरेन के नाम हैं। कल्पना सोरेन का नाम सबसे आगे है।
यह बात दूसरी है कि झारखंड में इनमें से किसी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सरकार की स्थिरता को लेकर सवाल उठते रहेंगे। झारखंड में जो उथल पुथल चल रही है, उसका स्थायी हल राष्ट्रपति शासन ही है, क्योंकि वहां चुनाव तीन साल बाद 2025 में है। गौरतलब है कि, 'पोस्ट ऑफ प्रॉफिट' के चक्कर में सोनिया गांधी और जया बच्चन की सदस्यता पहले जा चुकी है। पर निर्वाचन आयोग पोस्ट ऑफ प्रॉफिट (Post of Profit) के आरोप में कभी किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है।
बीजेपी की मुहिम रंग लाई
पोस्ट ऑफ प्रॉफिट के चलते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी है। उन्होंने अपने ही कार्यकाल में अपने नाम एक छोटी सी पत्थर की खदान अनगड़ा में एलाट करा ली थी। जबकि, बीते छह माह से चल रही सुनवाई के बाद आज हेमंत सोरेन की सदस्यता रद करने के अपने फैसले से निर्वाचन आयोग ने राज्यपाल रमेश बैस को अवगत करा दिया।
10 फरवरी को पूर्व सीएम रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की। बताया कि सोरेन ने पद का दुरुपयोग किया। भाजपा का आरोप था कि यह लोक जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपी) 1951 की 9 ए का उल्लंघन है। राज्यपाल ने भाजपा की शिकायत चुनाव आयोग को भेजी थी। चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन से जवाब मांगा। सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
झारखंड विधानसभा में संख्या पर नजर
झारखंड में 81 सदस्यों की विधानसभा है। बहुमत के लिए 41 सदस्य चाहिए। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 सदस्य हैं। अब इनकी संख्या घटकर 29 हो जायेगी। भारतीय जनता पार्टी के 25, कांग्रेस के 16 और 10 अन्य पार्टियों के विधायक हैं। काफ़ी लंबे समय से भाजपा झारखंड की सरकार गिराने के फिराक में लगी हुई है।
आखिर कहां फंसा पेच
हेमंत सोरेन के कामकाज के खिलाफ विधायकों में काफ़ी गुस्सा भी है। कांग्रेस के विधायक तो हेमंत का साथ छोड़ने को तैयार भी हैं। पर पेंच यह फंस गया कि बहुमत के आंकड़े के लिए जरूरी विधायक भाजपा इसलिए नहीं जुटा पाई क्योंकि कांग्रेस के ईसाई विधायक भाजपा के पाले में आने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, भाजपा ने कांग्रेस की ओर से झारखंड के प्रभारी आरपीएन सिंह को ही कमल थमा दिया। इससे कांग्रेस की दिक्कतें बढ़ गयी हैं।
राष्ट्रपति शासन लगे तो आश्चर्य नहीं
कहा जा रहा है कि तुरुप का यह इक्का भाजपा ने बिना सोचे समझे नहीं चला है। हेमंत के हटते ही कांग्रेस व झामुमो में होने वाले उथल-पुथल को भाजपा लपक लेने की रणनीति पर काम कर रही है। यदि इसमें उसे सफलता किसी कारण से नहीं मिल पायी, जिसकी उम्मीद बहुत कम है। तो झारखंड राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़े तो हैरत नहीं होना चाहिए ।